
मैं तो देश के साथ हूं, किसी के खिलाफ नहींः प्रसून
देशप्रेम का क्या दोष है. देशप्रेम था इसलिए देश आजाद हुआ. कुछ लोग थे जिन्हें देश से प्रेम था. नहीं होता तो हम आज भी उसी दौर में रहते. देश में अलग-अलग मंचों को व्यवस्थित करने के लिए व्यवस्था है. इसी व्यवस्था को संतुलित करने की जरूरत है. आप पहले देश के साथ हो जाइए. आप किसी के खिलाफ मत होइए. जब आप देश के साथ होंगे तो आप की एंकरिंग मजबूत हो जाएगी. अगर कोई परिवर्तन देश के लिए अच्छा है तो आप उससे जुड़ेंगे. लोग कहते हैं कि आपने सेंसर बोर्ड क्यों चुना. क्यों गए उसमें. मैंने कहा कि मैं ये करूंगा. मुझे इसमें शामिल होना चाहिए. क्योंकि मैं देश के लिए कुछ करना होता है.
सेंसर बोर्ड में मैं विवाद नहीं विचार-विमर्श ले आया
कोई कलाकर समाज को नुकसान पहुंचाने के लिए कलाकार नहीं बनता. इससे पहले मुझे कोई अनुभव नहीं था कि किसी कला को अलग नजरिए से देखना. सेंसर बोर्ड में आने के बाद मुझे नया नजरिया मिला चीजों को देखने का. मैं चीजों को हर नजर से देखने की कोशिश की. मैं विवादों के बजाय विचार-विमर्श करते हैं.
निंदक नियरे राखिए...गले पर मत चढाइए
जब परिवर्तन होता है कुछ लोग एकदम डिनायल में आ जाते हैं. सभी है अपने तो दुश्मनी की बात कहां. परिवर्तन में सकारात्मक है तो उसे स्वीकार करो. लोग मानकर बैठे हैं कि मुझे विरोध ही करना है. निंदक नियरे राखिए...लेकिन निंदक को गले पर मत बिठाइए कि वो आपको पैरालाइज्ड कर दे. निंदा से रास्ता निकलना चाहिए. निंदा से किसी को खत्म नहीं करना चाहिए.
चलो कुछ साल सकारात्मक चीजें देखते हैं, हमेशा निगेटिव क्यों सोचें
मैं लंदन में एक इंटरव्यू कर रहा हूं. मैं मूलतः पत्रकार भी नहीं हूं. मैं विदेश में बैठकर अपने प्रधानमंत्री के सामने देश की बुराई नहीं कर सकता. मैं तो नहीं कर सकता. मुझे समझ नहीं आता कि लोग क्या चाहते हैं. सोलोमन द्वीप पर पेड़ गिराने के लिए लोग उसे कई दिनों तक गाली देते हैं. आखिर में पेड़ गिर जाता है. हमारे देश में भी ऐसे लोग हैं. जो देश को गाली देते रहते हैं. क्या मैं अपने देश के वट वृक्ष को गिरते देख लूं. चलिए कुछ साल सुंदरता देख ले. अपनी ताकत देखें. अपनी शक्तियों की चर्चा करे. शायद इससे हमारे देश में नई शक्ति का संचार कर सकते हैं. क्योंकि देश की निंदा करने से कुछ नहीं मिला.
लोग जल्दी जजमेंटल हो जाते हैं, ये गलत है
साहित्य जगत में बदलाव के संकेत हैं. लेकिन मुझे लगता है कि दिल बड़ा करने की जरूरत है. अगर हमारे लोकतंत्र में कही दादगिरि आ गई है तो इसका हल ये है कि लोगों की ज्यादा से ज्यादा मंच मिले. मैं स्वयं को समझूं कि उससे पहले लोग मुझे समझ चुके होते हैं. मुझे खुद को समझने तो दो. अगर नई चीज आपके हिसाब से चलती है तो लोग उसे बौद्धिक मानते हैं. नहीं तो उसे बुरा भला कहते हैं.
सकारात्मकता ही विकास का पहली सीढ़ी है
हमारे देश में धर्मों, संप्रदायों और विचारों का टकराव बरसों से चला आ रहा है. हमें समाधान की तरफ सोचते हुए प्लानिंग करनी होगी. आर्टिस्ट के लिए तो मैं कहता हूं एक कलाकार के बीच उसके श्रोताओं के बीच का संबंध और विश्वास. ये जब तक चलेगा लोग कलाकारों की बात सुनते हैं. हमें कोई भी बात सुनने के लिए पूरे संदर्भ को सुनना चाहिए. ताकि सिर्फ एक ही बात को आगे क्यों ले जाएं. जीवन में दिक्कतें सबके आती है. पिता बोले बेटे से अब तू लगातार बर्बाद होगा. रोजी-रोटी के लिए दर-दर भटकेगा. क्या ऐसी बातें करें लोगों से. इसलिए सकारात्मक ही सोचना चाहिए.
संगीत की विभिन्नता एकसाथ चलती है, बस हम ध्यान नहीं देते
देश का अभिजात्य वर्ग सबसे ज्यादा गैर-जिम्मेदार रहा है. जब इस वर्ग के लोग घर में शास्त्रीय संगीत का आनंद ले रहे हैं. तब आपको खाना खिलाने वाले से आपने पूछा कि बेटा रुको ये राग झिंझोटी है. लेकिन वह जब अपने घर जाता है अपनी ढोलक पर खुद का संगीत गाता-बजाता है. हर तरह का संगीत इसी दुनिया में है. सब एकसाथ आगे बढ़ रहे हैं. आपको आश्चर्य क्यों हो रहा है भाई. आपने कभी उसपर ध्यान नहीं दिया पहले.
मिल्खा जी ने कहा था कि इसे खेल का कुछ नहीं पता
जब भाग मिल्खा भाग लिख रहा था. मैं मिल्खा जी से बातचीत रिकॉर्डिंग करता था. मैं कभी खेल का आदमी नहीं था. जब मैं कमरे से बाहर गया तो रिकॉर्डिंग ऑन था. बाद में सुना तो पता चला कि मिल्खा जी ने कहा कि इस आदमी को खेल के बारे में कुछ नहीं पता. ये तो मुझसे मेरे संघर्ष की कहानी पूछता है. लेकिन मैंने उसका बुरा नहीं माना. मैं लिखने के लिए चीजें एक्सप्लोर करता हूं. समझने की कोशिश करता हूं.
कविताओं से पैसे नहीं मिलते ये बात बचपन में सीख ली थी
कविता बचपन से लिख रहा हूं. 17 की उम्र में मेरी किताब छपी. लेकिन उसी समय मुझे पता चल गया था कि इससे जीविकोपार्जन नहीं होगा. इसलिए मैं हिंदी गीतों की तरफ आया. फिल्मों से जुड़ा. इसके बाद अब हर गीत, हर कविता के लिए मैं खुद को चुनौती देता हूं. ताकि हर मूड, हर भाव के गीत और कविताएं लिख सकूं.