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जब पिछले हफ्ते मैंने ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के दफ्तर में उन्हें यह बताने के लिए फोन किया था कि मैं दोबारा इंडिया टुडे में आ गया हूं और हम एक कॉनक्लेव की योजना बना रहे हैं जहां उनका संबोधन चाहते हैं. कलाम ने वादा किया कि वे इस हफ्ते मुझसे मिलेंगे. अफसोस, ऐसा न हो सका. मैं जानता हूं कि वे मुझसे मिलते ही अपनी नटखट मुस्कान के साथ अभिवादन करते और कहते, ''क्या, तुमने दोबारा अपनी कनफिगरेशन बदल ली!''
मुझे उनके जीवन के बारे में काफी कुछ लिखने का सौभाग्य मिला था. ऐसा करते समय कलाम के बारे में मुझे सबसे चौंकाने वाली बात यह लगी कि वे हमेशा प्रतिकूल हालात में भी सकारात्मक पक्ष ढूंढ लेते थे.
कलाम मंदिरों के शहर रामेश्वरम में एक मुसलमान परिवार में पैदा हुए थे, जहां उनके पिता मांझी थे और उन्हें काफी कट्टरता झेलनी पड़ती थी. स्कूल में जब वे एक ब्राह्मण लड़के की बगल में बैठे तो उनके शिक्षक ने नाराज होकर उन्हें कक्षा से बाहर कर दिया. मैंने जब कलाम से उनके एहसास के बारे में पूछा, तो उन्हें सिर्फ अच्छी चीजें याद थीं. यह बताते हुए उनकी आंखें नम हो गईं कि कैसे गांव के ही एक अन्य ब्राह्मण ने यह घटना सुनी तो उसने उनको अपने घर खाने पर बुलाया और अपनी संकोची पत्नी को उन्हें खाना परोसने का आदेश दिया.
जब उनकी नाव एक तूफान में नष्ट हो गई, तब उनकी बहन ने अपने गहने गिरवी रखकर उन्हें इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करवाने के लिए मद्रास इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी में पढऩे भेजा था. उनके प्रोफेसर के.ए.वी. पंडलाई याद करते हैं कि वैसे तो कलाम के सर्वश्रेष्ठ रहने के कोई प्रत्यक्ष संकेत नहीं थे, फिर भी वे जो पाना चाहते थे, उसके लिए किसी भी बाधा से टकराने का कलेजा रखते थे.'' कलाम बेहद मेहनती थे. साफ गोई, संकल्प, मेहनत और विनम्रता जैसे गुणों ने उन्हें असंभव को संभव करने में मदद की.
कलाम ने मुझे बताया था कि उनकी इच्छा लड़ाकू पायलट बनने की थी और वायु सेना के साक्षात्कार में नाकाम रहने पर वे काफी निराश हुए थे. तभी उन्होंने तय किया था कि अगर वे उड़ नहीं सके तो क्या हुआ, वे उडऩे वाली मशीनें बनाएंगे. उनकी भर्ती जूनियर वैज्ञानिक के रूप में हुई. फिर उनकी बदली बेंगलूरू के एरोनॉटिकल डेवलपमेंट डिविजन में हो गई. उन्होंने अपने दम पर स्वदेशी होवरक्राफ्ट का प्रारूप तैयार किया और उसे देखकर जो लोग प्रभावित हुए, उनमें एम.जी.के. मेनन भी थे. उन्होंने विक्रम साराभाई से कलाम की सिफारिश की जो उस समय भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की योजना बना रहे थे.
भारत के शुरुआती रॉकेट को निर्मित और प्रक्षेपित करने में सफलतापूर्वक मदद करके कलाम जल्द ही साराभाई के चहेते बन गए. साराभाई के उत्तराधिकारी सतीश धवन ने हालांकि एक टीम प्रबंधक के बतौर कलाम की क्षमताओं को निखारा और उन्हें भारत के पहले उपग्रह प्रक्षेपण वाहन एसएलवी3 का परियोजना निदेशक बना दिया. विदेश से डॉक्टरेट की उपाधि हासिल किए उनके कई सहकर्मियों को यह बात बुरी लगी कि इंजीनियरिंग में डिप्लोमाधारी को उनके ऊपर बैठा दिया गया है. उन्होंने कलाम में हीनता बोध भरने की भरसक कोशिश की, लेकिन युवा कलाम को इतनी आसानी से नीचा दिखाना संभव नहीं था.
कलाम ने मुझे बताया था कि उन्होंने इधर के वर्षों को अपने निर्णायक दिनों के तौर पर देखा और मार्गदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ शिक्षक उन्हें उपलब्ध थे. साराभाई से उन्होंने सीखा कि दृष्टि की अहमियत क्या होती है. धवन से उन्होंने जाना कि दृष्टि को मिशन में कैसे तब्दील किया जाता है और त्रुटिहीन प्रणालियां कैसे विकसित की जाती हैं. स्पेस सेंटर के पहले निदेशक मृदुभाषी ब्रह्मप्रकाश से उन्होंने सीखा कि किसी मिशन को हासिल किए जाने योग्य लक्ष्यों में कैसे तब्दील किया जा सकता है. इन सब ने मिलकर कलाम को प्रौद्योगिकी का एक शानदार प्रबंधक बनाया, जो दुर्लभ किस्म का था.
अहम बात यह थी कि कलाम के गुरुओं ने उन्हें यह सिखाया कि नाकामियों से कैसे निबटा जाए. एसएलवी3 का पहला प्रक्षेपण 1979 में किया गया था जो बंगाल की खाड़ी में जा गिरा. धवन ने इसकी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. कलाम को बचा लिया जो इस्तीफा देना चाहते थे. फिर धवन ने कलाम को सिखाया कि कठोर गुणवत्ता नियंत्रण प्रणाली को कैसे सुनिश्चित किया जाए. साल भर बाद एसएलवी3 का सफल प्रक्षेपण किया गया जिसकी वजह से उपग्रह प्रक्षेपण के मामले में भारत छठवां राष्ट्र बन गया. धवन चुपचाप पीछे हट गए और उन्होंने कलाम को इसका श्रेय जाने दिया.
कलाम ने बताया कि प्रक्षेपण के बाद उन्हें बेचैनी महसूस होने लगी. वे नई चुनौतियां पूरी करना चाहते थे. तत्कालीन रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार परमाणु वैज्ञानिक राजा रमन्ना किसी ऐसे शख्स की तलाश में थे जो मरणासन्न रक्षा अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला (डीआरडीएल) में जान फूंक सके और परमाणु हथियारों के वहन के लिए मिसाइलें बना सके. उन्हें जब पता चला कि कलाम किसी नए काम की खोज में हैं, तो उन्होंने इस प्रयोगशाला की कमान उन्हें देने के लिए अपनी सारी ताकत झोंक दी.
ऐसा पहली बार था जब शीर्ष अंतरिक्ष वैज्ञानिक रक्षा परियोजना की कमान संभाल रहा था. मैंने कलाम से पूछा कि जब वे अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत अमन के वाहन बनाने पर इतने फोकस थे तो उन्होंने युद्धक हथियारों के निर्माण का काम क्यों चुना. कलाम ने जवाब दिया, ''मुझे कोई दिक्कत नहीं थी और दोनों के बीच कोई टकराव नहीं दिखता था. ऐसा युद्धक भंडार बनाकर मैं दरअसल अपने देश के लिए अमन-चैन ही पक्का कर रहा था. अब कोई भी देश हम पर हमला करने का दुस्साहस नहीं करता. मैं अमन के हथियार बना रहा हूं.'' यही दिलचस्प विरोधालंकार बाद में जाकर भारत के परमाणु और मिसाइल इतिहास पर लिखी मेरी किताब का शीर्षक बना.
अपने हिप्पी बालों और घिसी हुई चप्पलों वाले कलाम ने जल्द ही डीआरडीएल में नई जान फूंक दी, जो उस समय अग्नि और पृथ्वी मिसाइलें बना रहा था.
वे लक्ष्य तय करते थे, प्रयोक्ताओं की मौजूदगी में कठिन समीक्षाएं करते थे और अपनी विशिष्ट शैली में नतीजे प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिकों को प्रेरित करते थे. कलाम ने मुझे बताया कि वे हमेशा मीटिंग के लिए पूरी तरह तैयार होकर आते थे और जिसे भी उन्होंने कोई काम सौंपा होता था, उससे उदार अनुशासन के साथ जवाब तलब करते थे. उनके एक सहयोगी रंगा राव कहते हैं, ''आपको महसूस ही नहीं होता कि वे आपके बॉस हैं. ऐसा लगता था कि वे पहले से ही मौजूद हैं.'' वे लोग कलाम को पितातुल्य मानते थे. कलाम की शैली कभी भी टकराव वाली नहीं रही और उनके सब्र का बांध बहुत बड़ा था. अपने फैसलों को थोपने की बजाए वे हमेशा आम सहमति बनाने की ओर काम करते थे. वे शायद ही कभी उखड़ते थे. अगर कोई उन्हें निराश करता तो वे बस इतना कहतेः फनी गाइ, या फिर, ये हीरो कौन है? कभी वे कहते उस मशहूर मकैनिक को मेरे पास भेजो.
भारत को जब कोई भी देश मिसाइल प्रौद्योगिकी बेचने को तैयार नहीं था, कलाम ने स्वावलंबन को लक्ष्य बनाया और सारी अहम तकनीकों को देसी तरीके से विकसित किया. डीआरडीएल में अपने कार्यकाल के दौरान कलाम निदेशक के बंगले में रहने नहीं गए और सिर्फ एक कमरे में गेस्ट हाउस में टिके रहे. वे आधी रात के बाद तक जागते रहते थे और परियोजना की प्रगति की समीक्षा करते थे. (मैंने उनसे जितने साक्षात्कार लिए, अधिकतर रात डेढ़ बजे के बाद के हैं जब वे खाली होते थे).
इसका फल भी मिला. भारत के इतिहास में एक वैज्ञानिक संस्था के शानदार कायापलट का श्रेय कलाम को जाता है. नब्बे के दशक के मध्य तक छोटी दूरी की परमाणु सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल पृथ्वी और लंबी दूरी की परमाणु मिसाइल अग्नि का वैलिडेशन हो चुका था. इंडिया टुडे ने 1994 में उन्हें मिसाइल मैन का नाम दिया. यह नाम उनकी स्थायी पहचान बन गया. उस समय कलाम ने मुझे बताया था, भारत अब मिसाइल पावर है जो किसी भी समय और कहीं भी मिसाइलों की शृंखला तैयार कर सकता है. कोई भी प्रतिबंध हमें डरा नहीं सकता.
एक आलोचना यह थी कि कलाम का बस नाम चमक रहा है जबकि उनकी वैज्ञानिक क्षमताओं पर सवाल उठाए गए थे. कलाम ऐसी आलोचनाओं को उदारता से लेते हुए कहते थे, "मैं तो मिसाइल टीम की कामयाबी का एक हिस्सा भर था" उन्होंने मुझे अपने सारे निदेशकों के साथ अकेले में बात करने की आजादी दी थी. उन्होंने मेरी पांडुलिपि को देखने का कभी आग्रह नहीं किया और मजाकिया लहजे में पूछा, "मुझे उम्मीद है कि तुम मुझे मुश्किल में नहीं डालोगे" मैंने उनसे कहा, "मेरा भरोसा रखें, मैं निष्पक्ष रहूंगा" उन्होंने कभी भी शिकायत नहीं की.
कलाम की कामयाबी की वजह से उन्हें रक्षा मंत्री का वैज्ञानिक सलाहकार बना दिया गया और डीआरडीओ का महानिदेशक बना दिया गया. वे लुटियंस दिल्ली में केंद्रीय सचिव स्तर के एक बंगले के अधिकारी थे, फिर भी वे डीआरडीओ के गेस्ट हाउस में एक कमरे में ही टिके रहे और अपनी पुरानी जीवनशैली को उन्होंने छोड़ा नहीं.
कलाम को जो काम सौंपे गए थे, उनमें एक यह था कि वे परमाणु ऊर्जा आयोग के शीर्ष वैज्ञानिकों के साथ भारत के परमाणु युद्धक भंडार को विकसित करें. तब तक कलाम के अविवाहित रहने के बारे में यह जुमला चलने लगा था कि भारत की नई ऊर्जा के पीछे बैचलर की ताकत है. मैंने कलाम से पूछा था कि उन्होंने कभी शादी क्यों नहीं की और वे मुस्कराते हुए बोले थे, "हमारा परिवार काफी बड़ा था इसलिए हमारे बीच कोई एक बिना बच्चे के रह सकता था. मैंने ब्रह्मचारी बनने का फैसला किया!"
जब आइ.के. गुजराल प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कलाम के काम और सादगी भरी जीवनशैली की सराहना करते हुए उन्हें भारतीय विज्ञान का साधु् करार दिया. गुजराल की सरकार ने ही कलाम को भारत रत्न से नवाजा था. इससे पहले विपक्ष ने, खासकर बीजेपी ने गुजराल की काफी आलोचना की थी कि वे भारत की सुरक्षा के लिए पर्याप्त काम नहीं कर रहे थे. गुजराल ने कलाम को सम्मानित कर के उन्होंने कई मोर्चों पर फतह हासिल कर ली थी, "मैं न सिर्फ अपने देश को बल्कि पूरी दुनिया को यह ताकतवर संदेश देना चाह रहा था कि भारत अपनी सुरक्षा को कितनी अहमियत देता है. यह संदेश उनके लिए भी था जो मुसलमानों पर भरोसा नहीं करते हैं. मैंने कलाम को भारत रत्न देकर उनके मुंह बंद कर दिए हैं.''
गुजराल के बाद प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी भी कलाम से उतने ही प्रभावित थे. दूसरी बार सत्ता में आने के कुछ महीनों के भीतर ही 1998 की मई में वाजपेयी ने पांच परमाणु परीक्षणों का आदेश दिया और भारत को परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र घोषित कर डाला. परीक्षणों को देखने के बाद पोकरण में मौजूद कलाम शायराना हो गए. उन्होंने मुझसे कहा, ''हमने जब धरती को हिलाया और वह हमारे कदमों के नीचे से दरकी, तो मैं आनंदित हो उठा. मुझे यह भी लगा कि हमने परमाणु सत्ताओं के वर्चस्व को तोड़ दिया है. अब एक अरब की आबादी वाले हमारे देश को कोई भी यह नहीं कह सकता है कि हमें क्या करना है. हमें जो करना है, वह खुद हम तय करेंगे.''
कलाम 1999 में डीआरडीओ से सेवानिवृत्त हुए और उन्होंने अपना शेष जीवन अकादमिक पहल को समर्पित करने की योजना बना ली, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. बीजेपी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने 2002 में उन्हें राष्ट्रपति पद के लिए चुना जिसकी आंशिक वजह उनका मुस्लिम होना था. यह सत्ताधारी दल के लिए उपयुक्त था, क्योंकि वह इससे अपने धर्मनिरपेक्ष होने का प्रमाण दे सकता था. मैंने जब उन्हें बताया कि बहुत से लोग ऐसा कह रहे हैं कि उन्हें उनके धर्म की वजह से राष्ट्रपति बनाया गया है, तो उन्होंने जवाब दिया, ''वाकई? ईमानदारी से कहूं तो मैंने इस तरह से कभी सोचा ही नहीं. मैंने तो खुद को हमेशा भारतीय माना है.''
यह विडंबना ही कही जाएगी कि जिस शख्स ने जिंदगी भर एक कमरे में जीवन बिताया, वह अब देश के सबसे बड़े आवास में रहने जा रहा था. मैंने जब बताया कि उन्हें अब औपचारिक कपड़े पहनने होंगे और खाने की मेजबानी करनी होगी, तो वे बोले, ''यह मेरे लिए नया अनुभव होगा, लेकिन आप खाना खाते समय भी काफी काम निबटा सकते हैं.''
कलाम का योगदान क्या था? अपनी पुस्तक लीडिंग माइंड्सः ऐन एनाटॉमी ऑफ लीडरशिप में हावर्ड गार्डनर ने दूरदर्शी नेता के बारे में लिखा है कि वह ऐसा शख्स होता है ''जो किसी मौजूदा कहानी से जुडऩे में या फिर सुदूर या हालिया अतीत की किसी दास्तान को जिंदा करने में संतोष नहीं पाता. ऐसा शख्स वास्तव में नई कहानी रचता है, ऐसी जो अधिकतर लोगों को पहले से पता ही न हो, और इस कहानी को दूसरों तक प्रभावशाली तरीके से पहुंचाने में एक हद तक कामयाबी हासिल कर लेता है.''
मेरा मानना है कि कलाम ऐसे ही नेता थे. उनकी जिंदगी अपने आप में असाधारण आख्यान थी. एक मामूली मांझी का बेटा जिसने भेदभाव और गरीबी की दीवार को लांघते हुए पहले शीर्ष वैज्ञानिकों की कतार में अपनी जगह बनाई और फिर भारत को अंतरिक्ष, मिसाइल और परमाणु ताकत बनाने में अहम योगदान दिया. इसके बाद उसे देश के सर्वोच्च पद के लिए चुना गया जहां उसने अपनी सहजता और विनम्रता से ''जनता का राष्ट्रपति होने की पहचान अर्जित की. इन सब ने मिलकर अवुल पकिर जैनुलआबदीन अब्दुल कलाम को सच्चा भारतीय नायक बनाया है.