
विश्व पुस्तक मेले में लेखक मंच पर 'साहित्य आजतक' का दूसरा सत्र क्रिकेट को समर्पित रहा. विषय था 'विश्व कप में भारतः उम्मीदें और सपने' और संदर्भ बनी प्रख्यात पत्रकार राजदीप सरदेसाई की क्रिकेट पर लिखी किताब 'टीम लोकतंत्रः भारतीय क्रिकेट की शानदार कहानी.' उनके साथ चर्चा के लिए मौजूद थे 1983 विश्वकप विजेता भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य रहे पूर्व क्रिकेटर मदनलाल. संचालक सईद अंसारी ने दोनों वक्ताओं का परिचय देते हुए कहा कि जिसने भी 1983 के विश्वकप मुकाबले को देखा या उसके बारे में सुना होगा, उसे शानदार खिलाड़ी मदनलाल का परिचय देने की जरूरत नहीं. इसी तरह एक निडर पत्रकार के रूप में राजदीप सरदेसाई को सभी जानते हैं, पर यहां वह क्रिकेट पर लिखी अपनी किताब के साथ ही इस खेल से अपने जुड़ाव पर चर्चा करेंगे.
राजदीप सरदेसाई ने गोवा से भारतीय टेस्ट टीम का हिस्सा बने देश के एकलौते क्रिकेटर अपने पिता दिलीप सरदेसाई का जिक्र करते हुए कहा कि वह इस देश के सबसे छोटे राज्य से आते थे. वह एक छोटे से शहर से, छोटे से परिवार के होकर भी एक बड़े सपने के साथ टेस्ट क्रिकेटर बन पाए. आलम यह था कि जब उन्होंने टेस्ट खेला तब गोवा पुर्तगाल का हिस्सा था और भारत की ओर से खेलने के लिए उन्हें वर्ल्ड परमिट लेना पड़ा था. तो मेरे किताब की कहानी उन्हीं से शुरू होती है कि अगर आपके पास टैलेंट है तो आपको कोई रोक नहीं सकता. उनकी तरह के ढेरों लोग हैं. आज की तारीख में महेंद्र सिंह धोनी को ले लीजिए, जिन्होंने छोटे शहर से अपने सपनों के साथ आकर देश के लिए खेला. इस लिहाज से देश के लिए यह गर्व की बात है क्रिकेट में पूर्ण लोकतंत्र है. ऋषभ पंत को ही देख लीजिए..
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आज की तारीख में कई क्षेत्रों में हमेशा वंशवाद की बात होती है. राजनीति में, व्यापार में यह चल भी रहा है, पर क्रिकेट में ऐसा नहीं है कि आपके साथ कोई बड़ा सरनेम लगा है, इसलिए टैलेंट न होने पर भी आप क्रिकेटर बन जाएंगे. क्रिकेट में हुनर, जज्बा और टैलेंट के बिना कोई हो ही नहीं सकता. क्रिकेट में परिवारवाद के लिए कोई जगह नहीं है. क्रिकेट में न तो कोई वोट बैंक है, न रिजर्वेशन है, सिर्फ टैलेंट है. पूर्व क्रिकेटर मदनलाल ने कहा कि इस किताब में जो ग्यारह खिलाड़ी शामिल हैं, वे सिर्फ देश के लिए खेलना चाहते थे. इसमें कोई अमीर-गरीब नहीं है. यह किताब यह साबित करती है कि खेल एक पैशन है. उन्होंने अंग्रेजी में कहा 'आपके जीवन की सबसे ताकतवर चाहत आपको खिलाड़ी बनाती है. सईद अंसारी ने असहमति जताते हुए कहा कि मुझे नहीं लगता कि यहां भेदभाव नहीं है. आखिर यहां भी क्षेत्रवाद की खबरें तो सुनाई देती ही हैं.
जवाब में पूर्व क्रिकेटर मदनलाल ने कहा कि मैं चयनकर्ता रहा हूं. मैं जानता हूं कि ऐसा नहीं है. 14 खिलाड़ियों के चयन में 10-11 तो यहां जितने लोग बैठे हैं, हम आप मिल कर भी बना सकते हैं. असली दिक्कत दो-तीन खिलाड़ियों को लेकर होती है. तो इसमें जिस देश में हम जा रहे हैं, उसकी टीम कैसी है, मौसम कैसा होगा, इसका ध्यान रखकर भी खिलाड़ी का चयन किया जाता है. 'साहित्य आजतक' के बैनर तले विश्व पुस्तक मेला 2019 में लेखक मंच पर ब्रिटेन में हुए एक विश्वकप के दौरान भारतीय टीम के चयन के अनुभवों का जिक्र करते हुए मदनलाल ने कहा कि राहुल द्रविड़ के चयन को लेकर एक घंटे से अधिक चर्चा हुई थी, और तब जाकर उनका चयन पाया. उन्होंने वहां कमाल का खेला. इससे यह साबित होता है कि सलेक्शन के स्तर पर कभी भेदभाव नहीं होता. राजदीप सरदेसाई का कहना था कि किसी दौर में ऐसा होता था, जब महाराजा विजयानगरम ने लाला अमरनाथ को इंग्लैंड से वापस जाने के लिए कह दिया था.
बिशन सिंह बेदी और अपने पिता दिलीप नरायन सरदेसाई का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इन लोगों का कोई कनेक्शन नहीं था. हम पत्रकारों को देश का सकारात्मक पक्ष भी देखना चाहिए. आज हमारे देश में तीस ऐसे खिलाड़ी हैं, जो आस्ट्रेलिया की दो टीमों को हरा सकते हैं. आने वाले बीस सालों में क्रिकेट के क्षेत्र में और भी बड़े खिलाड़ी निकलेंगे. सचिन तेंदुलकर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जब वह रिटायर हुए, तो कहा गया कि अगला तेंदुलकर कहां होगा? पर अब आप विराट को देखिए जिसने तेंदुलकर को भी पीछे छोड़ दिया. एक वक्त ऐसा भी आएगा, जब कोई खिलाड़ी विराट को भी पीछे छोड़ देगा. संचालक सईद अंसारी के यह पूछने पर कि उन्हें अपनी किताब 'टीम लोकतंत्र' के 11 खिलाड़ी चुनने में कितनी मशक्कत करनी पड़ी, तो राजदीप का जवाब था, जिन्हें मैं जानता था उन्हें पहले चुना.
महेंद्र सिंह धोनी के साथ हुई बातचीत का जिक्र करते हुए राजदीप ने बताया कि भले ही धोनी को पकड़ने में उन्हें सालभर लगे, पर जब धोनी मिले तो उन्होंने चार घंटे का समय दिया. उनका कहना था कि आपने उनपर फिल्म देखी होगी, पर किताब में पूरा इमोशन सामने आता है. धोनी से हुई बातचीत, जिसको सरदेसाई ने अपनी किताब में भी जगह दी है, का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मैंने धोनी से पूछा था कि जब वह खड़गपुर स्टेशन पर रेलवे के इंप्लॉई थे, तो उनको ग्रेड सी की नौकरी मिली. तो जब वह वहां थे, तो क्या कभी सोचा था कि एक दिन देश के नंबर वन खिलाड़ी बनेंगे, वर्ल्ड कप जीत कर लाएंगे? धोनी ने बहुत अच्छा जवाब दिया था कि जब मैं ग्रेड सी इंप्लॉई था तो मेरे सामने केवल एक ही लक्ष्य था कि मैं ग्रेड बी कैसे बनूंगा. मैंने उनसे पूछा कि आखिरी ओवर की बॉल पर आप कितना प्रेशर महसूस करते हैं? धोनी का जवाब था कि ऐसा नहीं है कि प्रेशर मुझ पर ही होता है, यह प्रेशर तो बॉलर पर भी होता है कि वह धोनी को बॉल फेंक रहा है. फिर उन्होंने वही बात दोहराई कि इससे बड़ा प्रेशर तो खड़गपुर में था जब मैं ग्रेड सी इंप्लॉई था. मेरे सीनियर का कहना था कि बिना टिकट लोगों को रोको, जबकि उनकी बहुतायत थी. जिसने सी ग्रेड की नौकरी कर ली, उसको यह प्रेशर डिगा नहीं सकता.
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राजदीप सरदेसाई ने आगे कहा कि इस किताब का मकसद यही है कि और भी लोग इस किताब को पढ़ें, प्रेरणा लें और आगे आएं. देश में और भी धोनी, और भी कोहली आगे आएं. टीवी पर हम लोग निगेटिव दिखाते हैं. मंदिर-मस्जिद दिखाते हैं, पर क्रिकेट में मंदिर-मस्जिद नहीं है, यहां सिर्फ भारतीयता है. वर्ल्ड कप में भारत के भविष्य पर मदनलाल का कहना था कि वर्ल्ड कप आप तभी जीत सकते हैं, जब टीम बेहतरीन हो. इस समय हमारे पास बेहतरीन खिलाड़ी हैं. राजदीप का कहना था कि वर्ल्ड कप हम जीतें या नहीं, पर हम दुनिया में नंबर वन हैं. अगर हम समाज के हर फील्ड में क्रिकेट जैसी व्यवस्था को अपना लें तो जीवन के हर क्षेत्र में हम नंबर होंगे. अपनी किताब से उन्होंने आईपीएल टीम के एक खिलाड़ी का जिक्र करते हुए कहा कि हर क्षेत्र में अगर आप दीवार तोड़ते हैं, तो हर क्षेत्र में आप अवश्य नंबर वन होंगे. हर वह क्षेत्र जहां समान मौका होगा, भारत नंबर वन बन सकता है.... और यह नेता नहीं करेंगे. जनता से होगा.