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बाबरी विध्वंस शीशे में दरार की तरह, राम सिर्फ अयोध्या के नहीं: उदय प्रकाश

राम जन्मभूमि आंदोलन पर लिखी कविता के बारे में उन्होंने कहा कि 6 दिसंबर की घटना से काफी आहत हुआ था. उन्होंने बताया कि राम किसी लेखन और धर्म से पहले के हैं और उन्हें किसी कस्बे या जिले तक सीमित नहीं किया जा सकता. रामायण को कई लोगों ने और कई तरह से लिखा है जिनके अलग-अलग दृष्टिकोण रहे हैं.

साहित्य आजतक में आलोचक उदय प्रकाश (फोटो- के आसिफ) साहित्य आजतक में आलोचक उदय प्रकाश (फोटो- के आसिफ)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 03 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 1:53 PM IST

साहित्य आजतक 2019 के मंच पर शिक्षाविद्, आलोचक और रचनाकार उदय प्रकाश ने सत्र 'साहित्य का उदय' में शिरकत की. उनका काव्य संग्रह 'अंबर में अबावील' प्रकाशित हो चुका है जिसका लोकर्पण भी किया गया. इस संग्रह की एक कविता के बारे में उदय प्रकाश ने कहा कि ज्यादा बड़ी कविता के नीचे उतना ही बड़ा श्मशान होता है और जितना बड़ा श्मशान होगा उतना ही महान कवि और राष्ट्र होगा.

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उदय प्रकाश ने बताया कि उन्होंने प्रेम पर जेएनयू में पढ़ने के दौरान 24 साल की उम्र में कविता 'कुछ बन जाते हैं' लिखी थी. उन्होंने कहा कि प्रेम सबको करना चाहिए क्योंकि वह आपको बदल सकता है. इसके बोल  हैं तुम मिश्री की डली बन जाओ मैं दूध बन जाता हूं.
अपनी कविता और कहानियों में समसामयिकी के जोर पर उन्होंने कहा कि यह होने भी चाहिए क्योंकि बाबा नागार्जुन की रचनाओं में भी यह दिखता था जो मेरे गुरु और आदर्श हैं. प्रकाश ने कहा कि हम सब समय में ही लिखते हैं और समय से मुक्त होकर समय को किसी अन्य रूप में देखने की मेरी कोशिश हमेशा रहती है.

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राम जन्मभूमि आंदोलन पर लिखी कविता के बारे में उन्होंने कहा कि 6 दिसंबर की घटना से काफी आहत हुआ था. उन्होंने बताया कि राम किसी लेखन और धर्म से पहले के हैं और उन्हें किसी कस्बे या जिले तक सीमित नहीं किया जा सकता. रामायण को कई लोगों ने और कई तरह से लिखा है जिनके अलग-अलग दृष्टिकोण रहे हैं. उन्होंने कहा कि राम को किसी एक दृष्टिकोण से नहीं देखा जा सकता और न ही किसी एक जगह के वो हो सकते हैं.

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फोटो- के आसिफ

मैंने बुद्धि नहीं बेची, बुद्धिजीवी नहीं हूं

बाबरी विध्वंस की तुलना शीशे में आई दरार से करते हुए उदय प्रकाश ने कहा कि यह दरार क्यों आ रही है जो कि नहीं आनी चाहिए. सब कुछ शीशा है और आज उसे तोड़ने का काम किया जा रहा है. प्रकाश ने कहा कि अपनी कविता के माध्यम से हमेशा से यह सवाल करता रहता हूं. उन्होंने कहा कि स्टालिन के स्टेट और आज यहां के स्टेट में कोई फर्क नहीं है आज किसी की कोई सुनवाई नहीं है.

उदय प्रकाश ने कहा कि लेखक कागज पर होता है लेकिन जिसे कागज भी नसीब नहीं वह क्या है. 'अंबर में अबावील' में ऐसी कविताएं ही हैं जो पहली बार कागज पर आई हैं. साथ ही उन्होंने शरद जोशी के व्यंग्य को याद कर कहा कि मैं बुद्धिजीवी नहीं हूं क्योंकि मैंने अपनी बुद्धि नहीं बेची है, जैसे देहजीवी देह बेचकर जीता है और श्रमजीवी श्रम बेचकर जीता है.

चुनावी स्टंट 370 हटाना

कश्मीर के हालात पर उदय प्रकाश ने कहा कि 370 हटाने से सभी के नागरिक अधिकार एक हो गए हैं और इसका मैंने स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि 370 को जम्मू कश्मीर के लोग ही भूल चुके थे, लेकिन राजनीतिक फायदे और चुनाव के लिए यह कदम उठाया गया. उन्होंने कहा कि कश्मीरियों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाए कि वह खुद इसे भूल जाएं.

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उदय प्रकाश ने कहा कि किसी कवि का राजनीतिक पक्ष उसकी कविता ही है. उन्होंने मंच से अपनी कविता 'क' पढ़कर सुनाई जिसमें कश्मीर के हालात को बयां किया गया है. इसमें उन्होंने क से कमल और क से कबूतर के साथ क से कश्मीर का जिक्र किया है.

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