
साहित्य आज तक के दूसरे दिन तीसरे स्टेज सीधी बात में दोपहर तीन बजे साहित्य कल आज और कल पर चर्चा हुई. साहित्य क्या है? इसका कल कैसा था, आज कैसा है और कल यह कैसा होगा, इस पर चर्चा के लिए हिंदी की चर्चित कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ और दिव्य प्रकाश दुबे मौजूद थे.
मनीषा ने कहा कि अब साहित्य को भी अपग्रेड होना पड़ेगा. आज कबीर, रसखान से लेकर महादेवी वर्मा तक यूट्यूब पर हैं. हमारा आज ऐसा हो गया है जिसमें कल भी शामिल है. आज हम टाइम मशीन के युग में जी रहे हैं. ये हमारी ताकत है.
दिव्य प्रकाश दुबे ने कहा कि जवान कौम तभी काम करती है, जब आगे का प्लान हो. हमारा काम ब्रिज का है.
आज की चलती-फिरती किताबों के सवाल पर दिव्य ने कहा कि जरूरी नहीं कि हर किताब कोई मैसेज दे. हर किताब से किसी संदेश की उम्मीद करना ज्यादती है.
किताब में मैसेज पर मनीषा ने कहा कि लेखक समाधान नहीं दे सकता. लेखक समाधान देते ही फेल हो जाता है.
मनीषा ने कहा कि जब मैं पात्र गढ़ रही होती हूं तो वो मेरे हाथ से फिसल जाता है. वो अपनी मनमानियां करता है.
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मनीषा ने कहा कि किताब का क्रेज कभी खत्म नहीं होगा. मृदुला गर्ग और निर्मल वर्मा मेरे पसंदीदा लेखक हैं. लेकिन प्रेमचंद को भी खारिज नहीं किया जा सकता.
आज की लेखनी और कल की लेखनी में अतर के सवाल पर मनीषा ने कहा कि आज उतना मुश्किल तो नहीं है,
आज समाज में कई वर्ग हैं. हर वर्ग को सामने आना चाहिए. आज लेखक बनना आसान है. आज मोबाइल इंटरनेट के चलते लिखा पूरी दुनिया तक पहुंच रहा है.
दिव्य ने कहा कि मैं कोशिश करता हूं कि ऐसी किताब लिखूं कि एक सिटिंग में खत्म हो जाए. मैं चाहता हूं कि वीकेंड पर मूवी देखने जाने की बजाए लोग एक बार में किताब पढ़ लें.
मनीषा ने कहा कि लोग आज भी उपन्यास खरीद कर पढ़ना चाहते हैं. अब किंडल आ गया है तो उससे और आसानी हो गई है. आजकल ऑडियो बुक भी आ गई है. इसलिए मुझे लगता है कि लोगों की पढ़ने की आदत तो छूट जाएगी लेकिन इससे साहित्य से हमारा नाता खत्म नहीं होगा.
आज जिस तरह से लिखा जा रहा है, क्या उससे संतुष्ट हैं? इस सवाल पर मनीषा ने कहा कि आज एक साथ 6 पीढ़ियां लिख रही हैं. यानि बहुत सारे लोग अलग-अलग दौर को लिख रहे हैं. इसलिए आज का साहित्य बहुत सारी चीजों को लेकर आ रहा है. साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं है, बल्कि साथ में चल रहा है. हालांकि आज के साहित्य में फिल्टर नहीं है. साहित्य में बहुत सारे वर्ग हैं. आज हर तरीके के पढ़ने वाले लोग हैं.
दर्शक दीर्घा में बैठीं एक सेवानिवृत्त शिक्षिका ने कहा कि पुस्तक संस्कृति बचाने के लिए पुस्तकालय होना चाहिए. हम इतने बड़े मॉल खोलते हैं. तो क्यों न वहां भी एक छोटा सा पुस्तकालय हो.
'शिगाफ', 'शाल भंजिका' और 'पंचकन्या' जैसे उपन्यासों की लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ की पर्यावरण में गहरी रुचि है. इनके पास दुर्गम यात्राओं के अनुभव हैं और यह कई क्षेत्रों में सक्रिय हैं. इनकी अन्य प्रकाशित कृतियों में 'कठपुतलियाँ', 'कुछ भी तो रूमानी नहीं', 'केयर ऑफ स्वातघाटी', 'गन्धर्व-गाथा', 'बौनी होती परछाईं' और'अनामा' क़ाफी मशहूर हैं. इन्होंने कविताएं भी लिखी हैं और जस्थान साहित्य अकादमी के चन्द्रदेव शर्मा सम्मान सहित कई दूसरे पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं.
लेखक और गीतकार दिव्य प्रकाश दुबे ने कुछ लघु फिल्में भी बनाई हैं. वह अंग्रेजी में कहानी संकलन 'टर्म्स एंड कंडीशंस अप्लाई' से चर्चित हुए. बाद में यही किताब हिंदी में 'शर्तें लागू' के नाम से छपी. उन्होंने 'मसाला चाय' और 'मुसाफिर कैफे' के नाम से लघु उपन्यास भी लिखा और 'स्टोरीबाजी' नामक एक नई कला पर काम कर रहे हैं. इसके अलावा दिव्य 'संडे वाली चिट्ठी', 'टॉक्स एंड फंक्शंस' और 'पब्लिशिंग' नामक ब्लॉग भी चला रहे हैं.
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