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2019 के दंगल के लिए दलितों पर दांव, क्या दिल जीत पाएंगे राहुल?

गौरतलब है कि देश की कुल जनसंख्या में 20.14 करोड़ दलित हैं. देश में कुल 543 लोकसभा सीट हैं. इनमें से 80 सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं.

संविधान बचाओ रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी संविधान बचाओ रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 23 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 1:28 PM IST

2019 की सियासी बिसात दलित मतों के सहारे बिछाई जाने लगी है. मोदी सरकार के खिलाफ दलितों की कथित नाराजगी में कांग्रेस को अपनी वापसी की उम्मीद दिख रही है. दलित समुदाय का दिल जीतने के लिए कांग्रेस ने आज से 'संविधान बचाओ' अभियान शुरू किया है. ये अभियान अगले साल संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जयंती (14 अप्रैल) तक चलेगा. ये वही समय होगा जब देश में लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार चरम पर होगा.

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गौरतलब है कि देश की कुल जनसंख्या में 20.14 करोड़ दलित हैं. देश में कुल 543 लोकसभा सीट हैं. इनमें से 80 सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में इन 80 सीटों में से बीजेपी ने 41 पर जीत दर्ज की थी.दलित आबादी वाला सबसे बड़ा राज्य पंजाब है. यहां की 31.9 फीसदी आबादी दालित है और 34 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं. उत्तर प्रदेश में करीब 20.7 फीसदी दलित आबादी है. यहां 17 लोकसभा और 86 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं. बीजेपी ने 17 लोकसभा और 76 विधानसभा आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की थी. हिमाचल में 25.2 फीसदी, हरियाणा में 20.2 दलित आबादी है.

एमपी में दलित समुदाय की आबादी 6 फीसदी है जबकि यहां आदिवासियों की आबादी करीब 15 फीसदी है. पश्चिम बंगाल में 10.7, बिहार में 8.2, तमिलनाडु में 7.2, आंध्र प्रदेश में 6.7, महाराष्ट्र में 6.6, कर्नाटक में 5.6, राजस्थान में 6.1 फीसदी आबादी दलित समुदाय की है.

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2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की कामयाबी में दलितों की अहम भूमिका रही थी. बीजेपी पसोपेश में है कि कहीं दलितों की नाराजगी 2019 में उसके लिए महंगी न पड़ जाए, वहीं कांग्रेस इस कोशिश में लगी है कि दलितों का दिल जीतकर एक बार फिर सत्ता में वापसी कर सके. कांग्रेस लंबे समय तक दलित मतों के सहारे ही सत्ता पर काबिज होती रही है.

कांग्रेस के नेताओं के मुताबिक बीजेपी सरकार में संविधान खतरे में है. दलित समुदाय को शिक्षा और नौकरियों में अवसर नहीं मिल रहे हैं. कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग के प्रमुख विपिन राउत ने दावा किया कि आरएसएस समर्थित बीजेपी जब से केंद्र की सत्ता में आई है, किसी न किसी तरीके से देश के संविधान पर हमले होते रहे हैं. समाज के वंचित तबकों को उनके संवैधानिक अधिकार नहीं मिल रहे हैं.

दलित चिंतक डॉ. सुनील कुमार सुमन कहते हैं कि कांग्रेस संविधान बचाने के लिए नहीं बल्कि दलित वोटबैंक को अपने पाले में लाने के लिए काम कर रही है. कांग्रेस 40 साल तक सत्ता में रही, तब उसे संविधान को लागू करने की चिंता नहीं थी. कांग्रेस ने अगर संविधान को सही ढंग से लागू किया होता तो न तो दलितों का उत्पीड़न होता और न ही सांप्रदायिकता बढ़ती.

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उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के पिछले चार सालों में दलितों के उत्पीड़न के मामले बढ़े हैं. इससे मोदी सरकार के खिलाफ दलितों में नाराजगी है. सुनील सुमन ने कहा कि मौजूदा दौर में दलित के अधिकार को खत्म किया जा रहा है. संविधान को बदलने की बात खुलेआम कही जा रही है. एसएसएसटी एक्ट को लेकर सरकार तब जागी जब दलित सड़क पर उतरा.

सुमन ने कहा कि 2019 में दलित एंटी बीजेपी वोट कर सकता है. मौजूदा दौर में इतने बड़े समुदाय को साथ लिए बिना राजनीति नहीं हो सकती. कांग्रेस इसी बड़े दलित वोटबैंक को साधने के लिए संविधान बचाओ कार्यक्रम कर रही है. कांग्रेस को इसका फायदा उसी हालत में मिलेगा, जब वो बीएसपी जैसे दलित समर्थक दलों के साथ गठबंधन करके चुनाव में उतरे, क्योंकि बिहार, यूपी में दलित मतदाता क्षेत्रीय दलों के साथ ही हैं.

कांग्रेस जहां सपा, बसपा और आरजेडी जैसे दलों को साथ लेकर चुनाव में उतरना चाहती है, तो वहीं बीजेपी ने भारतीय रिपब्लिकन पार्टी के रामदास अठावले, एलजेपी के रामविलास पासवान और उदित राज जैसे दलित नेताओं को अपने पाले में जोड़कर रखा है. पीएम मोदी भी अपनी पार्टी के नेताओं के जरिए दलित समुदाय की नाराजगी को दूर करने की कवायद लगातार कर रहे हैं.

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