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Navratri 2018: कलश स्थापना की विधि, शुभ मुहूर्त, नियम और सावधानियां

(Kalash Sthapana Time Navratri 2018) नवरात्रि में कलश स्थापना का मुहूर्त इस बार सिर्फ एक घंटे दो मिनट ही रहेगा. कलश स्थापना के लिए कुछ नियमों को ध्यान में रखना जरूरी है.

Navratri Kalash Sthapana Muhurat 2018 (कलश स्थापना मुहूर्त) Navratri Kalash Sthapana Muhurat 2018 (कलश स्थापना मुहूर्त)
प्रज्ञा बाजपेयी
  • नई दिल्ली,
  • 09 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 10:51 PM IST

(Shubh Muhurat for Navratri Kalash Sthapana) शारदीय नवरात्र में कलश स्थापना का खास महत्व है. नवरात्र के प्रथम दिन पूजा घर में कलश स्थापना की जाती है. नवरात्रि में कलश स्थापना का खास महत्व होता है इसलिए कलश स्थापना सही और उचित मुहूर्त में ही करनी चाहिए.

नवरात्र के प्रथम दिन कलश स्थापना (Kalash Sthapana 2018 October Date)

कलश स्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि को किया जाएगा. यह चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग में संपन्न होगा. आइए जानते हैं नवरात्रि घटस्थापना के सबसे श्रेष्ठ और उत्तम मुहूर्त कौन से हैं और इसकी स्थापना विधि के नियम क्या हैं?

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नवरात्रि कलश स्थापना शुभ मुहूर्त 2018 (Navratri Kalash Sthapana Muhurat 2018)-

नवरात्रि कलश स्थापना शुभ मुहूर्त 10 अक्टूबर 2018 को बुधवार के दिन होगा. इस बार कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सिर्फ एक घंटे दो मिनट तक ही रहेगा. कलश स्थापना मुहूर्त सुबह 06:22 से 07:25 तक रहेगा. शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना के लिए आपको सोमवार को ही सारी तैयारियां कर लेनी चाहिए.

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अगर सुबह कलश स्थापित ना कर पाएं (Kalash Sthapana Time Navratri 2018)-

अगर इस दौरान किसी वजह से आप कलश स्‍थापित नहीं कर पाते हैं, तो 10 अक्‍टूबर को सुबह 11:36 बजे से 12:24 बजे तक अभिजीत मुहूर्त में भी कलश स्‍थापना कर सकते हैं.

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इस समय ना करें कलश स्थापना (Kalash Sthapana Muhurat 2018)

ध्‍यान रहे कि शास्‍त्रों के अनुसार, अमावस्‍यायुक्‍त शुक्‍ल प्रति‍पदा मुहूर्त में कलश स्‍थापित करना वर्जित होता है. इसलिए किसी भी हाल में 9 अक्‍टूबर को कलश स्‍थापना नहीं होगी.

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नवरात्र में कैसे करें कलश स्थापना (Kalash Sthapana Vidhi in Hindi)

नवरात्र के प्रथम दिन स्नान-ध्यान करके माता दुर्गा, भगवान गणेश, नवग्रह कुबेरादि की मूर्ति के साथ कलश स्थापन करें. कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक लिखें. कलश स्थापन के समय अपने पूजा गृह में पूर्व के कोण की तरफ अथवा घर के आंगन से पूर्वोत्तर भाग में पृथ्वी पर सात प्रकार के अनाज रखें.

संभव हो, तो नदी की रेत रखें. फिर जौ भी डालें. इसके उपरांत कलश में गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, कलावा, चंदन, अक्षत, हल्दी, रुपया, पुष्पादि डालें. फिर 'ॐ भूम्यै नमः' कहते हुए कलश को सात अनाजों सहित रेत के ऊपर स्थापित करें.

अब कलश में थोड़ा और जल या गंगाजल डालते हुए 'ॐ वरुणाय नमः' कहें और जल से भर दें. इसके बाद आम का पल्लव कलश के ऊपर रखें. तत्पश्चात् जौ अथवा कच्चा चावल कटोरे में भरकर कलश के ऊपर रखें. अब उसके ऊपर चुन्नी से लिपटा हुआ नारियल रखें.

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हाथ में हल्दी, अक्षत पुष्प लेकर इच्छित संकल्प लें. इसके बाद 'ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्र जनार्दनः! दीपो हरतु मे पापं पूजा दीप नमोस्तु ते. मंत्र का जाप करते दीप पूजन करें. कलश पूजन के बाद नवार्ण मंत्र 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे!' से सभी पूजन सामग्री अर्पण करते हुए मां शैलपुत्री की पूजा करें.

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कलश स्थापना के नियम (Navratri Kalash Sthapana Vidhi)

आराधना का यह पर्व प्रथम तिथि को घट स्थापना (कलश या छोटा मटका) से आरंभ होता है. साथ ही नौ दिनों तक जलने वाली अखंड ज्योति भी जलाई जाती है. घट स्थापना करते समय यदि कुछ नियमों का पालन भी किया जाए तो और भी शुभ होता है. इन नियमों का पालन करने से माता अति प्रसन्न होती हैं.

अगर आप घर में कलश स्थापना कर रहे हैं तो सबसे पहले कलश पर स्वास्तिक बनाएं. फिर कलश पर मौली बांधें और उसमें जल भरें. कलश में साबुत सुपारी, फूल, इत्र और पंचरत्न व सिक्का डालें. इसमें अक्षत भी डालें.

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कलश स्थापना हमेशा शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए. नित्य कर्म और स्नान के बाद ध्यान करें. इसके बाद पूजन स्थल से अलग एक पाटे पर लाल व सफेद कपड़ा बिछाएं. इस पर अक्षत से अष्टदल बनाकर इस पर जल से भरा कलश स्थापित करें.

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कलश का मुंह खुला ना रखें, उसे किसी चीज से ढक देना चाहिए. अगर कलश को किसी ढक्कन से ढका है तो उसे चावलों से भर दें और उसके बीचों-बीच एक नारियल भी रखें.

अगर कलश की स्थापना की है, तो दोनों वेला मंत्र जाप करें, चालीसा या सप्तशती का पाठ करना चाहिए. दोनों समय आरती भी करना अच्छा होगा. मां को दोनों वेला भोग भी लगाएं, सबसे सरल और उत्तम भोग हैं लौंग और बताशा मां के लिए लाल फूल सर्वोत्तम होता है, पर मां को आक, मदार, दूब और तुलसी बिल्कुल ना चढ़ाएं पूरे नौ दिन अपना खान-पान और आहार सात्विक रखें.

इस कलश में शतावरी जड़ी, हलकुंड, कमल गट्टे व रजत का सिक्का डालें. दीप प्रज्ज्वलित कर इष्ट देव का ध्यान करें. तत्पश्चात देवी मंत्र का जाप करें.

अब कलश के सामने गेहूं व जौ को मिट्टी के पात्र में रोपें. इस ज्वारे को माताजी का स्वरूप मानकर पूजन करें.अंतिम दिन ज्वारे का विसर्जन करें.

कलश स्थापना की दिशा, वास्तु (Navratri Kalash Sthapana Direction)

ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) देवताओं की दिशा माना गया है. इसी दिशा में माता की प्रतिमा तथा घट स्थापना करना उचित रहता है. माता की प्रतिमा के सामने अखंड ज्योति जलाएं तो उसे आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) में रखें. पूजा करते समय मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें.

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घट स्थापना चंदन की लकड़ी पर करें तो शुभ होता है. पूजा स्थल के आस-पास गंदगी नहीं होनी चाहिए. कई लोग नवरात्रि में ध्वजा भी बदलते हैं. ध्वजा की स्थापना घर की छत पर वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) में करें.

पूजा स्थल के सामने थोड़ा स्थान खुला होना चाहिए, जहां बैठकर ध्यान व पाठ आदि किया जा सके.

कलश स्थापना स्थल के आस-पास शौचालय या बाथरूम नहीं होना चाहिए. पूजा स्थल के ऊपर यदि टांड हो तो उसे साफ़ रखें.

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