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वो सड़कों पर भीख मांगती ताकि अनाथ बच्चों का पेट भर सकें

वो बच्चे जिनके खाने-पीने की चिंता करने वाला कोई नहीं है. सिंधुताई ने इन बच्चों को उस वक्त अपनाया जब वो खुद अपने लिए आसरा जुटाने के लिए प्रयास कर रही थीं.

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 31 जुलाई 2015,
  • अपडेटेड 12:44 PM IST

सिंधुताई सपकाल की जिन्दगी एक ऐसे बच्चे के तौर पर शुरू हुई थी, जिसकी किसी को जरूरत नहीं थी. उसके बाद शादी हुई, पति मिला वो गालियां देने और मारने वाला. जब वो नौ महीने की गर्भवती थीं तो उसने उन्हें छोड़ दिया. जिस परिस्थ‍िति में वो थीं कोई भी हिम्मत हार जाता लेकिन सिंधुताई हर मुसीबत के साथ और मजबूत होती गईं. आज वो 1400 बच्चों की मां हैं.

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वो बच्चे जिनके खाने-पीने की चिंता करने वाला कोई नहीं था. सिंधुताई ने इन बच्चों को उस वक्त अपनाया जब वो खुद अपने लिए आसरा जुटाने के लिए प्रयास कर रही थीं.

सिंधुताई एक नाम से कहीं ज्यादा हैं. 68 साल की इस औरत के भीतर सैकड़ों कहानियां छिपी हुई हैं. सिंधुताई की फुर्ती को देखकर शायद ही आप अंदाजा लगा पाएं कि वो बुजुर्ग हो चुकी हैं. लोग उन्हें प्यार से 'अनाथों की मां' कहते हैं.

एक हंसता-‍खिलखिलाता चेहरा पुरानी बातों को याद करने के साथ ही बुझ जाता है. पर उनकी बातें किसी के लिए भी प्रेरणा बन सकती हैं. वो कहती हैं कि मैं उन सबके लिए हूं जिनका कोई नहीं है. वो अपने अब तक के सफर के बारे में बताते हुए सबसे पहले यही कहती हैं कि वो एक ऐसी संतान थीं जिसकी किसी को जरूरत नहीं थी. उनका नाम भी चिंधी था, जिसका मतलब होता है किसी कपड़े का फटा हुआ टुकड़ा.

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हालांकि उनके पिता ने उनका पूरा साथ दिया और वो उन्हें पढ़ाने के लिए भी आतुर थे पर चौथी कक्षा के बाद वो अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सकीं. उन पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई और बाद में कच्ची उम्र में ही शादी कर दी गई.

10 साल की उम्र में वो 30 साल के आदमी की घरवाली थीं. उनके पति ने उन्हें दुख देने में कोई कसर नहीं छोड़ी और हालात इतने बुरे हो गए कि उन्हें गौशाला में अपनी बच्ची को जन्म देना पड़ा. वो बताती हैं कि उन्होंने अपने हाथ से अपनी नाल काटी.

इन सब बातों ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया. उन्होंने आत्महत्या करने की भी बात सोची लेकिन बाद में अपनी बेटी के साथ रेलवे-प्लेटफॉर्म पर भीख मांगकर गुजर-बसर करने लगीं. भीख मांगने के दौरान वो ऐसे कई बच्चों के संपर्क में आईं जिनका कोई नहीं था. उन बच्चों में उन्हें अपना दुख नजर आया और उन्होंने उन सभी को गोद ले लिया. उन्होंने अपने साथ-साथ इन बच्चों के लिए भी भीख मांगना शुरू कर दिया. इसके बाद तो सिलसिला चल निकला. जो भी बच्चा उन्हें अनाथ मिलता वो उसे अपना लेतीं.

अब तक वो 1400 से अधिक बच्चों को अपना चुकी हैं. वो उन्हें पढ़ाती है, उनकी शादी कराती हैं और जिन्दगी को नए सिरे से शुरू करने में मदद करती हैं. ये सभी बच्चे उन्हें माई कहकर बुलाते हैं. बच्चों में भेदभाव न हो जाए इसलिए उन्होंने अपनी बेटी किसी और को दे दी. आज उनकी बेटी बड़ी हो चुकी है और वो भी एक अनाथालय चलाती है.कुछ वक्त बाद उनका पति उनके पास लौट आया और उन्होंने उसे माफ करते हुए अपने सबसे बड़े बेटे के तौर पर स्वीकार भी कर लिया.

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सिंधुताई का परिवार बहुत बड़ा है. उनके 207 जमाई है, 36 बहुएं हैं और 1000 से अधिक पोते-पोतियां हैं. आज भी वो अपने काम को बिना रुके करती जा रही हैं. वो किसी से मदद नहीं लेती हैं बल्कि खुद स्पीच देकर पैसे जमा करने की कोशिश करती हैं.

उनके इस काम के लिए उन्हें 500 से अधिक सम्मानों से नवाजा जा चुका है. उनके नाम पर 6 संस्थाएं चलती हैं जो अनाथ बच्चों की मदद करती हैं.

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