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शीला दीक्षित: सांसद से लेकर लगातार 15 साल CM तक का सफर

1998 में पहली बार गोल मार्केट विधानसभा से जीत दर्ज कर वह दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी थीं. इसी सीट से उन्होंने 2003 में भी चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर दूसरी बार दिल्ली के सीएम की कुर्सी पर बैठीं. 2008 में शीला दीक्षित ने नई दिल्ली विधानसभा से चुनाव लड़ा और लगातार तीसरी बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं.

शीला दीक्षित (फाइल फोटो) शीला दीक्षित (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 20 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 7:11 PM IST

  • शीला दीक्षित लगातार 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं
  • पहली बार 1998 में शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं
  • 2003 में गोल मार्केट से जीत दर्ज कर दूसरी बार सीएम बनीं
  • 2008 में नई दिल्ली विधानसभा सीट पर लड़ा था चुनाव

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का 81 साल की उम्र में निधन हो गया है. शीला दीक्षित दिल्ली की सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रही हैं. शीला दीक्षित पहली बार 1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी थीं. इसके बाद लगातार 15 साल तक उन्होंने दिल्ली की कमान संभाली. 1998 में पहली बार गोल मार्केट विधानसभा से जीत दर्ज कर वह दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी थीं. इसी सीट से उन्होंने 2003 में भी चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर दूसरी बार दिल्ली के सीएम की कुर्सी पर बैठीं. 2008 में शीला दीक्षित ने नई दिल्ली विधानसभा से चुनाव लड़ा और लगातार तीसरी बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं.

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शीला दीक्षित ने राजनीतिक गुर अपने ससुर उमा शंकर दीक्षित से सीखे. उमा शंकर दीक्षित कांग्रेस के कद्दावर नेता थे और कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के गवर्नर भी रहे हैं. इंदिरा राज में उमाशंकर दीक्षित देश के गृहमंत्री थे. इस दौरान शीला दीक्षित उनकी काफी मदद करती थीं. शीला दीक्षित की शानदार प्रशासनिक क्षमता को देखते हुए उन्हें इंदिरा गांधी ने स्टेटस ऑफ वुमेन के यूनाइटेड नेशन कमिशन की जिम्मेदारी सौंपी. शीला दीक्षित के ससुर उमाशंकर दीक्षित कानपुर कांग्रेस में सचिव थे. कांग्रेस में धीरे-धीरे उनकी सक्रियता बढ़ती गई और वे नेहरू के करीबियों में शामिल हो गए.

पहले शीला दीक्षित राजनीति में प्रवेश करने की इच्छुक नहीं थीं, लेकिन उनके पति विनोद दीक्षित सक्रिय राजनीति में प्रवेश करना नहीं चाहते थे. विनोद दीक्षित भारतीय प्रशासनिक अधिकारी (IAS) थे. अपने पति की व्यस्तता को देखते हुए शीला दीक्षित ने सक्रिय राजनीत में प्रवेश करने का फैसला किया.

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इंदिरा गांधी के कहने के बाद उन्होंने स्टेटस ऑफ वुमेन के यूनाइटेड नेशन कमिशन की जिम्मेदारी स्वीकार की, लेकिन अभी भी उनका चुनाव लड़ना और शीला दीक्षित का नेता बनना बाकी था. साल 1984 में आखिरकार शीला दीक्षित चुनाव मैदान उतर आईं. उन्होंने उत्तर प्रदेश के कन्नौज से कांग्रेस की टिकट पर पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. 1986 से 1989 के बीच वह केंद्रीय मंत्री रहीं. 1998 में शीला दीक्षित दिल्ली की दूसरी महिला मुख्यमंत्री बनीं. इससे पहले सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं.

2013 में नई दिल्ली सीट से शीला दीक्षित को हार का सामना करना पड़ा. अरविंद केजरीवाल ने उन्हें भारी अंतर से हराया. इस हार के बाद वे दिल्ली की राजनीति से दूर हो गईं. केंद्र की यूपीए सरकार ने उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया, लेकिन मोदी सरकार आने के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर शीला दीक्षित को अपना चेहरा बनाया, लेकिन इस बार शीला दीक्षित के नाम पर कांग्रेस कोई जादू नहीं कर पाई.

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