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समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर लाने की मांग, नई याचिका पर केन्द्र को नोटिस

विभिन्न आयुवर्ग के वैज्ञानिकों, शिक्षकों, उद्यमियों और अनुसंधानकर्ताओं सहित आईआईटी के 20 पूर्व और वर्तमान छात्रों ने दावा किया कि यौन इच्छा को अपराध की श्रेणी में लाने से 'शर्म, आत्मसम्मान के खोने और कलंक की भावना' आती है.

सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट
नंदलाल शर्मा
  • नई दिल्ली ,
  • 18 मई 2018,
  • अपडेटेड 3:34 PM IST

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को समान लिंग के दो वयस्कों के बीच आपसी रजामंदी से अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध घोषित करने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को चुनौती देने वाली नई याचिका पर केन्द्र को नोटिस जारी करके उसका जवाब मांगा.

यह याचिका प्रतिष्ठित आईआईटी के 20 पूर्व और वर्तमान छात्रों के एक समूह ने दायर की है.

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प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने सरकार से जवाब मांगते हुए इस याचिका को इसी तरह की अन्य याचिकाओं के साथ नत्थी करने का आदेश दिया. इन याचिकाओं को शीर्ष अदालत द्वारा आठ जनवरी को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजा गया है.

विभिन्न आयुवर्ग के वैज्ञानिकों, शिक्षकों, उद्यमियों और अनुसंधानकर्ताओं सहित आईआईटी के 20 पूर्व और वर्तमान छात्रों ने दावा किया कि यौन इच्छा को अपराध की श्रेणी में लाने से 'शर्म, आत्मसम्मान के खोने और कलंक की भावना' आती है.

ये सभी सदस्य एलजीबीटी समुदाय से आते हैं.

यह याचिका आईआईटी के एलजीबीटी पूर्व छात्र संघ द्वारा दायर की गई. इस संगठन का दावा है कि उसके 350 से अधिक सदस्य हैं. याचिका दायर करने वालों में आईआईटी दिल्ली के 19 साल के छात्र से लेकर 1982 में आईआईटी से स्नातक तक शामिल हैं.

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