Advertisement

महात्मा गांधी के एक हत्यारे पर ब्रिटिश एजेंट होने का शक- SC में दायर याचिका में दावा

पूर्व रक्षा मंत्री इस याचिका को डालने वाले डॉ पंकज फडनीस को सूचित किया कि ‘‘नारायण दत्तात्रेय आप्टे के वायु सेना का एक अधिकारी होने के बारे में कहीं भी कोई जानकारी नहीं मिली है. पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने सात जनवरी, 2016 को शोधकर्ता और शीर्ष अदालत में याचिका दायर करने वाले पंकज को यह जवाब दिया था.

महात्मा गांधी महात्मा गांधी
अंकुर कुमार
  • नई दिल्ली ,
  • 15 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 8:05 PM IST

महात्मा गांधी की हत्या के पीछे विदेशी हाथ हो सकता है. ऐसा दावा सुप्रीम कोर्ट में द‍ाख‍िल एक याचिका में किया गया है. याचिका के अनुसार महात्मा गांधी हत्याकांड में मुख्य हत्यारे नाथूराम गोडसे के साथ नारायण दत्तात्रेय आप्टे को 15 नवंबर, 1949 को फांसी पर लटकाया गया था. याचिका में दावा किया गया है कि आप्टे की पहचान संदेह के घेरे में है. यही वजह ह‍ै कि याचिका में महात्मा गांधी हत्याकांड की जांच फिर से कराने का अनुरोध किया गया है.

Advertisement

विवादित है आप्ते की पहचान

आपको बता दें कि महात्मा गांधी हत्याकांड की पूरी साजिश का पता लगाने के लिये 1966 में गठित जस्ट‍िस जेएल कपूर आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आप्टे भारतीय वायु सेना में रह चुका था. हालांकि पूर्व रक्षा मंत्री इस याचिका को डालने वाले डॉ पंकज फडनीस को सूचित किया कि ‘‘नारायण दत्तात्रेय आप्टे के वायु सेना का एक अधिकारी होने के बारे में कहीं भी कोई जानकारी नहीं मिली है. पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने सात जनवरी, 2016 को शोधकर्ता और शीर्ष अदालत में याचिका दायर करने वाले पंकज को यह जवाब दिया था. ऐसे में शोधकर्ता और अभिनव भारत के ट्रस्टी फडनीस ने महात्मा गांधी हत्याकांड की जांच पर सवाल उठाते हुये कहा है कि यह इतिहास में लीपा-पोती वाला एक सबसे बड़ा मामला है. उन्होंने याचिका के साथ तत्कालीन रक्षा मंत्री और अब गोवा के मुख्यमंत्री पर्रिकर का पत्र भी संलग्न किया है. याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि इस तरह की सूचना से 30 जनवरी, 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या में कथित विदेशी हाथ की संलिप्तता साबित होती है.

Advertisement

नहीं मिली एयरफोर्स ऑफ‍िसर होने की जानकारी

याचिका के साथ दिए गए पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के लेटर में लिखा है कि मैंने मामले की जांच करायी. मुझे सूचित किया गया है कि यह मामला वायु सेना के भीतर ही विभिन्न एजेन्सियों, रक्षा मंत्रालय की डिवीजन और ब्रिटेन के एचसीआई स्थित एए के पास भेजा गया था. हालांकि नारायण दत्तत्रेय आप्टे से संबंधित कोई भी जानकारी संबंधित कोई रिकार्ड नहीं मिली है. रक्षा मंत्रालय के इतिहास प्रकोष्ठ ने तो राष्ट्रीय अभिलेखागार, केन्द्रीय सचिवालय पुस्तकालय से भी संपर्क किया और महात्मा गांधी हत्याकांड के मुकदमे के निजी कागजात का भी अध्ययन किया गया है.’’ पत्र में यह भी कहा गया है कि 1943-46 के लिये भारत के राजपत्र (वायु प्रकोष्ठ) की भी खोजबीन की गयी, लेकिन उसके भारतीय वायु सेना का अधिकारी होने के बारे में कोई भी जानकारी कहीं नहीं मिली.

फ‍िर से हो जांच

फडनीस ने पर्रिकर के पत्र के आधार पर गांधी हत्याकांड मामले की फिर से जांच कराने का अनुरोध करते हुये सु्प्रीम कोर्ट में तर्क दिया है कि ऐसी स्थिति में इस तथ्य पर भरोसा करने का पर्याप्त आधार है कि आप्टे ब्रिटिश फोर्स 136 का ऑपरेटिव था. इसकी पुष्टि इस मामले में आगे जांच के बाद ही हो सकती है.

Advertisement

आपको बता दें कि सु्प्रीम कोर्ट ने इस मामले में पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल और सीनियर वकील अमरेन्द्र शरण को न्याय मित्र नियुक्त किया है. वे इस हत्याकांड के बारे में फडनीस की याचिका और उनके द्वारा उपलब्ध कराये गये दस्तावेजों का अध्ययन करेंगे. इस याचिका में गांधी हत्याकांड में ‘तीन बुलेट की कहानी’ पर प्रश्न चिह्न लगाने के साथ यह सवाल भी उठाया गया है कि क्या नाथूराम गोडसे के अलावा किसी अन्य व्यक्ति ने चौथी बुलेट भी दागी थी? इस हत्याकांड में अदालत ने 10 फरवरी, 1949 को गोडसे और आप्टे को मौत की सजा सुनाई थी. वहीं विनायक दामोदर सावरकर को साक्ष्यों की कमी के कारण संदेह का लाभ दे दिया गया था. पूर्वी पंजाब हाई कोर्ट द्वारा 21 जून, 1949 को गोडसे और आप्टे की मौत की सजा की पुष्टि के बाद दोनों को 15 नवंबर, 1949 को अंबाला जेल में फांसी दे दी गयी थी.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement