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सरदार पटेल ने बताया था अनुच्छेद 370 को जरूरी, संविधान सभा में बहस के दौरान दिया था ये तर्क

कई नेताओं ने ऐसा कहा कि कश्मीर में 370 को लागू करने के लिए पहले प्रधानमंत्री नेहरू जिम्मेदार थे और सरदार पटेल इस पर सहमत नहीं थे, लेकिन तथ्य कुछ और ही कहानी कहते हैं.

धारा 370 पर सरकार के एक्शन के बाद कश्मीर में शांति है (फोटो: IANS) धारा 370 पर सरकार के एक्शन के बाद कश्मीर में शांति है (फोटो: IANS)
दिनेश अग्रहरि
  • नई दिल्ली,
  • 08 अगस्त 2019,
  • अपडेटेड 11:01 AM IST

मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 के दो खंडों को खत्म कर दिया है और जम्मू-कश्मीर राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया गया है. कई नेताओं ने ऐसा कहा कि कश्मीर में 370 को लागू करने के लिए पहले प्रधानमंत्री नेहरू जिम्मेदार थे और सरदार पटेल इस पर सहमत नहीं थे, लेकिन तथ्य कुछ और ही कहानी कहते हैं.

जब हो रही थी 370 पर तीखी बहस, नेहरू थे देश से बाहर

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सच तो यह है कि जब संविधान सभा में अनुच्छेद 370 पर बहस हो रही थी, तो उस समय नेहरू देश से बाहर थे और सरदार पटेल ने इस पर चले बहस की जानकारी नेहरू को दी थी. खुद सरदार पटेल ने संविधान सभा में बहस के दौरान इस बारे में तर्क दिया था कि कश्मीर की विशेष समस्याओं को देखते हुए उसके लिए अनुच्छेद 370 जरूरी है.

एम.जे. अकबर की किताब 'कश्मीर बिहाइंड द वेल' और अशोक पांडेय की किताब 'कश्मीरनामा' के अनुसार 12 अक्टूबर 1949 को संविधान सभा में अनुच्छेद 370 पर चल रही तीखी बहस के दौरान सरदार पटेल ने कहा था, 'उन विशेष समस्याओं को ध्यान में रखते हुए जिनका सामना जम्मू-कश्मीर की सरकार कर रही है, हमने केंद्र के साथ राज्य के संवैधानिक संबंधों को लेकर वर्तमान आधारों पर विशिष्ट व्यवस्था की है.'

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अनुच्छेद 370 में हुआ बदलाव

भारत की संविधान सभा में जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए चार सीटें रखी गई थीं. 16 जून 1949 को शेख अब्दुल्ला, मिर्जा अहमद अफजल बेग, मौलाना मोहम्मद सईद मसूदी और मोती राम बागड़ा संविधान सभा में शामिल हुए. अगले तीन महीनों तक कश्मीर के भारत से संबंधों से लेकर अनुच्छेद 370 (जिसे मसौदे में 306 ए कहा गया था) को लेकर गोपालस्वामी आयंगर, पटेल और शेख अब्दुल्ला तथा उनके साथियों के बीच तीखे-बहस मुबाहिसे चले.

कश्मीरनामा के अनुसार, 16 अक्टूबर को एक मसौदे पर सहमति बनी, लेकिन आयंगर ने बिना शेख को विश्वास में लिए इसकी उपधारा 1 के दूसरे बिंदु में परिवर्तन कर दिया और यही परिवर्तित रूप संविधान सभा में पास करा लिया गया. शेख अब्दुल्ला ने इस बदलाव पर आपत्त‍ि जताते हुए आयंकर को लेटर लिखा और संविधान सभा से इस्तीफे की धमकी दी.

18 अक्टूबर को शेख को लिखे एक जवाबी लेटर में आयंगर ने कहा कि यह बदलाव मामूली सा है. 3 नवंबर को नेहरू के अमेरिका से लौटने पर पटेल ने इसकी सूचना नेहरू को दी. अंतत: आयंकर द्वारा संशोधित 306 ए ही अनुच्छेद 370 के रूप में संविधान में शामिल हुआ. इस बदलाव की वजह से कश्मीर के किसी मुख्यमंत्री को बर्खास्त करना केंद्र सरकार के लिए संभव हो सका.

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गौरतलब है कि कश्मीर को लेकर मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला किया है. सोमवार को गृहमंत्री अमित शाह ने सदन में अनुच्छेद 370 हटाने का संकल्प सदन में पेश किया. उन्होंने कहा कि कश्मीर में लागू धारा 370 में सिर्फ खंड-1 रहेगा, बाकी प्रावधानों को हटा दिया जाएगा. इसके अलावा नए प्रावधान में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन का प्रस्ताव भी शामिल है. उसके तहत जम्मू कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश होगा और लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया है. उसे भी केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है. हालांकि वहां विधानसभा नहीं होगी.

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