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'साहित्य आजतक 2019' के दूसरे दिन लेखक, कवि और संपादक त्रिभुवन ने कहा कि राजस्थानी भाषा का उपेक्षा की जा रही है. जिसके कारण अभी तक इसे मान्यता नहीं मिल सकी है.
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'पधारो म्हारे देश-राजस्थानी साहित्य उत्सव' में त्रिभुवन ने कहा कि राजस्थानी साहित्य का जो पाठक है वो काफी विस्तृत है, कम नहीं है. राजस्थानी काव्य में एक खूबी ये भी है कि यहां वीर रस के साथ श्रृंगार रस को भी जोड़ा गया है. जबकि बाकी साहित्यों में ये खूबी नहीं मिलती है.
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त्रिभुवन ने बताया कि राजस्थानी साहित्य में गंभीर हास्य भी मौजूद है. लोकसाहित्य की कहानियों में हास्य मौजूद है. राजस्थान की कहावतें अभिव्यक्ति का ऐसा सशक्त माध्यम है, जो सहजता से अपनी बात कह जाते हैं. त्रिभुवन ने बताया कि राजस्थान में आज कई राजघराने ऐसे हैं जो या तो अंग्रेजी बोलते हैं या वहां सिर्फ राजस्थानी बोली जाती है. लेकिन हिंदी बहुत कम बोली जाती है.
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राजस्थानी भाषा की उपेक्षा
राजस्थानी भाषा को लेकर उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा की काफी उपेक्षा की जाती है. राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए राजस्थान में और राजस्थान से बाहर आंदोलन काफी वक्त से चल रहे हैं. हालांकि राजनीतिक कारणों की वजह से राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिल पाई है. उन्होंने कहा कि राजस्थानी को समाचारों की भाषा भी नहीं बनाया गया.
त्रिभुवन के अलावा लेखिका और कवि रीना मेनारिया भी इस कार्यक्रम में शामिल हुईं. रीना मेनारिया ने कहा कि लोकगीतों के माध्यम से ही साहित्य आगे बढ़ता है. राजस्थानी एक ऐसी भाषा है, जो सिर्फ बोली नहीं है. कई भाषाएं इसके साथ जुड़ी हुई है. उन्होंने बताया कि राजस्थानी साहित्य आदिकाल से चला आ रहा है.
राजस्थानी को शिक्षा से जोड़ा जाए
रीना ने कहा कि राजस्थान वीरों की धरती रही है. ऐसे में यहां वीर रस होना स्वाभाविक है. हालांकि वीर रस के अलावा यहां श्रृंगार रस और हास्य रस भी है. इसके अलावा राजस्थानी भाषा को लेकर रीना ने कहा कि राजस्थानी भाषा की अनदेखी की जा रही है. राजस्थानी भाषा से आने वाली पीढ़ी अनजान होती जा रही है. कई शब्द लुप्त होते जा रहे हैं. अगर राजस्थानी भाषा को शिक्षा से जोड़ा जाए तो आने वाले पीढ़ी भी इसके बारे में जानेगी.