
एक वक़्त वो भी था जब गुरमीत राम रहीम के दर पर सरकार सर झुकाती थी. कतार में खड़े होकर मंत्री से संतरी तक बाबा के दर्शन किया करते थे. क्योंकि बाबा का आशीर्वाद वाला हाथ जिस तरफ झुकता था, भाग्य उसी के खुलते थे. मगर यूं ही किसी ने नहीं कहा 'आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे.. कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिज़ाज.' और सचमुच वक्त ने ऐसी पलटी मारी कि बाबा को सब अकेला छोड़ कर भाग गए. यहां तक कि खुद बाबा की अपनी हनी भी.
कभी वो बाबा को राखी बांधती थी... तो कभी बाबा के साथ फादर्स डे मनाती थी... आर्शीवाद लेती थी... यही नहीं वो बाबा के साथ मदर्स डे मनाते हुए कहती थी 'तू है तो हिम्मत है, तू है तो जन्नत है, तू है तो रहमत है.'
बस एक काम कीजिए बाबा राम रहीम और हनीप्रीत के दरमियान से इन रिश्तों की बंदिशों को अलग कर दीजिए. क्योंकि इस समाज में अब भी इतनी गैरत है कि ऐसे रिश्तों का भरम बाकी रहे. अब इस रिश्ते पर यकीन मत कीजिए. अब इन नज़दीकियों को शक़ की निगाह से देखिए. इस आशीर्वाद पर भी भरोसो मत कीजिए. क्योंकि अब तो न ये रिश्ता भरोसे के काबिल है. न ये नज़दीकियां पाक हैं और न ये दुआएं सच्ची हैं.
हनीप्रीत के पूर्व पति ने पहले ही सनसनीखेज खुलासा किया था. उसने कहा था "मैंने गुफा का दरवाज़ा खोला तो दोनों आपत्तिजनक हालत में थे. मुझे दूसरे कमरे में रखा जाता था और हनीप्रीत बाबा के साथ रहती थी."
बस इतनी गवाही काफी है एक पति की. बलात्कारी बाबा की नीयत को समझने के लिए. यूं भी शक़ न करें तो क्या करें. जो जगह बीवी की होनी चाहिए थी वो बाबा ने अपनी इस मुंहबोली को दे रखी है. बेटी तो कहते हुए भी शर्म आती है. क्योंकि बाप और बेटी का रिश्ता बहुत पाक होता है. शक़ तो उसी दिन हो जाना चाहिए था, जब आंखों ने आखों से इस तरह मिलना शुरू कर दिया था. शुब्हा तो तभी पैदा हो जाना चाहिए था. जब मुंहबोली को इसने कुछ इस तरह छुआ था.
बिना कुछ कहे जो दिल की बात समझ ले, जब भी मिले एक टाइट हग ज़रूर दे. समाज बाप-बेटी के रिश्ते पर जल्दी सवाल नहीं उठाता. क्योंकि कोई हर्ज नहीं है बाप को मां समझने में, दोस्त समझने में, राखी बांधने में. मगर, हर रिश्ते की भी एक हद होती है. और जब वो हद पार हो जाए तो बाप राम रहीम बनता है और बेटी हनीप्रीत.
हर वक्त दिल की बस एक ख्वाहिश कि आपकी दीद हो जाए और जब दीद हो, उस वक्त मेरी ईद हो जाए. हनीप्रीत कहती थी, 'मुझे मोटीवेशन मिलती है पापा को देख कर. जब पापा इतना फॉस्ट कर रहे होते हैं. तो मुझे भी लगता है कि मुझे फॉस्ट करना है.' हनीप्रीत के मुंहबोले पिता ने उसे बहुत कुछ सिखाया. मगर, उसकी हर तालीम में ऐब था. खोट था.
तू आता है सीने में. जब जब सांसें भरती हूं.
तेरे दिल की गलियों से मैं हर रोज़ गुज़रती हूं
हवा के जैसे चलता है तू, मैं रेत जैसी उड़ती हूं
कौन तुझे यूं प्यार करेगा, जैसे मैं करती हूं
शायद हनीप्रीत के प्यार को बाबा ने बुहत पहले ही भांप लिया था. मगर उसके रास्ते में उसकी बाबागीरी आ रही थी. लिहाज़ा हनीप्रीत के लिए उसे एक बलि का बकरा चाहिए था. ताकि चेहरे उसका रहे और रिश्ता बाबा निभाएं. मगर जब बाबा और हनीप्रीत रंगे हाथों पकड़ लिए गए तो खेल उल्टा पड़ गया.
खुद को फंसता देख बाबा ने विश्वास गुप्ता पर दहेज के इल्ज़ाम लगा दिया और गुंडों से पीछा कराना शुरू कर दिया.. और साल 2009 में दोनों को अलग कराकर बाबा ने कबाब सें हड्डी को निकालकर किस्सा ही खत्म कर दिया. अब हनीप्रीत बाबा का साया और बाबा हनीप्रीत का ‘रेड रोज’ था. त्योहार कोई भी हो ट्वीटर पर इज़हार खुल कर होने लगा. एक ट्वीट में हनीप्रीत उर्फ प्रियंका ने बाबा को कहा, 'आप गुलाब से भी ज्यादा सुंदर हैं.'
अदालती दस्तावेज के मुताबिक खुद हनीप्रीत के असली पिता ने आरोप लगाया कि बाबा ने हनीप्रीत और विश्वास गुप्ता की शादी सिर्फ इसलिए कराई थी ताकि वो अपने इस अवैध संबंधों को बनाए रखे. विश्वास गुप्ता के पिता ने भी हनीप्रीत पर पावर, पॉपुलैरिटी और पैसे की लालची होने का इल्ज़ाम लगाया था. वरना खुद उसकी स्कूल की प्रिंसिपल ये कबूल रही हैं कि पढ़ाई के दौरान हनीप्रीत का धर्म से कोई लेना- देना ही नहीं था. फिर अचानक वो इतनी धार्मिक कैसे हो गई कि बाबा की साधिका बन गई.
शायद जिस मक़सद से हनीप्रीत बाबा के करीब गई थी. वो सब का सब पूरा हो गया. पॉवर भी मिला. पॉपुलैरिटी भी मिली और अब बहुत उम्मीद है कि डेरा और बाबा राम रहीम की तमाम संपत्ति भी अब उसी की होगी. हनीप्रीत के हनीट्रैप में बाबा तो फंस कर बर्बाद हो गया मगर प्रियंका तनेजा की लॉटरी लग गई.