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सउदी अरब की नीति से राजस्थान के कामगार हुए बेकाज

सऊदी अरब की नई श्रम नीति से वहां गए राजस्थान के कामगारों के लिए संकट बढऩे लगा. फिलहाल ऊहापोह का आलम.

विजय महर्षि
  • जयपुर,
  • 26 मई 2013,
  • अपडेटेड 3:00 AM IST

सऊदी अरब में 29 मार्च से निताकत नाम की नई श्रम नीति लागू हो जाने के बाद से विदेशी कामगारों के लिए खासी मुसीबत आ गई है. वहां काम करने वाले राजस्थानी भी कम मुश्किल में नहीं हैं. फिलहाल इससे उपजे हालात में एक मामले में 82 भारतीय बुरी तरह फंस गए हैं.

इस कानून की गाज सऊदी अरब की जिन कंपनियों पर पड़ी है, लावा अल वस्ती उन्हीं में से एक है. निताकत की पालना न करने की वजह से वहां की सरकार ने उसे रेड कैटेगरी में डाल दिया. कंपनी को फिर से ग्रीन कैटेगरी में आने के लिए अब अपने यहां से 10 फीसदी भारतीयों को निकालकर उनकी जगह सऊदी कामगार रखने होंगे. फिलहाल तो उसके यहां से 82 भारतीय बेरोजगार हो गए हैं, जिनमें से 30 राजस्थान के हैं. निकाले गए सभी मजदूर हड़ताल पर चले गए हैं. दरअसल वहां की लेबर कोर्ट से मजदूर वर्ग को बहुत उम्मीदें रहती हैं. लेकिन जानकारों की मानें तो ऐसे मसले में कोर्ट ज्यादा से ज्यादा बकाया दिलाने या कामगार को कंपनी के खर्चे पर उसके मुल्क वापस भेजने के आदेश दे सकता था. अब मामला निताकत से जुड़ा है.

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बहरहाल, 82 भारतीयों के फंसने की खबर के बाद विदेश मंत्रालय और सऊदी अरब में भारतीय राजदूत सऊदी सरकार के संपर्क  में हैं. वहां इस मसले पर श्रम मंत्रालय के संयुक्त कार्यसमूह की बैठक भी हुई है. तय हुआ कि सऊदी सरकार इन मजदूरों को वीजा नियमित कराने, नई नौकरी ढूंढऩे या फिर इन्हें स्वदेश भेजने का विकल्प देगी. इसके लिए तीन माह का वक्त दिया गया है. इस मसले पर प्रदेश के गृह राज्यमंत्री वीरेंद्र बेनीवाल बताते हैं, ''हम केंद्र सरकार के संपर्क में हैं. इसमें अगर किसी कंपनी या दलाल का हाथ है तो उन्हें बख्शा नहीं जाएगा. ''फंसे हुए इन 82 भारतीयों में से 52 को जयपुर की राजस्थान ट्रैवल्स ऐंड ट्रेड लिंक ने भेजा था. कोई पुख्ता विकल्प न मिलने तक इन मजदूरों का वहां इंतजाम करने को अपनी जिम्मेदारी मान रहे कंपनी के कमलेश सोनी बताते हैं, ''हमने वहां 8 एसी कमरे ले रखे हैं. इनमें उनके रहने, खाने-पीने की व्यवस्था है. '' उन्होंने अपने भेजे मजदूरों की सूची केंद्र और राजस्थान सरकार के अलावा भारतीय दूतावास को भी उपलब्ध करवा दी है.

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इसमें दो राय नहीं कि विदेश भेजने के नाम पर प्रदेश में जमकर कबूतरबाजी हो रही है. विदेश में नौकरी दिलाने के नाम पर राजस्थान के कामगारों से एक से डेढ़ लाख रु. तक लिए जाते हैं. पैसे लेने से लेकर उन्हें विदेश में नौकरी दिलाने के बीच पूरी भूमिका अक्सर दलाल की ही रहती है. राजस्थान ट्रैवल्स ऐंड ट्रेड लिंक ने 30 राजस्थानियों सहित कुल 52 लोगों को कोच्चि की जॉली ऐंड जिमी नाम की कंपनी की मार्फत सऊदी में लावा अल वस्ती कंपनी में भेजा. कंपनी की मानें तो इन मजदूरों पर निताकत की मार पड़ी है. उसका तर्क है कि सितंबर से फरवरी तक तो ये लोग उस कंपनी में बराबर काम कर ही रहे थे. वहां से इन्हें बाकायदा तनख्वाह मिली है. इन सभी के पासपोर्ट उसी कंपनी में जमा हैं.

लेकिन जिन परिवारों ने मोटे-मोटे कर्ज लेकर अपने यहां से किसी-न-किसी को कमाने के वास्ते भेजा था, उनका बुरा हाल है. नागौर के ओमपुरा गांव का मांगूराम घर की तंगहाली दूर करने के लिए अगस्त में सऊदी गया था. हाल ही में उसकी नौकरी जाने और उसके फंसे होने की खबर ने परिवार की नींद उड़ा दी है. मांगूराम की मां बेटे की खैर-कुशल के लिए परेशान है तो पिता गोरूराम उसके जाने को लिया गया उधार चुकाने को फिक्रमंद हैं. शिवजीराम के परिवार का भी यही हाल है. खेत में बनी झोंपड़ी में रहती पत्नी राधादेवी तो पति के वहां फंस जाने की खबर सुनकर बीमार ही हो गईं. इन परिवारों को चिंता है कि अगर कर्ज न चुकाया गया तो क्या होगा.

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निताकत के बाद अब सऊदी अरब में फैमिली ड्राइवर के तौर पर काम करने वाले भारतीयों पर मार पडऩे वाली है. वहां रहने वाले नागौर के अशोक जांगिड़ की मानें तो फैमिली ड्राइवर के वीजा से सऊदी सरकार को कोई खास राजस्व नहीं मिलता. इसलिए अब वह ऐसे लोगों से वीजा में अपना पेशा बदलवाने को कह रही है.

अपने यहां बेराजगारी न फैलने से बचाने के लिए सऊदी सरकार ने नई श्रम नीति लागू की. इसके अलावा ऐसे कई और कानूनों को सऊदी सरकार जल्द ही अमलीजामा पहनाने पर आमादा है. यानी परदेस की कमाई पर संकट मंडराना शुरू हो गया है. अब अरब के खजूर उतने मीठे नहीं रह जाएंगे.

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