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महाराष्ट्र गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं? शिवसेना के लपेटे में कांग्रेस के मंत्री

संपादकीय में आगे लिखा गया है, उसी खाट पर बैठे अशोक चव्हाण ने भी साक्षात्कार दिया और उसी संयम से कुरकुराए, सरकार को कोई खतरा नहीं है लेकिन सरकार में हमारी बात सुनी जाए. प्रशासन के अधिकारी नौकरशाही विवाद पैदा कर रहे हैं. हम मुख्यमंत्री से ही बात करेंगे.

सीएम उद्धव ठाकरे और अशोक चव्हाण की फाइल फोटो सीएम उद्धव ठाकरे और अशोक चव्हाण की फाइल फोटो
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 16 जून 2020,
  • अपडेटेड 8:13 AM IST

  • सामना में कांग्रेस पर निशाना

  • एनसीपी चीफ शरद पवार की तारीफ
  • कांग्रेस के बयान पर उठाए सवाल

शिवसेना के मुखपत्र सामना में कांग्रेस पर निशाना साधा गया है. मंगलवार के संपादकीय में सामना ने कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण और बाला साहेब थोरात को निशाने पर लिया है. संपादकीय में लिखा गया है कि 'कांग्रेस पार्टी अच्छा काम कर रही है, लेकिन समय-समय पर पुरानी खटिया रह-रह कर कुरकुर की आवाज करती है.'

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सामना ने अपने संपादकीय में लिखा, 'खटिया (कांग्रेस की) पुरानी है लेकिन इसकी ऐतिहासिक विरासत है. इस पुरानी खाट पर करवट बदलने वाले लोग भी बहुत हैं. इसलिए यह कुरकुर महसूस होने लगी है.'

सरकार को नसीहत देते हुए संपादकीय में लिखा गया है, 'मुख्यमंत्री ठाकरे को आघाड़ी सरकार में ऐसी कुरकुराहट को सहन करने की तैयारी रखनी चाहिए. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बालासाहेब थोरात का कुरकुराना संयमित होता है. घर में भाई-भाई में झगड़ा होता है. यहां तो तीन दलों की सरकार है. थोड़ी बहुत तो कुरकुर होगी ही. मुख्यमंत्री से मिलकर बात करेंगे, थोरात ने ऐसा कहा.'

संपादकीय में लिखा गया है, 'उसी खाट पर बैठे अशोक चव्हाण ने भी इंडियन एक्सप्रेस को साक्षात्कार दिया और उसी संयम से कुरकुराए, सरकार को कोई खतरा नहीं है लेकिन सरकार में हमारी बात सुनी जाए. प्रशासन के अधिकारी नौकरशाही विवाद पैदा कर रहे हैं. हम मुख्यमंत्री से ही बात करेंगे.' अब ऐसा तय हुआ कि कुरकुर की आवाज वाली खाट के दोनों मंत्री महोदय मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी बात कहने वाले हैं.

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संपादकीय में आगे लिखा गया है, मुख्यमंत्री उनकी बात सुनेंगे और निर्णय लेंगे. लेकिन कांग्रेस क्या कहना चाहती है. राजनीति की यह पुरानी खटिया क्यों कुरकुर की आवाज कर रही है? हमारी बात सुनो का मतलब क्या है? यह भी सामने आ गया है. थोरात और चव्वाण दिग्गज नेता हैं, जिन्हें सरकार चलाने का बहुत बड़ा अनुभव है. हालांकि उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इस तरह का दीर्घ अनुभव शरद पवार और उनकी पार्टी के लोगों को भी है. हालांकि कुरकुर या कोई आहट नहीं दिख रही.

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