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अगर अमेरिकी मीडिया की अटकलें आने वाले वर्षों में सच साबित हुईं तो अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट को बॉलीवुड और कोरमा का मुरीद अपना पहला जज मिल सकता है. डीसी कोर्ट ऑफ अपील्स की बेंच के लिए राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा मनोनीत किए जाने के बाद 46 वर्षीय श्रीकांत ‘‘श्री श्रीनिवासन अभी सुनवाई के लिए यूएस सीनेट जुडिशियरी कमेटी के समक्ष हाजिर भी नहीं हुए थे कि उससे पहले ही कानून के जानकारों ने भविष्यवाणी करना शुरू कर दिया था कि फेडरल अपील कोर्ट में मनोनीत अब तक का पहला भारतीय-अमेरिकी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है.
यह निराधार भी नहीं है. चंडीगढ़ में जन्मे श्रीनिवासन ने, जो इस समय प्रिंसिपल डिप्टी सॉलिसिटर जनरल हैं, 10 अप्रैल को हुई सुनवाई में इस कदर प्रभावित किया कि डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों ही सीनेटरों ने उनकी जमकर तारीफ की. दोनों ही पार्टियों के सीनेटरों की तारीफ पाना एक दुर्लभ बात थी.
अमेरिका में न्यायालय में नामांकित व्यक्ति के लिए सुनवाई लोहे के चने चबाने जैसा काम होती है. सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के ही समूह नामांकित व्यक्ति के हर उस शब्द का लेखा-जोखा करते हैं, जो उसने पिछले वर्षों में बोले या लिखे हैं, ताकि उसके राजनैतिक झुकाव का अंदाजा लगाया जा सके. डीसी कोर्ट ऑफ अपील्स को सुप्रीम कोर्ट की ओर जाने वाली सीढ़ी का पायदान माना जाता है और सर्वोच्च बेंच पर बैठे जज आजीवन काम करते हैं. दूसरी अपीली अदालतों के लिए ओबामा की ओर से नामांकन के लिए प्रस्तावित व्यक्तियों और डीसी सर्किट के लिए प्रस्तावित एक व्यक्ति को रिपब्लिकनों के कड़े विरोध के चलते ही पहले ही अपना नाम वापस लेना पड़ा है.
इसलिए जब इस नामित शख्स को जिसकी तारीफ ओबामा ने ‘पथ प्रदर्शक’ की संज्ञा देते हुए की थी, एक वरिष्ठ रिपब्लिकन सीनेटर की ओर से सार्वजनिक तौर पर समर्थन का वचन दिया गया, या ओबामा के घोर आलोचक रिपब्लिकन सीनेटर टेड क्रूज ने उनकी दोस्ती के बारे में मजाक किया, तो यह आपसी सहमति का एक दुर्लभ अवसर था और साथ ही यह श्रीनिवासन की काबिलियत का सबूत भी था.
वर्जीनिया के आर्लिंगटन में रहने वाले श्रीनिवासन का करियर सरकारी और निजी वकील के रूप में बहुत शानदार रहा है. पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू. बुश के समय सॉलिसिटर जनरल के कार्यालय में अपने पहले कार्यकाल के अलावा वे लॉ फर्म ओ, मेलवेनी ऐंड मायर्स में वकील थे. दोनों पार्टियों के बारह पूर्व सॉलिसिटर जनरलों ने डीसी कोर्ट ऑफ अपील्स के लिए उनकी पुष्टि के पत्र पर दस्तखत किए थे.
श्रीनिवासन के साथ महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें किसी राजनैतिक पार्टी का हिमायती नहीं समझा जाता. नॉर्थ अमेरिकन साउथ एशियन बार एसोसिएशन (नसाबा) की पूर्व अध्यक्ष जोल्सना जॉन कहती हैं, ‘‘न ही वे अति उदारपंथी हैं और न ही अति रूढ़िवादी. वे नरमपंथी हैं.’’
मजे की बात है कि उनकी मां सरोजा के मुताबिक, वे लगभग डॉक्टर बन चुके थे. कैलिफोर्निया के पालो आल्टो में अपने घर पर वे याद करती हैं कि उनके बेटे को मेडिकल स्कूल की ओर से छात्रवृत्ति का प्रस्ताव आया था और उन्होंने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में मानव जीवविज्ञान की पढ़ाई भी की थी. विश्वविद्यालय की पढ़ाई के दौरान श्रीनिवासन ने महसूस कि उन्हें कानून के क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहिए. उनके पास स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से कानून और बिजनेस की दोहरी डिग्री है.
श्रीनिवासन कनसास के लॉरेंस में पले-बढ़े, जहां उनके पिता टी.पी. श्रीनिवासन कनसास यूनिवर्सिटी में गणित पढ़ाते थे और उनकी मां आर्ट इंस्टीट्यूट में अध्यापिका थीं. सरोजा कहती हैं, ‘‘वे दिल और आत्मा से पूरे हिंदुस्तानी हैं. आज भी जब मैं उनसे पूछती हूं कि उन्हें क्या पसंद है तो वे तुरंत कहते हैं-मैं हिंदुस्तानी डिनर करना चाहता हूं. वे चाहते हैं कि मैं उनके लिए नान और नवरतन कोरमा बनाऊं.’’ श्रीनिवासन नसाबा में भी काफी सक्रिय रहे. कमेटी में दोस्ताना सुनवाई के बावजूद श्रीनिवासन के नामांकन को लंबा सफर तय करना है. कमेटी को वोट की तारीख अभी निश्चित नहीं हुई है. हालांकि जानकारों का मानना है कि यह मई में रखी जा सकती है. उसके बाद वे पूरे सीनेट की ओर से पुष्टि का इंतजार करेंगे.
भारतीय-अमेरिकी समुदाय श्रीनिवासन की वाहवाही कर रहा है. नसाबा की अध्यक्ष एमिली निनान कहती हैं, ‘‘न्यायपालिका को विविध विचारों और अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोगों की जरूरत है.’’