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साहित्य आजतक: 'भोजपुरी संगीत में भाषा के आश्रित ही भाषा के शोषक हैं'

'साहित्य आजतक' को इस बार सौ के करीब सत्रों में बंटा है, तीन दिन तक चलने वाले इस साहित्य के महाकुंभ में 200 से भी अधिक विद्वान, कवि, लेखक, संगीतकार, अभिनेता, प्रकाशक, कलाकार, व्यंग्यकार और समीक्षक हिस्सा ले रहे हैं. तीसरे दिन का आयोजन के आकर्षण होंगे जावेद अख्तर और चेतन भगत.

मुन्ना पाण्डेय और अमरेंद्र त्रिपाठी मुन्ना पाण्डेय और अमरेंद्र त्रिपाठी
विवेक पाठक
  • नई दिल्ली,
  • 18 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 12:05 AM IST

'साहित्य आजतक' के हल्ला बोल मंच का दूसरा सत्र भाषा और बोली के बीच संघर्ष पर केंद्रित रहा. 'मेरी अपनी जुबान' सत्र में भोजपुरी और अवधी को लेकर काम कर रहे मुन्ना पाण्डेय और अमरेंद्र त्रिपाठी ने हिस्सा लिया.

अक्सर जब 'भोजपुरी' का जिक्र आता है तो कुछ लोग इसे अश्लीलता से जोड़ देते हैं. भोजपुरी की इस छवि पर चिंता व्यक्त करते हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर  मुन्ना पाण्डेय ने इसकी वजह कैसेट कल्चर को बताया. उन्होंने कहा कि अश्लील गानों के जरिए गुड्डू रंगीला, निरहुआ और मनोज तिवारी सरीखे लोकगायकों की वजह से भोजपुरी की ऐसी छवि बनी है. मुन्ना पाण्डेय ने कहा कि ये लोग भाषा के बलात्कारी हैं.

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स्वतंत्र भाषा है भोजपुरी, अवधी

कई लोग ऐसा तर्क देते हैं कि अवधी, ब्रज, बुंदेली में शब्दों की नजदीकी है तो इन्हें भाषा क्यों बोला जाए? इस पर शिक्षक और विचारक अमरेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि उड़िया और बांग्ला में भी शब्दों की नजदीकी है फिर भी उन्हें बोली नहीं कहा जाता. आज शब्दों की नजदीकी होने के बावजूद मैथिली भाषा है उसे बोली नहीं कहते. इसलिए अवधी, मैथली, भोजपुरी एक स्वतंत्र भाषा हैं, हिंदी की बोली नहीं हैं.

अमरेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि भाषा और बोली में कोई खास अंतर नहीं है. एक बोली जिसका व्याकरण हो, साहित्य हो और उसे बोलने वाले की अच्छी खासी आबादी हो वो भाषा बन जाती है. यदि बोली ताकतवर हो जाती है तो वो भाषा हो जाती है. मुन्ना पाण्डेय ने कहा कि भारत के संदर्भ हिंदी को लेकर जिस तरह से वर्चस्व की लड़ाई है, यह डर कि यदि भोजपुरी आठवीं अनुसूची में आ गई तो हिंदी का नुकसान हो जाएगा यह गलत अवधारणा है. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मैथिली के अलग हो जाने से हिंदी को नुकसान नहीं हुआ.

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हिंदी राष्ट्रवाद में पहचान खो रहीं स्थानीय भाषाएं

अमरेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि हिंदी राष्ट्रवाद के कारण लोग आंचलिक भाषाओं को छोड़कर हिंदी को एकता से जोड़कर देखने लगे. इसी तरह उर्दू राष्ट्रवाद के चलते पाकिस्तान में स्थानीय भाषाओं ने पहचान खो दी. अमरेंद्र ने कहा कि हिंदू की दुकान चलानी है तो कहो हिंदू खतरे में है, इस्लाम की दुकान चलानी है तो कहो इस्लाम खतरे में है, इसी तरह हिंदी को खतरा बताया जाता है. अब ये दुकान चलाने वाले अंग्रेजी से नहीं लड़ सकते क्योंकि इन्हें अपने बच्चों को अंग्रेजी में पढ़ाना है, इसलिए छोटी भाषाओं के लिए आवाज उठाने वालों से खतरा बता दिया जाता है.

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