आइसीसी विश्व कप-2015 के पिछले कुछ दिन काफी रोमांचक रहे हैं, क्योंकि नामी-गिरामी और कमजोर तथा नौसिखुआ समझी जाने वाली टीमों की ओर से कई शानदार प्रदर्शन देखने को मिले हैं. मैं हाल के ऐसे ही एक मैच से शुरुआत करना चाहता हूं. पिछले साल नवंबर में अपनी किताब प्लेइंग इट माइ वे के सिलसिले में लंदन के एक दौरे के समय एक पत्रकार ने मुझसे विश्व कप में इंग्लैंड टीम की संभावनाओं के बारे में सवाल किया था. मैंने अपने जवाब में साफ-साफ कहा था कि मैं इंग्लैंड को सेमीफाइनल में पहुंचने वाली चार टीमों में नहीं गिनता हूं.
मेरा जवाब इंग्लैंड के तब तक के प्रदर्शन पर आधारित था. मैंने नोटिस किया था कि इंग्लैंड की टीम में कुछ ऐसे मुख्य या केंद्रीय खिलाडिय़ों का संकेत नहीं है, जो विश्व कप में टीम की ताकत बन सकें. यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इंग्लैंड इस टूर्नामेंट की सुपर आठ टीमों में भी अपनी जगह नहीं बना पाई है. इसकी तुलना में अगर आप कुछ बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली टीमों—भारत, न्यूजीलैंड, श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका-को देखें तो पाएंगे कि इन सभी टीमों में कोई न कोई मुख्य या केंद्रीय खिलाड़ी जरूर रहें हैं, जिसके इर्दगिर्द बाकी खिलाड़ी अपना योगदान देकर टीम के बेहतरीन प्रदर्शन में मदद कर रहे हैं. यह भी बड़ी बात है कि बांग्लादेश क्वार्टर फाइनल में पहुंच चुका है और आयरलैंड भी उस दौड़ में बना हुआ है. यह उसी बात को दोहराता है जो मैं बार-बार कह चुका हूं कि उभरती टीमों को अपने खेल के स्तर को उठाने के लिए और ज्यादा मौके दिए जाने चाहिए. आयरलैंड की टीम ने जिस तरह स्थापित टीमों के खिलाफ लोहा लिया है और बड़े लक्ष्यों का पीछा करने की योग्यता दिखाई है, वह इसी बात का प्रमाण है.
अपने पूल में पांच जीत और 100 फीसदी रिकॉर्ड के साथ भारत की फॉर्म बनी हुई है. हमारी टीम की ताकत इसकी बल्लेबाजी रही है और टॉप ऑर्डर के खिलाडिय़ों के फॉर्म में होने से हम हर मैच में अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब रहे हैं. भारतीय टीम ने विरोधी टीमों के खिलाफ बड़ा स्कोर खड़ा किया है और लक्ष्यों का पीछा भी बड़ी आसानी से किया है. लेकिन मैं भारतीय टीम की आक्रामक गेंदबाजी देखकर कहीं ज्यादा प्रभावित हुआ हूं, खासकर तेज गेंदबाजी से. हमारे गेंदबाजों ने जरूरत के समय बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और उन्होंने लगातार पांच मैचों में सभी विरोधी टीमों को जिस तरह ऑल आउट किया है, वह काबिले तारीफ है.
आयरलैंड के खिलाफ खेले गए मैच में सबसे मजेदार बात यह थी कि शुरुआती गेंदबाजों को कोई सफलता नहीं मिली थी और उन्होंने काफी रन दिए थे. लेकिन तभी रविचंद्रन आश्विन की अगुआई में फिरकी गेंदबाजों ने आयरिश टीम के बल्लेबाजों पर अंकुश लगाने का फैसला किया और उनके छक्के छुड़ा दिए. बिना कोई विकेट खोए 86 रन बनाने वाला आयरलैंड ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर ढह गया. वह अपने निर्धारित ओवर भी नहीं खेल सका. यह हमारी गेंदबाजी की सामूहिक ताकत की वजह से ही संभव हो सका वर्ना शुरुआती ओवरों में तो उनकी धुनाई ही हुई थी.
इस गेंदबाजी हमले का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि वह विरोधी टीम पर लगातार दबाव बनाए रखती है और बल्लेबाज को उसकी कमजोरी में फंसाना चाहती है. तेज गेंदबाजों का खेमा भी लगभग 140 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से गेंदबाजी कर रहा है. उन्हें फिरकी गेंदबाजों का भी पूरा सहयोग मिल रहा है. ये फिरकी गेंदबाज अपने आप में ही बड़ी ताकत बन रहे हैं.
आम तौर पर भारतीय टीम जब सफलता हासिल करती है तो टीम के खिलाड़ी ही मुख्य रूप से आकर्षण का पात्र बनते हैं जबकि परदे के पीछे रहकर रणनीति बनाने वालों को ज्यादा श्रेय नहीं दिया जाता. टीम के चयन को लेकर काफी आलोचना की गई थी और टीम प्रबंधन पर कई तरह के सवाल उठाए गए थे कि फलां-फलां खिलाडिय़ों को क्यों चुना गया? लेकिन टीम के अच्छे प्रदर्शन के बाद सारे मुंह बंद हो गए हैं और उन लोगों की तारीफ में कुछ भी नहीं कहा जा रहा है, जिन्होंने निरंतरता और धैर्य के सिद्धांत का परिचय दिया है. ऑस्ट्रेलिया दौरे के समय आलोचनाएं झेल चुके धोनी इस समय तारीफ के पात्र बन गए हैं. लेकिन जिस तरह उन्होंने सिर झुकाकर आलोचनाओं को झेला, पिता के कर्तव्यों का बलिदान दिया और मुश्किल समय में अपने खिलाडिय़ों का नेतृत्व किया, उसकी तारीफ में एक शब्द भी नहीं लिखा गया है.
पाकिस्तान-दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया-श्रीलंका के मुकाबलों में कुछ शानदार प्रदर्शन देखने को मिले. पाकिस्तान की टीम ने जिस तरह से पलटवार करते हुए प्रदर्शन किया, उससे दक्षिण अफ्रीका की टीम साफ तौर पर घबराहट में दिखाई दी. भारतीय और पाकिस्तानी टीमों का प्रदर्शन अपने रवैए में एक-दूसरे से बिल्कुल विपरीत रहा है. इसके बावजूद लगता है कि दोनों टीमें वही तरीका अपनाती लग रही हैं, जो उनकी पूर्ववर्ती टीमों ने 2003 (भारत) और 1992 (पाकिस्तान) में अपनाया था.
अपने पूल में न्यूजीलैंड का सबसे ऊपर रहना कोई ताज्जुब की बात नहीं है, क्योंकि उनके पास एक सुगठित टीम है और उन्हें अपने घरेलू मैदानों पर खेलने का भी फायदा मिल रहा है. दूसरी ओर श्रीलंका को कुमार संगकारा के शानदार खेल का भरपूर फायदा मिल रहा है. किसी विश्व कप में एक शतक लगाना भी बहुत बड़ी उपलब्धि होती है, लेकिन संगकारा इस विश्व कप में अब तक चार शतक लगा चुके हैं. उन्होंने ऐसा करके सिर्फ विश्व कप में ही नहीं, बल्कि एकदिवसीय मैचों के इतिहास में भी नया विश्व कीर्तिमान स्थापित कर दिया है. यह विश्वास करना मुश्किल है कि यह खिलाड़ी इस साल के अंत तक क्रिकेट के सभी संस्करणों से रिटायर हो जाएगा!
किसी लंबे टूर्नामेंट की चुनौतियों में एक बड़ी चुनौती यह है कि टीम का पिछला प्रदर्शन नॉकआउट चरण यानी ञ्चवार्टर फाइनल में कोई मायने नहीं रखता. भारत और न्यूजीलैंड जैसी टीमों, जिन्होंने अपने-अपने पूल में इतना बढिय़ा खेल दिखाया है, को अब क्वार्टर फाइनल में भी वैसा ही प्रदर्शन बरकरार रखना होगा. बांग्लादेश, पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका अब अपनी पूरी ताकत झोंक देंगे.
लीग मैचों की तालिका में आपकी स्थिति क्वार्टर-फाइनल में पहुंचने से पहले तक ही अच्छी दिखाई देती है. मैदान में उतरने के बाद यही बात मायने रखेगी कि उस दिन कौन-सी टीम अच्छा खेल दिखाती है. इस तरह आगे जाने के लिए हर टीम के पास बराबर का मौका है.