
यूपी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सपा कोशिश में है कि गठबंधन का फैसला जल्द से जल्द हो जाए. कांग्रेस के साथ उसकी बातचीत फाइनल हो चुकी है. असली पेच फंसा है आरएलडी को लेकर, आरएलडी से अभी बातचीत भी शुरुआती दौर में ही है. ऐसा लग रहा है कि गठबंधन को लेकर आरएलडी तो अपना मन बना चुकी है लेकिन सपा तय नहीं कर पा रही है. दरअसल, समाजवादी पार्टी को डर है कि अगर आरएलडी गठबंधन में आती है तो मुस्लिम वोट छिटक सकता है.
किरणमय नंदा ने की पुष्टि
आजतक की खबर पर सपा के वरिष्ठ नेता किरनमय नंदा ने भी मुहर लगाई है. उनके मुताबिक सपा गठबंधन की खातिर सिर्फ कांग्रेस से बातचीत कर रही है. नंदा ने कहा, "आरएलडी से कोई बात नहीं हो रही है. आरजेडी, ममता और जेडीयू केवल सपा को सपोर्ट करेंगे और चुनाव प्रचार में भाग लेंगे हम इनके साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेंगे. हम सिर्फ 2017 को ध्यान में रख चुनाव नहीं लड़ रहे हैं हमारी नजर 2019 के चुनावों पर भी है. कांग्रेस के साथ सीटों का बंटवारा 2012 के चुनाव परिणाम के आधार पर होगा."
चुनाव-दर-चुनाव कम होता गया आरएलडी का जादू
आपको बता दें कि आरएलडी की पकड़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फिलवक्त निम्न स्तर पर है. 2002 के विधानसभा चुनावों में आरएलडी ने 38 उम्मीदवार उतारे थे जिसमें से 14 को जीत मिली थी जबकि 12 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी.
2007 के चुनावों में आरएलडी ने 254 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से उसे सिर्फ 10 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. खास बात यह थी कि 222 सीटों पर आरएलडी के प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई थी. 2007 के चुनावों में आरएलडी का वोट प्रतिशत 3.70% था.
2007 के चुनावों में मिली करारी हार से सीख ले आरएलडी ने 2012 के चुनावों में महज 46 सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतारे. इस बार भी परिणाम आरएलडी के आशानरुप नहीं रहा और उसे सिर्फ 9 सीटों से संतोष करना पड़ा. चुनावों में उसके 20 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई. 2012 के चुनावों में आरएलडी का वोट प्रतिशत घटकर 2.33% ही रह गया.
2017 के चुनावों के मद्देनजर भी आरएलडी की कोई बड़ी तैयारी नजर नहीं आती. आरएलडी गठबंधन की राह देख रहा है. अगर सपा के साथ उसका गठबंधन न हुआ तो वह अपने निम्नतम स्तर की ओर जा सकती है.
होगा सीट का विवाद
गठबंधन में अगर आरएलडी भी आती है तो कांग्रेस की सीटें कम हो सकती हैं. सपा ने साफ कर रखा है कि वे 300 सीटें तो अपने पास ही रखेंगे. गठबंधन के लिए बाकी सीटें छोड़ सकते हैं. जाहिर है कि अगर गठबंधन की जगह अगर यह महागठबंधन हुआ तो कांग्रेस को 70 के आसपास सीटों पर संतोष करना पड़ेगा. हालांकि कांग्रेस इस गठबंधन को संजीवनी की तरह ले रही है ताकि वह एक संतोषजनक स्थिति में आ सके और हार की तोहमत से बच सके.
सपा को है ध्रुवीकरण का डर
पश्चिमी यूपी में सपा गठबंधन के साथ मैदान में इसलिए उतरना चाह रही है क्योंकि अगस्त 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे के बाद राज्य का यह क्षेत्र दो वर्गों में बंटा हुआ नजर आता है. राज्य के इस हिस्से में लोकसभा चुनावों के दौरान ध्रुवीकरण का प्रभाव साफ नजर आया था. हिन्दु बाहुल्य इलाका होने के चलते बीजेपी को थोड़ी राहत की उम्मीद है, यही वजह है कि सपा मुस्लिम वोट पर मजबूत पकड़ बनाने की हरसंभव कोशिश में लगी हुई है.
सपा-बीएसपी में हुई थी कड़ी टक्कर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 2012 के आंकड़ों को देखें तो सपा को 24, बीएसपी को 23, बीजेपी को 13, आरएलडी को 9 और कांग्रेस को 5 सीटें मिली थीं. मथुरा की मांट सीट उपचुनाव के दौरान बीजेपी के खाते में आ गई थी. वहीं मथुरा की गोवर्धन सीट से आरएलडी विधायक अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. इसी तरह से अलीगढ़ की बरौली विधानसभा से आरएलडी विधायक भी अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.