Advertisement

व्यंग्य: उत्तरप्रदेश में पत्रकारों को मिलेंगे फायर सूट

रेडियो वाले आजकल यूपी की कहानियां सुनाते हैं, सुनकर आश्चर्य होता है लगता ही नही उत्तरप्रदेश की कहानियां हैं,न कहीं बलात्कार, न गुण्डागर्दी, न लूट-पाट, न हत्या का जिक्र? पहचान खो गई है, लगता है कहानियों से आत्मा ही निकाल ली है किसी ने, देखिए न कहानियों में भी सच नही बोल पाता आदमी अब.

Symbolic Image Symbolic Image
आशीष मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 17 जून 2015,
  • अपडेटेड 10:54 AM IST

रेडियो वाले आजकल यूपी की कहानियां सुनाते हैं, सुनकर आश्चर्य होता है लगता ही नही उत्तरप्रदेश की कहानियां हैं,न कहीं बलात्कार, न गुण्डागर्दी, न लूट-पाट, न हत्या का जिक्र? पहचान खो गई है, लगता है कहानियों से आत्मा ही निकाल ली है किसी ने, देखिए न कहानियों में भी सच नही बोल पाता आदमी अब.

झूठ के बड़े भाव हैं सच की बड़ी कीमत, आग लगे ऐसे सच को. कीमत उन विज्ञापनों की भी होगी जो ठीक उस कार्यक्रम के बाद रेडियो पर बजने लगते हैं, बता रहे थे बड़ी तेज पुलिस हो गई है, मैं सोचता हूं अपराधी कितने तेज होंगे जो इतनी तेज पुलिस के हाथ नही आते.

Advertisement

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बड़े भलमानस हैं, युवा हैं. क्या हुआ जो वहां के हालात बुरे हैं, क्या हुआ जो सूबे में पांच-पांच मुख्यमंत्री हैं, मुख्यमंत्री तो भलमानस है. राजनीति ही है जहां आदमी चालीस पार भी युवा रहा आता है. मुख्यमंत्री ने मेहनत की तो पुलिस का चेहरा भी बदला है, पुलिस अब डंडा फटकारने के काम नही करती, सिर्फ भैंस नही ढूंढती, पुलिस तेज हो गई है, कार्यक्षेत्र बढ़ा है, पुलिस जिम्मेदारी समझने लगी है, नेताओं और पुलिस के बीच सामंजस्य बढ़ा है, अब पुलिसवाले अपराध होने के लिए अपराधियों के भरोसे नही बैठे रहते, मौके तलाशते हैं, मंत्री टास्क देते हैं, पुलिस उन्हें पूरा करती है, पुलिस प्रोफेशनल हो गई है , स्वावलंबी हो गई है, अपराध भी खुद कर लेती है. हमें स्वावलंबी होना चाहिए, स्वावलंबन के बिना गठबंधन आ धमकता है, फिर मुलायम आ जाते हैं, और फिर सीबीआई, स्वावलंबी लोग ऐसी राजनीति में पड़ने से बच जाते हैं. पर पुलिस तो स्वावलंबी है, जिम्मेदार है, जिम्मेदारी उठाना आसान काम नही है, अपराधों के प्रति भी जिम्मेदारी बनती है, जिम्मेदारी पूरी करनी पडती है तो अपराध करने पड़ते हैं. ये बिल्कुल ऐसा है जैसा नाई आपको बाल बढ़ाने के लिए सही तेल बताए, बढ़ेंगे तभी तो वो काटेगा, जिस दिन हर कोई अपनी जिम्मेदारी ऐसे ही समझ ले देश उत्तरप्रदेश बन जाएगा.

Advertisement

समाजवाद चरम पर है, उत्तरप्रदेश में जाति देखकर वोट करने वाले तो चरमसुख महसूस भी करने लगे हैं, उत्तरप्रदेश को कुछ कह जाइए वहां वाले पलट कर जवाब तक नही देते, अपराधों से ज्यादा अपराध बोध है. अपराधी और पुलिस में फर्क नजर नही आता, वही तो नेता हैं उन्ही से पुलिसवाले हैं. समाजवादी टोपियों का रंग सुर्ख है, खून पड़े और सुर्ख हो जाता है, समाजवाद की साइकल का चक्का घूम रहा है. लोहिया की आत्मा कलपती होगी, काहे की जिन्दा कौम?

उत्तरप्रदेश में पत्रकारों के बुरे हाल हैं, एक को जला दिया गया,एक कुचला गया, गलती पत्रकारों की है, विधि का विधान नही समझते, उत्तरप्रदेश में मानसून में आग बरसती है. मीडिया इंस्टीट्यूट फायर सूट नही देते, पहले सिखाया जाता था,पानी बरसे तो पेड़ के पास मत जाना, बिजली गिर सकती है, झुलस जाओगे, अब नही समझाते कि किसके पास नही जाना है, पत्रकार झुलस जाते हैं. पर मुख्यमंत्री भलमानस हैं उन्होंने घोषणा की है, मरने वालों को मुआवजा दिया जाएगा, 'विधि के विधान' से मरे तो और मुआवजा, न मरें इसलिए फायर सूट दिया जाएगा, पत्रकारों की कलम में आग होती है, उन्हें ही न जला दे.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement