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पंजाब के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाला सरबजीत सिंह पिछले 23 वर्षों से पाकिस्तान की जेल में बंद था और उसे पाकिस्तानी अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी. सरबजीत की मौत ने भारत-पाकिस्तान के बीच नए विवाद को जन्म दे दिया है.
सरबजीत पर उनके साथी कैदियों द्वारा हमला किए जाने के बाद गुरुवार को लाहौर के एक अस्पताल में उनकी मौत हो गई. सरबजीत की फांसी की सजा 30 अप्रैल 2009 से अनिश्चितकाल के लिए टाल दी गई थी. उसके ठीक चार वर्ष दो दिन बाद सरबजीत की पाकिस्तान में मौत हो गई लेकिन फांसी से नहीं बल्कि लाहौर के कोट लखपत जेल में साथी कैदियों द्वारा बर्बरतापूर्वक हमला किए जाने के कारण.
सरबजीत पर 26 अप्रैल को हमला किए जाने के ठीक छह दिन बाद लाहौर के जिन्ना अस्पताल के चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. इसके साथ ही सरबजीत को फांसी की सजा से बचाने और उन्हें स्वतंत्र कराने के उनके परिवार के अथक प्रयासों पर भी विराम लग गया.
सरबजीत को 1990 में जब गिरफ्तार किया गया तब उनकी आयु 26 वर्ष थी. सरबजीत पर बाद में भारतीय जासूस होने तथा पाकिस्तान में दो आतंकी हमलों में संलिप्त होने के आरोप लगाए गए. इसके बाद सरबजीत ने विभिन्न प्रताड़नाएं झेलते हुए पाकिस्तान की जेलों में 23 वर्ष गुजारे. सरबजीत की बहन दलबीर कौर द्वारा पिछले कुछ वर्षों से चलाए जा रहे निरंतर अभियान से सरबजीत के बचने की कुछ उम्मीद बची हुई थी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.
सरबजीत के परिवार वालों विशेषकर उनकी बहन दलबीर, पत्नी सुखप्रीत कौर तथा बेटियों स्वपनदीप और पूनम ने जिस किसी से सम्भव हो सका सरबजीत की रिहाई के लिए सम्पर्क किया. लेकिन सरबजीत के भाग्य में अपनी मातृभूमि वापस लौटना नहीं लिखा था. पिछले वर्ष तब सरबजीत की रिहाई की हल्की सी उम्मीद जगी थी जब पाकिस्तान सरकार द्वारा उन्हें छोड़े जाने की खबरें आई थीं. हालांकि थोड़ी ही देर बाद पाकिस्तानी अधिकारियों ने स्पष्टीकरण दिया कि जिसे छोड़ा जाना है वह सरबजीत नहीं बल्कि एक अन्य भारतीय कैदी सुरजीत सिंह हैं.
पाकिस्तान में मंजीत सिंह के नाम से जाने जाने वाले सरबजीत पर लाहौर और मुल्तान में 1990 में बम विस्फोट में संलिप्तता के आरोप थे. सरबजीत की बहन दलबीर द्वारा अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए जाने के बावजूद सरबजीत की रिहाई सम्भव नहीं हो सकी.