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चुके हुए चेहरे, पिटे हुए दल, शरद यादव की सियासत को कैसे देंगे बल?

शरद के आज के सम्मेलन में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, सीताराम येचुरी, गुलाम नबी आजाद, फारुक अब्दुल्ला, रामगोपाल यादव, तारिक अनवर, प्रकाश अंबेडकर, टीएमसी सांसद सुखेंदु शेखर राय, जयंत चौधरी समेत विपक्ष के कई नेता शामिल हुए.

शरद यादव के कार्यक्रम में विपक्षी दलों के नेता हुए एकजुट शरद यादव के कार्यक्रम में विपक्षी दलों के नेता हुए एकजुट
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 17 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 3:45 PM IST

महागठबंधन टूटने के बाद जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव ने बागी तेवर अपना लिए हैं. उन्होंने नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. शरद यादव ने आज अपनी सियासी राह तलाश करने के लिए विपक्षी दलों को एकजुट करके साझी विरासत बचाओ सम्मेलन किया. लेकिन शरद जिन नेताओं और दलों के सहारे अपनी सियासी ताकत नापने चले हैं, उनके पैरों तले से पहले ही सियासी जमीन खिसक चुकी है.

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 शरद के आज के सम्मेलन में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, सीताराम येचुरी, गुलाम नबी आजाद, फारुक अब्दुल्ला, रामगोपाल यादव, तारिक अनवर, प्रकाश अंबेडकर, टीएमसी सांसद सुखेंदु शेखर राय, जयंत चौधरी समेत विपक्ष के कई नेता शामिल हुए.

कांग्रेस के कंधे पर  चढ़कर बढ़ेगा कद

शरद यादव के सम्मेलन में सबसे ज्यादा कांग्रेसी नेता शामिल हुए. इससे साफ है कि उन्हें कांग्रेस से काफी उम्मीदें हैं. लेकिन कांग्रेस के पैरों तले से पहले ही सियासी जमीन खिसकती जा रही है. आज की तारीख में कांग्रेस के पास उत्तर भारत में पंजाब और हिमाचल प्रदेश के सिवा कोई राज्य नहीं बचा है, जहां वो सत्ता में हो. सवाल है कि जो कांग्रेस अपनी सियासी जमीन बचाने में खुद नाकाम है, वो शरद की सियासी जमीन मजबूत करने में कितनी सफल होगी.

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सपा के सहारे कैसी होगी नैया पार

शरद यादव को दूसरी सबसे बड़ी उम्मीद समाजवादी पार्टी है. इसीलिए एसपी के महासचिव रामगोपाल यादव सम्मेलन में शामिल हुए. जबकि समाजवादी पार्टी के आंगन में खुद ही घमासान मचा हुआ है. इसी के चलते अखिलेश यादव को 2017 के विधानसभा चुनाव में सत्ता गवांनी पड़ी और पार्टी 232 विधायकों से घटकर पचास के नीचे आ गई. ऐसे में जहां एसपी अपना वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रही है तो वो शरद के लिए उस तिनके से ज्यादा नहीं है जिसके डूबते का सहारा बनने की बात होती है.

वामदलों के सहारे कैसे होंगे मजबूत

वामपंथी पार्टियां दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रही हैं. बंगाल से सत्ता गंवाने के बाद उनके वजूद पर ही खतरा मंडराने लगा है. ऐसे में वामदल शरद यादव की सियासी जमीन कितनी मजबूत करेंगे, ये अहम सवाल है. वैसे भी वामपंथी दलों का जिन राज्यों में आधार बचा भी है वहां शरद का अपना कोई आधार नहीं है.

जीरो हो चुकी बीएसपी के भरोसे

शरद यादव अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए बीएसपी की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं. लेकिन मौजूदा दौर में बीएसपी खुद ही इतनी कमजोर हो चुकी है कि आज लोकसभा में उसका एक भी सांसद नहीं है. बीएसपी का आधार यूपी होता था. 2012 के बाद से लगातार बीएसपी यहां से चुनाव हारती आ रही है और 2014 व 2017 में तो उसे बुरी तरह मात मिली है. इसके बावजूद शरद यादव बीएसपी से उम्मीद लगाए बैठे हैं.

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जिनका कोई नहीं, उनसे भी आस

शरद यादव इन पार्टियों के अलावा छोटे छोटे सियासी दलों से भी अपनी सियासी राह मजबूत करने की उम्मीदें पाले हैं. इसीलिए उन्होंने अपने कार्यक्रम में प्रकाश अंबेडकर की पार्टी भारिपा बहुजन महासंघ, आरएलडी और एनसीपी को भी बुलाया. इन राजनीतिक पार्टियों को अपना सियासी वजूद बचाने के लिए खुद ही संघर्ष करना पड़ रहा है तो ऐसे में शरद के सियासी करियर को ये कितनी संजीवनी दे सकेंगी.

आरजेडी से आखिरी उम्मीद

शरद की सियासी राह के लिए जो कुछ थोड़ी बहुत उम्मीद की रोशनी दिख रही है वह लालू यादव की पार्टी आरजेडी है. दरअसल शरद की सियासी जमीन का आधार बिहार है और लालू यादव का भी. इतना ही नहीं दोनों पार्टियों के दुश्मन भी एक ही हैं, ऐसे में एक दूसरे के लिए वे संजीवनी हो सकते हैं. क्योंकि नीतीश का बीजेपी से हाथ मिलाने से मुस्लिम और यादव मतदाताओं में नाराजगी बढ़ी है. ऐसे में लालू और शरद अगर एक-दूसरे के साथ आते हैं तो दोनों की राजनीतिक जमीन मजबूत हो सकती है. इसीलिए आज आरजेडी की तरफ से मनोज झा शामिल हुए.

 

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