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सिल्क स्मिता: सिल्की सनसनी की ट्रेजडी

सिल्क स्मिता में अभिनेत्रियों जैसा कुछ न था. पर सेक्स अपील के मामले में उसका कोई सानी न था. उसकी मांसल जांघों के आकर्षण का ही तो सबूत है द डर्टी पिक्चर.

सिल्क स्मिता सिल्क स्मिता
रेंडर गाइ
  • नई दिल्‍ली,
  • 03 दिसंबर 2011,
  • अपडेटेड 3:26 PM IST

अमेरिका में 1990 के दशक में एक फिल्म महोत्सव के दौरान अंग दिखाऊ वस्त्र पहने अभिनेत्री का यह पोस्टर लगा हुआ था और इसमें एक स्पष्ट संदेश छिपा हुआ थाः सेक्स अपील, दिल खोल कर 'दान' दो. सिल्क स्मिता को हालांकि दूरदराज अमेरिका में जाकर इस पोस्टर को देखने का मौका नहीं मिला, मगर अपनी सेक्स अपील को उद्घाटित करने में उन्होंने कोई कोताही नहीं बरती.

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दर्शकों ने भी इसे हाथोहाथ लिया. अभिनेत्रियों जैसी रत्ती भर भी कोई बात न होने के बावजूद 1970 के दशक के आखिर से 1990 के दशक के शुरू तक वे दक्षिण में बॉक्स ऑफिस पर भारी भीड़ खींचने का एक बड़ा औजार बनीं. तमिल और तेलुगु की कई ऐसी फिल्में, जिनमें नामी हीरो होने के बावजूद कोई उन्हें खरीदने को तैयार न था, उनमें सिल्क स्मिता का एक अदद मस्त कैबरे डांस (उन दिनों इसके लिए 'आइटम' का प्रयोग नहीं हुआ करता था) डालते ही हाथोहाथ बिक गईं. तो ऐसा था सिल्क स्मिता का जादू. तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और हिंदी फिल्मों में वे इस तरह नाचते हुए ही नजर आईं.

आंध्र प्रदेश के समृद्ध जिला मुख्यालय एलुरू के निकट एक छोटे-से गांव में 2 दिसंबर, 1960 को स्मिता का जन्म हुआ. गरीबी, जन्म से ही एक सखी सरीखी उनके साथ हो ली. उम्र जैसे-जैसे बढ़ी, उनका शरीर भी भरने लगा, तो वे अपने पास-पड़ोस ही नहीं बल्कि दूरदराज के गांवों-कस्बों के पुरुषों के अवांछित आकर्षण का केंद्र बनने लगीं. उनकी मां ने एक बैलगाड़ीवान से उनका लगन तय कर दिया, जिसे स्मिता में कमाई का एक आसान जरिया नजर आया.

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सिनेमा हमेशा से आंध्र प्रदेश के जनजीवन का अहम हिस्सा रहा है. ऐसे में यह कोई हैरत की बात नहीं थी कि विजयलक्ष्मी, उनका असल नाम, अपने शहर में आने वाली फिल्मों के पोस्टर देखकर खासी रोमांचित हुआ करती थीं. एक सुबह विजयलक्ष्मी ने मद्रास (अब चेन्नै) के लिए ट्रेन पकड़ी और कॉलीवुड के निर्माताओं के दरवाजों पर दस्तक देने लगीं. उन्होंने एक छोटी अदाकारा के घर में नौकरानी के रूप में काम शुरू किया और जल्द ही वे उसकी मेक-अप असिस्टेंट बन गईं. एक दिन एक निर्माता अपनी चमचमाती कार में उस अदाकारा के घर आया और यह नौकरानी तो उसे देख एकदम हतप्रभ रह गई. मालकिन ने कटाक्ष किया कि क्या वह भी उस तरह की कार में बैठकर सैर करने का सपना देखने लगी है? विजयलक्ष्मी ने उसी पल जवाब दिया कि एक दिन वे ऐसी ही कार में उनके घर आकर उनको आदाब करेंगी.

ऐसा ही हुआ. उस समय उस ढलती अदाकारा के लिए वह वाकई हैरत में डालने वाला लम्हा था. युवा विजयलक्ष्मी के भीतर इतनी जबरदस्त महत्वाकांक्षा, जद्ग़बा और चाहत थी कि उसने अपने सपनों को साकार करने के लिए नेमत में मिली कुदरती खूबियों-गदराई देह, कशिश भरा चेहरा, और इन सबसे ऊपर कातिलाना नजर-का इस्तेमाल करने में संकोच न किया.

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एक मलयालम फिल्म इनाय तेडी (1979) में काम करने के बाद उन्होंने अपनी दूसरी ही फिल्म वंडी चक्रम (1979), जो तमिल में उनकी पहली फिल्म थी, में दर्शकों को हिलाकर रख दिया. इस फिल्म में उन्होंने शराब की दुकान चलाने वाली एक लड़की का किरदार निभाया था. इसमें अपने कूल्हों को वे निहायत मादक अंदाज में मटकाकर चलती हैं. इस चाल का बाकायदा नाम पड़ गयाः सिलुक्कारतु. वंडी चक्रम  के लेखक वीनू चक्रवर्ती ने इस किरदार को सिलुक्कू नाम दिया था, जो बाद में फिल्म की कामयाबी के बाद सिल्क बन गया. बाद में इस अदाकारा के पूरे कॅरियर के दौरान यह नाम जुड़ा रहा. परदे पर उनका नाम स्मिता ही दिया जाता था.

क्लब डांस या कैबरे डांस के नाम से जाने जाने वाले उनके नृत्य-गीत जैसे-जैसे दक्षिण भारतीय फिल्मों की खुराक बनते गए, उन्होंने एक-एक गाने के 50,000 रु. तक लेने शुरू कर दिए. और निर्माता रकम हाथ में लिए खड़े रहते थे. स्मिता के लिए परदे पर शर्मो-हया का कहीं कोई नामोनिशान तक न था. एक मलयालम फिल्म में तो वे पांव के अंगूठे की मदद से अपना पेटीकोट उतार देती हैं. यह दृश्य दर्शकों की आंखों में समा जाता है.

मद्रास में, स्मिता ने दूसरी शादी की. इस बार एक डॉक्टर से उनकी गांठ बंधी, जिसने उन्हें प्रोडक्शन में हाथ आजमाने को राजी किया. पर उनका पैसा डूब गया और वे अवसाद में डूब गईं. उनकी कामयाब तमिल फिल्मों में से एक ऐंद्रु पेता मझाई (1989) अशोक कुमार ने निर्देशित की थी. फिल्म बनने के दौरान ही स्मिता ने अशोक कुमार से कहा कि वे मर जाना चाहती हैं.

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इस लेखक ने अशोक कुमार के निर्देशन के लिए तमिल टीवी सीरीज सीनियर-जूनियर लिखी थी. पहले ही एपिसोड में एक युवती को दिखाया गया था जो बाथटब में डूब रही होती है. यहां सवाल यह पूछा गया था कि यह कत्ल है या खुदकुशी. वह भूमिका स्मिता ने निभाई थी. इस सीरीज की शूटिंग अभी चल ही रही थी कि 23 सितंबर, 1996 को वे अपने घर में छत के पंखे से लटकी हुई मिलीं. उनकी मौत की जांच कर रही पुलिस को इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं मिल सके कि यह हत्या थी या आत्महत्या. फॉरेंसिक जांच में जहर की कोई बात सामने नहीं आई. तेलुगु में एक सुसाइड नोट था, जिसे समझा नहीं जा सका.

उनकी हिट फिल्मों में सकाला काला वलावन (1986), अलैगल ओएवातिल्लै (1981 की इस फिल्म में उन्होंने नख से शिख तक ढकी हुई एक पतिव्रता स्त्री की भूमिका निभाई थी), मूंद्रम पिरै (1982 की हिंदी फिल्म सदमा इसी का रीमेक थी) और लयानम (1989 की इस फिल्म में तीन स्त्रियां एक लड़के को मोहपाश में फंसाती हैं. हिंदी में यह रेशमा की जवानी के नाम से बनी) शामिल हैं.

मौत के आज 15 साल बाद भी उनका जादू बरकरार है. हाल ही में यह लेखक श्रीलंका से आए पत्रकारिता के छात्रों को पढ़ा रहा था. स्मिता का .जि.क्र और कमल हासन के साथ उनके एक गीत की पंक्तियां नेतु रातिरी यम (फिल्म सकाला काला वलावन  से) का उल्लेख आने पर वे सब एकदम रोमांचित होकर तालियां बजाने लगे.

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स्मिता के नक्शे.कदम पर कई अदाकाराएं आईं, वक्षों का उनसे ज्‍यादा प्रदर्शन किया और अश्लीलता को एक नया आयाम दिया लेकिन कोई भी स्मिता जैसी सेक्स अपील पैदा न कर सकीं. अब उस ट्रैजिक स्टार का किरदार निभाने विद्या बालन उतरी हैं, इसमें ताज्‍जुब की भला क्या बात!

चेन्नै में रह रहे रेंडर गाइ एक स्तंभकार, वकील और फिल्म इतिहासकार हैं.

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