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क्या महात्मा गांधी की हत्या के लिए आरएसएस को जिम्मेदार मानते थे सरदार पटेल?

महात्मा गांधी की हत्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की क्या भूमिका थी, इस बारे में सरदार पटेल का रुख विरोधाभासी रहा है. गांधी हत्या में आरएसएस की भूमिका को लेकर पटेल की सोच में भी परिस्थितियों के मुताबिक बदलाव होता दिखा.

जब गांधी की हत्या हुई तब सरदार पटेल देश के गृह मंत्री थे जब गांधी की हत्या हुई तब सरदार पटेल देश के गृह मंत्री थे
दिनेश अग्रहरि
  • नई दिल्ली,
  • 31 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 2:06 PM IST

  • गांधी हत्या में संघ की भूमिका को लेकर पटेल की सोच रही विरोधाभासी
  • पहले उन्होंने कहा था कि गांधी हत्या में संघ के हाथ खून से सने हैं
  • बाद में उन्होंने कहा कि गांधी हत्या में संघ की कोई सीधी भूमिका नहीं

लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की आज देश भर में जयंती मनाई जा रही है. महात्मा गांधी की हत्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की क्या भूमिका थी? इस बारे में तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल क्या सोचते थे, जिनको कुछ लोग नेहरू से बड़ा नायक ठहराने की कोशिश करते रहे हैं. इस बारे में कई किताबों और स्रोतों से हासिल जानकारी से यह बड़ी चौंकाने वाली बात पता चलती है कि स्वयं सरदार पटेल का इस मामले में रुख विरोधाभासी रहा है.

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असल में गांधी हत्या में आरएसएस की भूमिका को लेकर पटेल की सोच में भी परिस्थितियों के मुताबिक बदलाव होता दिखा. एक समय तो गुस्से में आकर उन्होंने कह दिया कि गांधी हत्या में संघ के लोगों के हाथ खून से सने हैं. हालांकि, बाद में वह यह स्वीकार करते हैं कि गांधी हत्या में संघ की भूमिका नहीं है, बल्कि हिंदू महासभा के कुछ कट्टर नेताओं का हाथ है.

पहले कहा- गांधी हत्या में संघ के हाथ खून से सने हैं

30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई. इसके बाद 4 फरवरी 1948 को आरएसएस पर देशव्यापी प्रतिबंध लगा दिया गया. 9 फरवरी, 1948 को सरदार पटेल ने पंजाब के सीएम गोपीचंद भार्गव को पत्र लिखा, ‘मैं इस बात को लेकर चिंतित हूं कि आरएसएस के लोग अमृतसर में जुलूस निकाल रहे हैं. नारेबाजी कर रहे हैं और सामान्य तौर पर सरकारी आदेशों का उल्लंघन कर रहे हैं. जहां तक मैं जानता हूं प्रतिबंध लगने के बाद से भारत में किसी भी दूसरी जगह पर ऐसा कुछ नहीं हुआ है, पूरे भारत में आरएसएस पर प्रतिबंध को लोगों ने हाथोहाथ लिया है, बल्कि आरएसएस के खिलाफ भावनाओं में जनता का रुख सरकार से कहीं ज्यादा सख्त है. इसलिए यह चैंकाने वाली बात है कि अमृतसर में कोई किस तरह से ऐसी हरकत कर सकता है.'

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उन्होंने लिखा, 'हम भारत में पहले ही आरएसएस और इसके समूहों से बहुत सारी मुसीबतें झेल चुके हैं. इसलिए मैं विश्वास करता हूं कि आपकी सरकार अपनी कार्रवाई के द्वारा यह स्पष्ट करेगी कि आरएसएस से सहानुभूति रखने वाला कोई भी व्यक्ति सरकार के सख्त कदम और नाराजगी का भागीदार होगा. इन लोगों के हाथ महात्मा गांधी के खून से सने हैं, इसलिए उनके पवित्र वादे और इन वादों से हटना अब कोई मायने नहीं रखता. आपने देखा होगा कि भारत सरकार ने आरएसएस से जुड़ी संस्थाओं पर कार्रवाई करने में कोई हिचक नहीं दिखाई.'

फिर माना-गांधी हत्या के लिए संघ नहीं हिंदू महासभा के कुछ कट्टर नेता जिम्मेदार

नेहरू को 27 फरवरी, 1948 को लिखे अपने पत्र में सरदार पटेल कहते हैं, ‘मैं बापू की हत्या के मामले में चल रही जांच-पड़ताल की प्रगति के लगभग दैनिक संपर्क में रहता हूं. इन बयानों से यह भी स्पष्ट होता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस षडयंत्र में शरीक नहीं था. सावरकर के सीधे मार्गदर्शन में हिंदू महासभा के एक कट्टर वर्ग ने यह षडयंत्र रचा. उसे आगे बढ़ाया और अंतिम परिणाम तक पहुंचाया. यह भी दिखाई देता है कि यह षडयंत्र 10 आदमियों तक सीमित था, जिनमें से दो को छोड़कर सब पकड़ लिए गए हैं. इनमें से अधिकतर बातें विभिन्न केंद्रों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों की प्रवृत्तियों की ओर निर्देश करती थीं. हमने इस संबंध में जांच जारी रखी और इन आरोपों के सिवाय कि गांधीजी की मृत्य पर मिठाइयां बांटी गईं या हर्ष प्रकट किया गया था, शायद ही कोई ठोस और महत्वपूर्ण बात पाई गई.' 

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उन्होंने लिखा, 'इन बातों की ब्योरेवार चर्चा करने के बाद मैं इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि बापू की हत्या का षडयंत्र इतना व्यापक नहीं था, जितना आमतौर पर उसे मान लिया गया है, बल्कि वह ऐसे मुट्ठी भर आदमियों तक सीमित था, जो काफी लंबे समय से बापू के दुश्मन रहे हैं. यह दुश्मनी ठेठ उस समय से बताई जाती है, जब बापू जिन्ना से बातचीत करने गए थे. उस समय गोड्से ने विरोध में उपवास किया था तथा अन्य षडयंत्रकारी बापू को जिन्ना के पास जाने से रोकने के लिए वर्धा गए थे. बेशक बापू की हत्या का आरएसएस तथा हिंदू महासभा में ऐसे लोगों ने स्वागत किया था, जो बापू की विचारधारा और नीति के कट्टर विरोधी थे, परंतु इससे आगे प्राप्त प्रमाण के आधार पर आरएसएस या हिंदू महासभा के किन्हीं अन्य सदस्यों को इस षडयंत्र के साथ जोड़ा नहीं जा सकता. बेशक आरएसएस को अपने अन्य पापों और अपराधों के लिए जवाब देना होगा, परंतु इसके लिए नहीं.' 

संघ की गतिविधियों को देश के लिए बताया था खतरा

सरदार पटेल ने 18 जुलाई, 1948 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी को एक चिट्ठी भेजी थी. ये चिट्ठी काफी मशहूर है. उन्होंने लिखा, ‘गांधी जी की हत्या का केस अभी कोर्ट में है. इसीलिए आरएसएस और हिंदू महासभा, इन दोनों संगठनों के शामिल होने पर मैं कुछ नहीं कहूंगा. लेकिन हमारी रिपोर्ट्स में इस बात की पुष्टि होती है कि जो हुआ, वो इन दोनों संगठनों की गतिविधियों का नतीजा है. खासतौर पर आरएसएस के किए का. देश में इस तरह का माहौल बनाया गया कि इस तरह की (गांधी की हत्या) भयानक घटना मुमकिन हो पाई. मेरे दिमाग में इस बात को लेकर कोई शक नहीं कि हिंदू महासभा का कट्टर धड़ा गांधी की हत्या की साजिश में शामिल था. आरएसएस की गतिविधियों के कारण भारत सरकार और इस देश के अस्तित्व पर सीधा-सीधा खतरा पैदा हुआ.'  

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तो इन लेटर्स से यह बात साबित होती है कि सरदार पटेल आरएसएस की नीतियों को देश के हित में नहीं मानते थे, लेकिन इस बात को लेकर वे पुख्ता नहीं थे कि गांधीजी की हत्या में आरएसएस की सीधी कोई भूमिका थी. इसकी वजह यह है कि जांच में इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिल पाया था और देश के गृह मंत्री होने के नाते उन्हें इन सबकी जानकारी थी.

(संवाद प्रकाशन से प्रकाशित पीयूष बबेले की पुस्तक ‘नेहरू मिथक और सत्य'  तथा कुछ अन्य स्रोतों से हासिल जानकारी के आधार पर)

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