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लक्ष्मीनामा के लेखक का दावा, भारत में धर्म का इस्तेमाल अपनी आर्थिक समृद्धि के लिए

लेखक मंच पर 'साहित्य आजतक' का शुरुआती कार्यक्रम अंशुमान तिवारी और अनिंद्य सेनगुप्त द्वारा लिखी पुस्तक 'लक्ष्मीनामा' धर्म - अर्थ - काम - मोक्ष की महागाथा पर चर्चा से हुआ.

लक्ष्मीनामा लक्ष्मीनामा
मोहित पारीक
  • नई दिल्ली,
  • 07 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 7:16 PM IST

राजधानी के प्रगति मैदान में लगे विश्व पुस्तक मेले में लेखक मंच पर 'साहित्य आजतक' ने अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराई. यह कार्यक्रम कितना महत्त्वपूर्ण और शानदार था इसका अंदाज इसी से लगा सकते हैं कि आयोजक राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने 'आज तक' को पहले केवल 6 बजे से 7.15 बजे तक एक सत्र के लिए समय उपलब्ध करा रखा था, पर लेखकों के महत्त्व, किताबों पर बातचीत और देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित चैनल द्वारा शब्द संसार को दी गई अहमियत को देखते हुए 'साहित्य आजतक' को 5.45 से 8 बजे तक का समय दे दिया. उस पर भी दर्शकों और लेखकों के उत्साह के मद्देनजर कार्यक्रम 8. 40 बजे तक खिंच गया.

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लेखक मंच पर 'साहित्य आजतक' का शुरुआती कार्यक्रम अंशुमान तिवारी और अनिंद्य सेनगुप्त द्वारा लिखी पुस्तक 'लक्ष्मीनामा' धर्म - अर्थ - काम - मोक्ष की महागाथा पर चर्चा से हुआ. जिसमें लेखक अंशुमान तिवारी पाठकों से रूबरू हुए. उनका कहना था कि 'लक्ष्मीनामा' ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित एक ऐसी किताब है, जिसने विश्व की कई सभ्यताओं से रूबरू कराने के साथ ही पहली बार यह स्थापित करने की कोशिश की है कि दुनिया से भारत का संबंध केवल धर्म, संस्कृति और कला के दृष्टिकोण से नहीं बल्कि व्यापार के लिहाज से हुआ था. शुरुआत उन्होंने तेरहवीं शताब्दी की एक कहानी से की. फारस का एक व्यापारी, गुजरात के तीन बंदरगाहों से व्यापार कर रहा था और उस पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर उसका काफी असर था. एक दिन उसे लगा कि उसे इस इलाके में एक मस्जिद बनानी चाहिए. वह अपना प्रस्ताव लेकर स्थानीय व्यापारियों के पास गया, तो उन्होंने सोमनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी से मिल कर उसे जमीन दिलाई. स्थिति यह थी कि उस मस्जिद का ढांचा तक मंदिर के मुख्य पुजारी ने पास किया था. यह बात संस्कृत के दो और फारसी के एक शिलालेख में लिखी गई है.

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विश्व पुस्तक मेला 2019: मेले में कहां क्या है, यहां पढ़ सकते हैं पूरी डिटेल

अंशुमान तिवारी, जो इंडिया टुडे हिंदी के संपादक हैं का कहना था कि यह बात जब मैंने पढ़ी तो मुझे यह समझ आया कि भारत की जो पूरी शक्ति है चार- साढ़े चार हजार साल की, उसमें गुप्त बाजार और गुप्त विचार एक साथ खड़े होते हैं. सभ्यता को बनाने वाली तीन शक्तियां हैं. एक है राजवंश, दूसरी बड़ी शक्ति है व्यापार, तीसरी धर्म है. 'लक्ष्मीनामा' एक ऐसी पुस्तक है, जो आपको धर्म के उस संस्थात्मक पहलू तक ले जाएगी, जहां आपको यह जानकर अचरज होगा कि दुनिया कि सारी पहली तकनीकें, दुनिया कि सारी पहली लाइब्रेरी, दुनिया कि सारी पहली चिकित्सा पद्धति, संगीत, वास्तु आदि धर्म की देन हैं. भारत इस मामले में विलक्षण देश है कि उसने अपने धर्म और धार्मिक उदारता का इस्तेमाल अपने को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए किया है.

'लक्ष्मीनामा' इस बात को रेखांकित करती है कि एक समय पूरी दुनिया का सोना और चांदी भारत पहुंच रहा था. भारत को व्यापार में सिर्फ सोना और चांदी चाहिए था. ऐसा लगता था कि पूरी दुनिया केवल भारत के लिए सोना और चांदी का उत्पादन कर रही है, और ऐसा इसलिए संभव था कि भारत में दुनिया के किसी भी धर्म को स्थान देने की जगह थी. इसका मकसद था कि अगर आप आर्थिक समृद्धि लेकर इस देश में आते हैं, तो आपके विचार, आपके धर्म और आपकी आस्था को पूरा संरक्षण देंगे. क्वांग जाऊ में कुबलई ख़ान के नाम से बने शिव मंदिर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि क्वांग जाऊ नौसैनिक अड्डा था, जहां से चोल वंश के व्यापारी चीन, जापान तक कारोबार करते थे और उन्होंने कुबलई ख़ान के नाम पर वहां मंदिर बनाया. यह भारत की किसी भी चीज़ को आत्मसात करने लेने की ताकत ही थी कि भारत सोने की चिड़िया बना. दुनिया में जब भी कभी प्रतियोगिता हुई, वह भारत को ध्यान में रखकर हुई. चाहे वह मसाला व्यापार हो, कपड़ा या हाल का उदारीकरण.

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विश्व पुस्तक मेला: पहले ही दिन साहित्य आजतक की धमाकेदार मौजूदगी

धर्म और अर्थ के गठजोड़ पर संचालक सईद अंसारी के सवाल पर लेखक का जवाब था कि जब आधुनिक अर्थशास्त्र का चिंतन शुरू हुआ तो भारत में वेद, उपनिषद और पुराणों के अलावा एक बड़ा काल बचता है, जिसमें संहिताएं रचीं गईं. ऐसी करीब दो हजार संहिताएं उपनिषदों के बाद व पुराणों से पहले सृजित की गईं, पर इन्हें हम संरक्षित न रख पाए. ये संहिताएं भारत के आर्थिक, सामाजिक और औद्योगिक जीवन का नियम तय करती हैं. चाणक्य का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे उनकी पाण्डुलिपी के साथ संहिताओं का जिक्र मिला था और कैसे पैसा कमाने के लिए पैसे की जरूरत पड़ती है कि कौटिल्य थ्योरी को एडम स्मिथ ने कैपिटलिज्म के पीक पर जाकर जगह दी. अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि   उन्नीसवीं- बीसवीं शताब्दी तक समूची ईसाइयत और इस्लाम इस बात पर उलझा रहा कि कर्ज देना ठीक है या नहीं. जबकि भारत में छठी शताब्दी में कर्ज के प्रचलन का जिक्र मिलता है. भारत की प्राचीन व्यवस्थाएं कालाधन, छोटे कर, यहां तक धन कितने तरीके का होता है यह भी बताती हैं. हमारा ग्रंथ यहां तक बताता है कि अगर राजा के पास सरप्लस पैसा है तो उसे व्यापारी के पास इन्वेस्ट कर देना चाहिए और उसके ब्याज से शासन चलाना चाहिए. इसीलिए भारतीय समाज के पास हमेशा से सत्ता से ज्यादा ताकत रही है. यह शक्ति मुक्त व्यापार और मुक्त विचार में थी.

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लेखक ने दावा किया कि यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि भारत की मदद के बिना दुनिया भर में कोई भी बिजनेस लीडर बन ही नहीं सकता. हमें यह जानना चाहिए कि भारत आर्थिक उदारता का देश है. इस उदारता ने हमें एक निरंतरता दी है. भारत का इतिहास विभाजक नहीं बल्कि एक संयोजक इतिहास है. दुनिया के सबसे पुराने और जीवंत शहर भारत में हैं. मथुरा और वाराणसी जैसे शहर साढ़े चार हजार साल से भी जीवित हैं, तो इन दो वजहों से कि यहां या तो धर्म का केंद्र रहा या व्यापार का केंद्र रहा. दुनिया का इतिहास भौगोलिक इतिहास और राजाओं के युद्ध का इतिहास रहा है. एक इतिहास राजनीतिक- भौगोलिक सीमाओं के दायरे में रहा है. दूसरा मनुष्यता का सार्वजनिक इतिहास रहा. उन्होंने बिल्कुल नए सिद्धांत कम्युनिटी साइंस ऑफ रिलीजन का जिक्र करते हुए कहा कि यह हमें यह बताती है कि हमारे मनोजगत में जहां से भाषा निकलती है वहीं से धर्म निकलता है. भाषा मनुष्य ने संवाद के लिए और दूसरे से जुड़ने के लिए की और धर्म का आविष्कार भी दूसरे से जोड़ने के लिए किया. दुनिया के सबसे पुराने मंदिर के निर्माण का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि धर्म ने मनुष्य का निर्माण नहीं किया बल्कि मनुष्य ने धर्म का निर्माण किया.

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यहां यह उल्लेखनीय है कि 'आज तक' वह एकलौता टीवी चैनल है, जिसने 'साहित्य आजतक' के माध्यम से हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी के सालाना साहित्यिक महाकुंभ आयोजित करने के अलावा विश्व पुस्तक मेले के लेखक मंच पर भी शानदार ढंग से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. कार्यक्रम का अगला सत्र ‘विश्वकप में भारतः उम्मीदें व सपने’ था, जिसमें 'टीम लोकतंत्रः भारतीय क्रिकेट की शानदार कहानी' पुस्तक के लेखक प्रख्यात पत्रकार राजदीप सरदेसाई के साथ 1983 विश्वकप विजेता भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य रहे पूर्व क्रिकेटर मदनलाल से सईद अंसारी ने बातचीत की.

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