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साहित्य आजतक: आलोक पुराणिक ने बताई अच्छे व्यंग्यकार के लिए ये 3 शर्तें

आलोक पुराणिक ने कहा कि मैंने अर्थशास्त्र पढ़ लिया, इसलिए व्यंग्यकार के अलावा कुछ और नहीं बन सका. उन्होंने कहा कि जिस माहौल में हम रहते हैं, उसमें व्यंग्य हमारे आसपास है. बस उसे कैप्चर करना है.

साहित्य आजतक के मंच पर व्यंग्यकार आलोक पुराणिक. साहित्य आजतक के मंच पर व्यंग्यकार आलोक पुराणिक.
राहुल विश्वकर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 16 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 8:40 PM IST

साहित्य आजतक के मंच पर हल्ला बोल में पांचवा सत्र टेढ़ी बात का रहा. इस सत्र में जाने-माने व्यंग्यकार आलोक पुराणिक ने अच्छे व्यंग्यकार के लिए जरूरी गुण बताए. कार्यक्रम में डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी, अर्चना चतुर्वेदी और प्रेम जनमेजय भी शामिल हुए. इस सत्र का संचालन संजय सिन्हा ने किया.

व्यंग्यकार आलोक पुराणिक ने कहा कि मैंने अर्थशास्त्र पढ़ लिया, इसलिए व्यंग्यकार के अलावा कुछ और नहीं बन सका. उन्होंने कहा कि जिस माहौल में हम रहते हैं, उसमें व्यंग्य हमारे आसपास है. बस उसे कैप्चर करना है. उन्होंने कहा कि विराट कोहली उबर टैक्सी का विज्ञापन कर रहे हैं. सवाल उठता है कि क्या वे उबर में चलेंगे. इस देश की आर्थिक स्थिति देखने के बाद व्यंग्य पढ़ना और समझना बेहद आसान हो जाता है. उन्होंने कहा कि व्यंग्य मेरे लिए विसंगतियों का रचनात्मक चित्रण है. पुराणिक ने कहा कि सुबह से शाम तक जब मैं टीवी देखता हूं तो बगदादी 20 बार मार दिया जाता है. उन्होंने तंज किया कि बगदादी आज के टीवी चैनलों का मनरेगा है.

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उन्होंने कहा कि हरिशंकर परसाई ने हम लोगों के काम को स्थापित किया है. व्यंग्यकार मूलत: बेहद संवेदनशील होता है. उसको टेढ़ापन और विसंगतियां बेहद साफ दिखाई देती हैं. व्यंग्यकार अगर बदमाश नहीं है तो वो व्यंग्य नहीं लिख सकता. व्यंग्यकार होने की पहली शर्त है कि आपको संवेदनशील होना पड़ेगा. दूसरी शर्त है कि आपको बेहतरीन ऑब्जर्वर होना होगा और तीसरी शर्त है कि आपको खूब पढ़ाई करनी होगी.

प्रेम जन्मय ने कहा कि परसाई का समय और हमारा समय अलग है. परसाई ने मुझसे कहा था मेरी पीढ़ी ने बाप को नंगा नहीं देखा है, तुम्हारी पीढ़ी देख सकती है. इसलिए हम अपने आपको संकुचित न करें.

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आलोक पुराणिक ने कहा कि रात 11 बजे भी मेरे दिमाग में कुछ आता है तो मैं फौरन लिख लेता हूं. व्यंग्यकार फुल टाइम जॉब है. चौबीस घंटे दिमाग में आइडिया आते हैं, लेकिन उसे डायरी में उतार पाना अनुशासन का काम है. कविता का एक अनुशासन होता है. एक अच्छा शब्द हटा नहीं सकते और एक गलत शब्द जोड़ नहीं सकते.

आलोक पुराणिक ने कहा कि इश्तेहार से वे व्यंग्य निकालते हैं. उन्होंने कन्फ्यूजन पर एक रचना सुनाई. अमिताभ बच्चन के विज्ञापन पर उन्होंने कहा कि मैं टीवी में देख रहा था कि अमिताभ कल्याण ज्वैलर का ऐड कर रहे थे. अगले विज्ञापन में वे बताते हैं कि मुथूट फाइनेंस में गहने गिरवी रख देना चाहिए. और तीसरे विज्ञापन में कहते हैं कि गुजरात टूरिज्म के तहत कुछ दिन को गुजरात में गुजारिए. मैं सोचता हूं कि अगर गहने गिरवी रखकर गुजरात घूमना हो तो ये कहां कि बुद्धिमानी है. इतना सोचते ही वे अगले विज्ञापन में दिखे कि बोरोप्लस की क्रीम से त्वचा सुंदर रहती है.

अमिताभ 75 किस्मों का प्रोडक्ट बेचते हैं. मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मुझे अभिषेक बच्चन खाली दिखते हैं. तभी मेरे दिमाग में आया कि अमिताभ को इतना काम क्यों करना पड़ता है. यहां से मेरे मन में कन्फ्यूजन आया कि इस उम्र में एक व्यक्ति को इतना काम करना पड़ रहा है ये बुजुर्ग होने की समस्या है या फिर एक बुजुर्ग को इतने आइटम बिकवाने के लिए मिल रहे हैं, इसे हम इकोनॉमी के लिए अच्छा मानें, ये मेरे लिए कन्फ्यूजन है. 

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