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शनस्यियनवान: काराकोरम दर्रे की निगरानी के लिए चीन की सबसे ‘सख्त’ चौकी

काराकोरम दर्रा रणनीतिक रूप से यह लद्दाख को तारिम बेसिन से जोड़ने वाला सबसे आसान मार्ग है. पिछली शताब्दियों में काराकोरम दर्रा सिल्क रूट के आसपास कारोबार के फलने-फूलने में बहुत अहम भूमिका निभाता था.

चीन की सबसे ‘सख्त’ चौकी  (फोटो-चीन की सरकारी मीडिया) चीन की सबसे ‘सख्त’ चौकी (फोटो-चीन की सरकारी मीडिया)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 30 जून 2020,
  • अपडेटेड 10:10 PM IST

  • काराकोरम दर्रा रणनीतिक रूप से सबसे आसान मार्ग है
  • सिल्क रूट के आसपास कारोबार में बहुत अहम भूमिका

भारत पिछले एक दशक से पूर्वी लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी (DBO) सेक्टर में बुनियादी ढांचे में शिद्दत के साथ सुधार कर रहा है. डीबीओ एडवांस लैंडिंग ग्राउंड को 2013 में फिर से सक्रिय किया गया जब भारतीय वायु सेना ने वहां C130 परिवहन विमान उतारा. समुद्र तल से 16,614 फीट ऊपर यह दुनिया भर में 50 वर्ष की सर्विस के दौरान C130 विमान की अब तक की सबसे ऊंची लैंडिंग थी.

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चीन ने इसे सीमा के साथ-साथ, खास तौर पर पूर्वी लद्दाख में अपनी पोस्ट्स बढ़ाने का बहाना बनाया. जनरल स्यू छिलीयांग, जिन्होंने अभी केंद्रीय सैन्य आयोग (CMC) के वाइस चेयरमैन का पद संभाला है, ने फॉरवर्ड पोस्ट्स का दौरा किया और ताकत, उपकरण बढ़ाने के निर्देश दिए. CMC के चेयरमैन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग हैं.

काराकोरम दर्रे की अहमियत

काराकोरम दर्रा रणनीतिक रूप से लद्दाख को तारिम बेसिन से जोड़ने वाला सबसे आसान मार्ग है. पिछली शताब्दियों में काराकोरम दर्रा सिल्क रूट के आसपास कारोबार के फलने-फूलने में बहुत अहम भूमिका निभाता था. 1940 और 50 के दशक में चीन की ओर से तिब्बत और पूर्वी तुर्केस्तान (स्यिनचीयांग) को हथियाने के साथ यह व्यापार मार्ग अप्रासंगिक हो गया.

स्यू छिलीयांग की यात्रा के बाद, एक खास पोस्ट, जिसे शनस्यियनवान कहा जाता है, अहमियत में आ गई. इसका शाब्दिक अर्थ ‘परियों की खाड़ी’ होता है और ये काराकोरम दर्रा से 7 किमी उत्तर में स्थित है.

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इंडिया टुडे ओपन सोर्स इंटेलीजेंस (OSINT) टीम ने गूगल अर्थ और अन्य ओपन सोर्स सैटेलाइट तस्वीरों के माध्यम से शनस्यियनवान पोस्ट का बारीकी से विश्लेषण किया.

शनस्यियनवान पोस्ट

माना जाता है कि PLA की यह पोस्ट, 5,265 मीटर की सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित है, जहां आब्जर्वेशन टावर लगा है. इसे मेडल ऑफ ऑनर और "काराकोरम स्टील बॉर्डर आउटपोस्ट" का टाइटल दिया गया है.

साल में 180 दिनों तक तूफानी हवाओं का सामना करने और माइनस 30 डिग्री सेल्सियस के तापमान की वजह से इसे पूरे देश में सबसे कठिन पोस्टिंग माना जाता है.

सिर्फ तुलना के लिए कहा जाए तो द्रास में भारतीय पोस्ट्स पर तापमान बर्फीली हवाओं के साथ तापमान 80 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है. सियाचिन ग्लेशियर पोस्ट्स पर तापमान और बर्फीली हवाओं का असर चीनियों की कल्पना से बाहर होगा.

पोस्ट का ब्यौरा

1950 के दशक में PLA के स्यिनचीयांग पर कब्जे के दौरान शनस्यियनवान पोस्ट की स्थापना एक सेक्शन पोस्ट के तौर पर की गई. लेकिन इसकी ताकत बढ़ाते हुए पहले एक कंपनी जितने संसाधन और फिर एक बटालियन की क्षमता तक बढ़ा दिए गए.

अन्य PLA पोस्ट्स की तरह, इसमें भारत की ओर से निर्देशित कम्युनिकेशन ट्रैंचेस के साथ सुरक्षा ढांचा है. यहां सबसे ऊंचे पाइंट पर एक बड़ा वॉचटावर है.

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एक बड़े डिश एंटीना को 2010 से अपनी जगहों को बदलते देखा गया है. संभवतः दूरस्थ स्थानों पर सैटेलाइट कम्युनिकेशन के लिए ऐसा किया गया. पोस्ट पर सैनिकों के आवास के लिए चार बड़े भवन और मोटर परिवहन पार्किंग और रसोई घर के लिए एक लंबी बैरक है.

पोस्ट में बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए सोलर पैनल्स के दो बड़े ग्रुप हैं. पारंपरिक मोटिवेशनल नारे और चीनी मानचित्र पोस्ट के सामने वाले पहाड़ पर उकेरे गए हैं. ये इतने बड़े हैं कि अंतरिक्ष से भी नजर आते हैं.

पोस्ट तक सड़क और आगे

यारकंद से पोस्ट तक आने वाली सड़क पहले बिना कोई पुल वाली और अच्छे मौसम को ही सह सकने वाली थी. 2013 के बाद, जब स्यू छिलीयांग ने शी जिनपिंग के निर्देशों के तहत कार्यभार संभाला, तो सड़क के बुनियादी ढांचे में जबरदस्त सुधार हुआ. पहले जो सड़क पोस्ट पर खत्म हो जाती थी उसे काराकोरम दर्रे के टॉप तक बढ़ा दिया गया.

काराकोरम दर्रा राडार

काराकोरम दर्रे पर चीनी सैनिकों को एक या दो दिन के लिए आकर रहते और लौटते देखा गया है. सैटेलाइट तस्वीरों में काराकोरम दर्रे के पास वाहन पर लगे राडार को कैप्चर किया गया है जिसका रुख भारत की ओर केंद्रित है.

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यह राडार बहुत संभव है कि डीबीओ एयरपोर्ट से काराकोरम दर्रे तक के क्षेत्र में हवाई गतिविधियों की निगरानी करने के लिए होगा, जो कि डेपसांग क्षेत्र के तियानवेंडियान पोस्ट पर लगे राडार से संभवत: नजर नहीं आती होंगी.

(कर्नल विनायक भट (रिटायर्ड) इंडिया टुडे के कंसल्टेंट हैं, वे सैटेलाइट तस्वीरों के विश्लेषक हैं और उन्होंने 33 वर्ष तक भारतीय सेना में सेवा की)

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