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क्या है स्पॉट फिक्सिंग और मैच फिक्सिंग में अंतर?

क्रिकेट में मैच फिक्सिंग अब कोई नया मामला नहीं रहा. लेकिन स्पॉट फिक्सिंग क्रिकेट से कुछ साल पहले ही जुड़ा है. तो आईये समझते हैं क्या है इन दोनों में बारीक अंतर.

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 16 मई 2013,
  • अपडेटेड 2:08 PM IST

क्रिकेट या अन्य महशूर खेलों में मैच फिक्सिंग का नाम या खिलाड़ियों पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगना कोई नई बात नहीं है. लेकिन स्पॉट फिक्सिंग का नाम कुछ ही साल पहले सुना गया है. ऐसा कहा जाता है की स्पॉट फिक्सिंग करके कोई भी टीम या खिलाड़ी मैच के निर्णय को भी प्रभावित नहीं करते लेकिन फिर भी वे बुकी से पैसे कमा लेते हैं. ताजा उदाहरण आईपीएल में श्रीसंत, अंकित चव्हाण और अजित चंदीला के हैं, और इस मामले में अभी परतें खुलनी बाकी हैं.

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ऐसा कहा जाता है कि बदलते समय के साथ-साथ फिक्सिंग भी बदल गई है. चूंकि इससे जुड़े लोगों को तो सिर्फ पैसा कमाने से मतलब है, इसलिए जरूरी नहीं है कि इससे मैच का नतीजा प्रभावित हो, बल्कि कुछ ऐसा करवाया जाता है जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. यहीं से स्पॉट फिक्सिंग की शुरुआत होती है.

मान लीजिए कोई टीम पहले खेलते हुए बढ़िया बल्लेबाजी कर रही है, और उसने 19 ओवर में 194 रन बनाए हैं. अब जाहिर सी बात है की हर कोई उम्मीद करेगा की ये टीम 20 ओवर में 200 रन का आंकड़ा आराम से पार कर जाएगी. बुकी यहां सट्टा लगवाते हैं कि क्या खेल रही टीम 200 रन बना लेगी या नहीं. तो जाहिर सी बात है कि अधिकतर लोग सट्टा लगायेंगे कि टीम 200 रन बना लेगी. अब यहां अगर स्पॉट फिक्सिंग की गई है तो मैदान में खेल रहे क्रिकेटरों को संदेश भेजा जाता है कि उन्हें अंतिम ओवर में 6 या इससे अधिक रन नहीं बनाने हैं और नतीजतन बैटिंग कर रही टीम 199 रन का आंकड़ा नहीं पार करती. इस प्रकार एक बढ़िया स्कोर भी बना और इससे मैच का नतीजा भी तत्काल प्रभावित नहीं हुआ.

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इसके अलावा, स्पॉट फिक्सिंग में कोई खिलाड़ी बुकी के कहे अनुसार मैच में किसी खास समय में कुछ खास चीजें करता है. मसलन कोई गेंदबाज अपने एक ओवर में जानबूझकर नो बॉल या वाईड बॉल फेंकता है या कोई बल्लेबाज किसी एक ओवर में कोई रन नहीं बनाता है या कप्तान मैदान में कुछ ऐसे फैसले लेता है जो पहले से ही ‘फिक्स’ किए जा चुके हैं.

आईपीएल और स्पॉट फिक्सिंग का रिश्ता पहली बार 2012 में सामने आया था जब एक टीवी चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में 5 खिलाड़ियों- टी.पी. सुधीन्द्र, मोहनीश मिश्रा, अमित यादव, शलभ श्रीवास्तव और अभिनव बाली ने स्पॉट फिक्सिंग करने के बदले में पैसे लेने की बात कबूली थी. इसके बाद बीसीसीआई ने इन सभी पर हर प्रकार की क्रिकेट से प्रतिबंधित कर दिया था.

स्पॉट फिक्सिंग का सबसे बड़ा मामला 2010 में सामने आया था जब इंग्लैंड दौरे पर गई पाकिस्तानी टीम के तीन सदस्यों- कप्तान सलमान बट्ट, तेज गेंदबाज मोहम्मद आमिर और मोहम्मद आसिफ पर स्पॉट फिक्सिंग में शामिल होने के आरोप लगे थे. एक अखबार द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशन में इन तीनों को स्पॉट फिक्सिंग करने में लिप्त पाया गया था और फिर इन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी.

मैच फिक्सिंग इससे एकदम अलग है, जहां खिलाड़ी सीधे-सीधे मैच के निर्णय को प्रभावित करते हैं या कोई खिलाड़ी जानबूझकर अपनी सामर्थ्य से कम प्रदर्शन करता है ताकि उसका फायदा विरोधी टीम को मिले. जब मैच में बेहद कांटे की टक्कर हो रही हो, तब एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी भी निर्णय को पलट सकता है. अनेक बार फिक्सिंग की दलदल में कई खिलाड़ी एकसाथ शामिल होते हैं जो ‘तालमेल’ दिखाते हुए मैच के नतीजे को प्रभावित करते हैं.

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पूर्व पाकिस्तानी कप्तान सलीम मालिक और तेज गेंदबाज अता-उर-रहमान पर मैच फिक्सिंग के चलते आजीवन प्रतिबन्ध लग चुके हैं, और वसीम अकरम पर आर्थिक जुर्माना लगने के साथ-साथ उन्हें तब कप्तानी भी गंवानी पड़ी थी. भारत के पूर्व कप्तान और मोहम्मद अजहरुद्दीन, अजय जडेजा और अजय शर्मा भी फिक्सिंग के आरोप में प्रतिबन्ध झेल चुके हैं.

लेकिन फिक्सिंग के कारण विश्व को सबसे बड़ा धक्का सन 2000 में लगा था जब तत्कालीन दक्षिण अफ्रीकी कप्तान हैंसी क्रोन्ये ने बुकी के साथ रिश्ते होने की बात मानी थी. क्रोन्ये को दुनिया के सबसे ईमानदार खिलाड़ियों में से एक माना जाता था, और दक्षिण अफ्रीकी बोर्ड द्वारा प्रतिबन्धित करने के कुछ समय बाद एक हवाई जहाज दुर्घटना में उनकी मृत्यु भी हो गई थी.

कुल मिलाकर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि सट्टेबाजी एक प्याज की तरह है. जिसकी जितनी परतें आप हटाते जाएंगे, उतनी ही और परतें निकलती आएंगी और साथ में आंसू भी आएंगे.

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