
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान समाप्त हो चुका है. मतदान खत्म होने के साथ ही 11 जिलों की 67 सीटों पर 721 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में लॉक हो गई है.जानिए इस चरण की वोटिंग की क्या खासियतें रहीं.
1.उत्तर प्रदेश में दूसरे चरण के मतदान के बाद यह बात और साफ हो गई है कि किसी भी पार्टी के पक्ष में या किसी पार्टी के खिलाफ राज्य में कोई लहर नहीं है. ज्यादातर सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है और वोटिंग खत्म होने के बाद हर पार्टी को कागज कलम लेकर हिसाब लगाना पड़ रहा है कि किस सीट पर उसके हार-जीत की कितनी संभावना है. बुधवार को जिन 67 सीटों पर मतदान हुआ है वहां पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने सबसे ज्यादा 34 सीटें जीती थीं. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक सपा के लिए इस बार ऐसा शानदार प्रदर्शन दोहरा पाना और अकेले आधी से ज्यादा सीटें जीत ले जाना नामुमकिन तो नहीं लेकिन मुश्किल भरा जरूर होगा.
2. वोटिंग में धार्मिक ध्रुवीकरण और जातीय समीकरण दोनों अलग-अलग जगहों पर अपनी भूमिका निभाते नजर आते हैं. बरेली, मुरादाबाद, रामपुर, अमरोहा और बिजनौर में कई सीटों पर जबरदस्त तरीके से धार्मिक ध्रुवीकरण देखने को मिला. चुनावी पंडितों के अनुसार दूसरे चरण की ज्यादातर सीटों पर बीजेपी मजबूती से चुनाव लड़ रही है और अधिकतर जगह पर उसका मुकाबला समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन से दिखा, लेकिन जिन सीटों पर बीएसपी के दमदार उम्मीदवार बीजेपी को हरा पाने की स्थिति में देखते हैं, वहां पर मुस्लिम मतदाता बीएसपी को भी वोट कर रहे हैं. जिन सीटों पर जातीय समीकरण ज्यादा हावी हैं वहां पर उम्मीदवार और स्थानीय मुद्दे महत्वपूर्ण हो गए और ऐसे तमाम जगहों पर बीएसपी मजबूत स्थिति में दिख रही है.
3. दूसरे चरण में जिन इलाकों में चुनाव हुए वहां पर तमाम सीट ऐसी थीं, जहां मुस्लिम मतदाता ही काफी हद तक हार जीत का फैसला कर देते हैं. मुस्लिम मतदाताओं के बीच विभाजन की भी काफी उम्मीद है. यह विभाजन कई जगह उम्मीदवार को लेकर तो कई जगह मुसलमानों के बीच की अलग-अलग जातियों की वजह से हो सकता है. जैसे इस इलाके में बड़ी संख्या में मौजूद बंजारा मुसलमानों की पहली पसंद समाजवादी पार्टी रही है तो खेती-किसानी करने वाले तुर्की मुसलमानों ने हमेशा बहुजन समाज पार्टी का साथ दिया है. अब देखना होगा कि वोटर्स ने इस चरण में किसे चुना है.
4. दूसरे चरण के मतदान वाले 11 जिलों में से बिजनौर, सहारनपुर, मुरादाबाद, अमरोहा और संभल ऐसे जिले हैं जहां जाटों की आबादी कई सीटों पर महत्वपूर्ण है, लेकिन पहले चरण के उलट इन जगहों पर धार्मिक ध्रुवीकरण हावी हो सकता है. अगर ऐसा हुआ तो अजीत सिंह की पार्टी को थोड़ा-बहुत नुकसान हो सकता है. हालांकि यह सिर्फ राजनीतिक कयास भर हैं असली तस्वीर जो मतगणना वाले दिन क्लियर हो पाएगी.
5. अन्य पार्टियों की तमाम कोशिशों के बावजूद दलितों का वोट इस बार भी मायावती का साथ छोड़ता नजर नहीं आ रहा है. जिन इलाकों में धार्मिक ध्रुवीकरण हुआ है वहां पर दलितों के वोट में सेंध लगने की उम्मीद की जा सकती है. कुछ जगहों पर पासी, कोरी और वाल्मीकि जैसी दलित जातियों का वोट बीजेपी की झोली में भी जा सकता है, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
6. छिटपुट दलित वोटों और सवर्णों के समर्थन के अलावा अति पिछड़ी जातियों के वोट भी बीजेपी के खाते में जाने की पूरी संभावना है. कुर्मी, कुशवाहा, मौर्या, सैनी जैसी जातियां के दम पर बीजेपी, समाजवादी पार्टी के यादव-मुस्लिम और बहुजन समाज पार्टी के दलित-मुस्लिम गठजोड़ को कड़ी टक्कर दे सकती है.
7. पीतल के उद्योग वाला मुरादाबाद और लकड़ी के काम के लिए मशहूर सहारनपुर दो ऐसी जगहें हैं जहां पर नोटबंदी चुनाव में एक प्रमुख मुद्दा रही. इन दोनों जगह पर नोट बंदी के बाद कारीगरों और व्यापारियों का खासा नुकसान हुआ, जिसको लेकर उनके भीतर नाराजगी थी. लेकिन इन दोनों जगहों पर लोगों की नाराजगी का ज्यादा नुकसान बीजेपी को नहीं उठाना पड़ेगा. दरअसल, दोनों ही जगहों पर पीतल और लकड़ी के काम में लगे ज्यादातर लोग मुस्लिम हैं. मुसलमानों के वोट की उम्मीद बीजेपी को पहले भी नजर नहीं आ रही थी.
8. सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली सीट रामपुर में समाजवादी पार्टी के मुस्लिम चेहरा और कद्दावर नेता आजम खान खुद सबसे बड़ा मुद्दा हैं . चमचमाते हुए रामपुर में उनकी स्थिति मजबूत है, लेकिन शहर के बाहर ग्रामीण इलाकों में लोग यह कहने से नहीं चूकते कि उनका विकास गांवों तक नहीं पहुंचा. आजम खान के काम करने के तौर-तरीकों से भी लोगों में कुछ नाराजगी नजर आती रही है.
9. आजम खान की साख की असली परीक्षा रामपुर की स्वार टांडा सीट पर होगी, जहां उनके बेटे अब्दुल्ला आजम पहली बार चुनावी मैदान में कदम रख रहे हैं. उनका मुकाबला बेगम नूर बानो के बेटे और इस सीट से मौजूदा विधायक काजि़म अली से हो रहा है.
नावेद मियां के नाम से मशहूर कासिम अली इस बार कांग्रेस को छोड़कर बीएसपी से चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन रामपुर नवाब की विरासत का फायदा उन्हें मिलता ही रहा है. नावेद मियां को हरा पाना उनके लिए आसान नहीं होगा. यह सीट समाजवादी पार्टी आज तक कभी नहीं जीत पाई है. इस सीट पर मुस्लिम वोट जरूर विभाजित हो सकते हैं.
10. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन का फायदा कई जगहों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों को मिल सकता है. गठबंधन की वजह से शाहजहांपुर की तिलहर सीट पर जितिन प्रसाद की स्थिति काफी मजबूत मानी जा सकती है. लेकिन जिन जगहों पर धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण हुआ है, वहां कांग्रेस के परंपरागत हिंदू वोट भी बीजेपी की ओर खिसक सकते हैं.