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अभिनेता आर माधवन को आपने मैडी के रूप में 'रहना है तेरे दिल में' और मनु के किरदार में 'तनु वेड्स मनु' में देखा है, अब माधवन 'साला खड़ूस' में एक एक्टर के साथ-साथ प्रोड्यूसर का भी किरदार निभा रहे हैं. इस फिल्म को लेकर माधवन से हुई खास बातचीत के पेश है कुछ मुख्य अंश:
फिल्म की रिलीज के लिए बस चंद दिन बचे हुए हैं, जेह्न में क्या चल रहा है?
यही की जिस तरह से ट्रेलर देखने के बाद दर्शकों का प्यार मिला है वैसे ही फिल्म भी दर्शकों को भाए, उसके लिए प्रयासरत हैं. हम जी जान लगा रहे
हैं.
प्रोड्यूसर बनने का एक्सपीरियंस शेयर करें?
मैं राजू जी (राजकुमार हिरानी ) को शुक्रिया अदा कहना चाहूंगा, उन्होंने मुझे कभी भी प्रोड्यूसर होने के तनाव को महसूस नहीं होने दिया. मुझे उन्होंने
एक एक्टर बने रहने दिया है और पूरा भार अपने ऊपर पर ले लिया.
फिल्म को एक ही वक्त पर दो अलग-अलग भाषाओं में शूट करना मुश्किल था?
हमने 'रहना है तेरे दिल में', '13 बी', को भी अलग-अलग भाषाओं में शूट किया था. दरअसल अगर कोई फिल्म दो भाषाओं में 100 रुपये में बन रही
है तो एक ही टाइम पर शूट करने से 40 रुपये में बन जाती है. यह अनुभव कठिन है लेकिन मजा आया. मुझे तमिल और हिंदी दोनों भाषाएं आती हैं तो
मेरे लिए आसान था, लेकिन मैं रीतिका को बधाई देना चाहूंगा जिस तरह से उसने हिंदी के साथ-साथ तमिल की भी तैयारी की थी.
रीतिका से पहले कोई बॉलीवुड का बड़ा नाम आपके जेह्न में नहीं था?
हम कभी भी उस दिशा में गए ही नहीं, अगर हमें रीतिका नहीं मिलती तो शायद ये फिल्म नहीं बनती. अगर कोई बॉक्सर नहीं मिलती तो मैं ये फिल्म नहीं बना पाता.
खुद के फिल्मी सफर को कैसे देखते हैं?
मेरी सोच बदल गई है. एक एक्टर दर्शकों को तब तक यकीन नहीं दिला सकता है जब तक वो निजी जिंदगी में उस दौर से ना गुजर सका हो. मैं तो
बिहार में पला बढ़ा हूं, मेरे भीतर वहां के सारे रस छुपे हुए हैं. मैंने तमिल फिल्मों में अपने कई रूप दिखाए हैं. मैं 'तनु वेड्स मनु' में भी असल जिंदगी की
कई बातों को लेकर आया था.
कभी आप असल जिदंगी में भी खड़ूस रहे हैं?
मैं फिल्मों में आने से पहले एक प्रोफेसर था, मुझे पता है लोगों के साथ कैसे पेश आना चाहिए. मैंने असल जिंदगी में कई सारे मौकों पर सब कुछ
अनुभव किया है.
आप भारत में कई प्रदेशों से ताल्लुक रखते हैं?
ये तो ऊपरवाले की देन है. बिहार में पैदा हुआ, मद्रासी हूं, यूएस जाकर पढ़ाई लिखाई की, फिर कनाडा जाकर घुड़सवारी जैसी चीज सीखी और अब
बॉलीवुड में हूं.
क्रिटिक्स आपके लिए कितने मायने रखते हैं?
बहुत सारे क्रिटिक हैं, कई लोग मेरी कला की जगह निजी तौर पर भी अटैक करते हैं. मैं उनको कभी भी सीरियस नहीं लेता, क्योंकि मैं उनसे कभी
मिला भी नहीं. ऐसे कई क्रिटिक्स हैं जिन्हे सिनेमा के बारे मैं पता भी नहीं होता लेकिन वो तंज कसने पर आमादा रहते हैं. पब्लिक मुझे प्यार करती है,
और वो मेरे काम को सराहती है, मेरे लिए वही बहुत है.
सफलता और विफलता को कैसे लेते हैं?
बस एक ही तरह से, जिस दिन फिल्म रिलीज होती है उस रात सो नहीं पाता हूं, दूसरे दिन खुशी या अफसोस की वजह से मैं थोड़ा चुप रहता हूं,
और तीसरे दिन मेरे जहन से फिल्म की सफलता या विफलता निकल जाती है, क्योंकि मैं आगे देखने लगता हूं. ये बात देखकर मेरी बीवी भी आश्चर्यचकित
रहती है.
'साला खड़ूस' के बाद आगे का क्या प्लान है?
अभी मैं किसी से नहीं मिल पाया हूं, एक फिल्म की रिलीज के बाद दूसरी में थोड़ा वक्त जाता है. जल्दबाजी में कुछ नहीं करना चाहिए.
किसी बायोपिक का हिस्सा बनना चाहते हैं?
मुझे लगता है कि 'सुभाष चन्द्र बोस' के बारे में काफी काम बताया गया है, उनकी जीवनी निभाना चाहूंगा, साथ ही मेरे कई ऐसे दोस्त हैं जो छोटे-छोटे
शहरों से निकालकर आज विदेश में ओबामा और बड़े-बड़े लोगों को सुझाव देते हैं, मुझे लगता है उनकी भी बायोपिक खास होगी.
अवॉर्ड के बारे में आपकी क्या राय है?
देखिए मुझे कभी भी कोई अवॉर्ड नहीं मिला, लेकिन अवॉर्ड मिलने से कभी किसी को कोई फायदा नहीं हुआ है, मुझे बेस्ट न्यूकमर या एक्टर का अवॉर्ड
नहीं मिला लेकिन यह दर्शकों का प्यार ही है कि मैं पिछले 15 साल से इंडस्ट्री में हूं. कभी-कभी सही लोगों को अवॉर्ड मिलते हैं, जैसे कंगना रनोट, इरफान
खान और दीपक डोबरियाल को अवॉर्ड मिले हैं जो मेरी नजर में सबसे जायज हैं. हॉलीवुड में अवॉर्ड की अहमियत ज्यादा है क्योंकि वहां ऑस्कर अवॉर्ड
मिलते ही एक्टर की जिंदगी सबसे ज्यादा सुरक्षित हो जाती है. हमारे यहां इतने सारे अवार्ड्स होते हैं, आशा है किसी को तो फायदा हो.