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आधार, मनी बिल क्यों? बंटी सुप्रीम कोर्ट के जजों की राय

आधार बिल को मनी बिल के तौर पर संसद से पारित कराने को लेकर उठे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के जजों की राय बंटी हुई थी. जहां जस्टिस चंद्रचूड़ ने इसे मनी बिल नहीं कहा हैं, वहीं जस्टिस सीकरी ने कहा है कि आधार बिल को मनी बिल के तौर पर पास कराया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो) सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
विवेक पाठक/संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 26 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 12:37 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ आधार की संवैधानिक वैधता बरकरार रखा है. हालांकि आधार बिल को मनी बिल के तौर पर पारित किये जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जजों की राय बंटी हुई थी. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि साधारण बिल को मनी बिल घोषित करना राज्यसभा को उसके अधिकारों से वंचित रखना है. वहीं जस्टिस सीकरी ने कहा कि आधार को मनी बिल के तौर पर पास कराया जा सकता है.  

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प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए के सिकरी, जस्टिस ए एम खानविल्कर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं.

मनी बिल पर बंटी जजों की राय

आधार पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी साधारण बिल को मनी बिल घोषित करना राज्य सभा के अधिकारों का हनन है. लिहाजा आधार एक्ट को मनी बिल नहीं कहा जा सकता. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आधार एक्ट संविधान के अनुच्छेद 110 (1) के अनुरूप नहीं है इसलिए यह एक्ट गैर-संवैधानिक है.

आधार एक्ट को मनी बिल की तरह पास करने पर जस्टिस सीकरी ने कहा कि आधार को मनी बिल के तौर पर पास कराया जा सकता है. जिन्हें कोर्ट ने रद्द कर दिया है.

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जस्टिस सीकरी ने कहा कि आधार एक्ट में मामूली बदलाव करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि सरकार या कोई कंपनी आधार नंबर को छह महीने से ज्यादा स्टोर नहीं रख सकती है. यानी अगर आप बैंक खाता खुलवाने या सिम कार्ड लेने के लिए आधार नंबर देते हैं तो उस आधार को 6 महीने से ज्यादा स्टोर नहीं किया जा सकता है. पहले यह डेटा पांच साल तक रखने की बात हुई थी.

क्या होता है मनी बिल या धन विधेयक?

संविधान के अनुच्छेद 110 (1) के तहत मनी बिल वो विधेयक होता है जिसमें केवल धन से जुड़े हुए प्रस्ताव हों. इसके तहत राजस्व और खर्च से जुड़े हुए मामले आते हैं. ऐसे विधेयकों पर राज्य सभा में चर्चा तो हो सकती है लेकिन उस पर कोई वोटिंग नहीं हो सकती.

अगर यह सवाल उठता है कि कोई बिल मनी बिल है या नहीं है तो इसका फैसला स्पीकर करते हैं. स्पीकर का निर्णय अंतिम होता है. इसकी चर्चा अनुच्छेद 110 (3) में की गई है. मनी बिल पर राज्यसभा सिर्फ सलाह दे सकती है. लोकसभा उनकी सलाहों को मानने और नहीं मानने के लिए स्वतंत्र है. इस पर अंतिम फैसला लोकसभा ही लेगी.

क्या थी मनी बिल को लेकर सरकार की दलील?

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विपक्ष द्वारा आधार बिल को मनी बिल के तौर पर लाने को लेकर सरकार द्वारा इस विधेयक को मनी बिल के रूप में पास कराने पर वित्त मंत्री अरुण जेटली का तर्क था कि इसका उद्देश्य सरकारी पैसे को जरूरतमंद लोगों को सब्सिडी के रूप में देना है.

आपको बता दें कि इस मामले की सुनवाई 17 जनवरी को शुरू हुई थी जो 38 दिनों तक चली. हालांकि, आधार पर सुनवाई की शुरूआत 2012 में हुई थी, जब सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका के आधार पर इस मामले को सुना था.

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