Advertisement

कैसे साफ होगी गंगा, जब राज्यों ने आवंटित राशि का किया ही नहीं इस्तेमाल

2018 तक गंगा सफाई के पहले चरण का काम पूरा हो जाएगा. ऐसे में जून 2017 के बाद गंगा साफ दिखने भी लगेगी. 2018 से दूसरे चरण का काम शुरू होना है, यह काम 2020 तक पूरा होगा.

गंगा नदी गंगा नदी
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 26 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 11:58 PM IST

नरेंद्र मोदी सरकार की ओर गंगा नदी को साफ करने के लिए 'नमामि गंगे' कार्ययोजना को जोरशोर से शुरू किया गया था लेकिन इस योजना के तहत कछुआ गति से ही काम हो पा रहा है. गंगा की धारा जिन पांच राज्यों से होकर गुजरती है उनमें से चार राज्यों ने इस मद में आवंटित बजट राशि का पूरा हिस्सा भी नहीं लिया है. इन राज्यों में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. इनके अलावा गंगा नदी झारखंड से भी होकर गंगा निकलती है लेकिन इस राज्य में गंगा जिस इलाके में बहती है उसकी लंबाई सिर्फ 70 किलोमीटर ही है.
 
गंगा पर आवंटित राशि का पूरा उपयोग नहीं

बीस हजार करोड़ के बजट आवंटन से शुरू हुई नमामि गंगे परियोजना फिलहाल चल तो रही है लेकिन इसकी रफ्तार काफी धीमी है. इस रफ्तार का पता इससे भी लगता है कि पांच राज्यों को विभिन्न परियोजनाओं के लिए जितना बजट आवंटित किया गया है वह राज्यों पूरा लिया तो नहीं, जो लिया वह खर्च भी नहीं कर सके. इस बात की पुष्टि केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने भी की है.

हालांकि उमा यह भी मानती हैं कि आवंटित राशि उठा ना पाने या खर्च ना कर पाने की वजह लापरवाही नहीं बल्कि तकनीकी दिक्क्तें हैं. उमा भारती ने कहा कि पहले से जो तमाम कार्ययोजनाएं राज्य सरकारें चला रही थीं अब उससे बिल्कुल अलग ढंग से काम हो रहा है. लिहाजा पुरानी योजनाएं बंद कर नए सिरे से योजनाएं बनाई जा रही हैं और उन पर अमल का तौर-तरीका भी नया है. इसलिए भी देरी हो रही है लेकिन हम समय से अपनी कार्ययोजना को पूरी कर लेंगे.
 
'2017 में असर दिखना शुरू हो जाएगा'

उमा भारती के मुताबिक 2018 तक गंगा सफाई के पहले चरण का काम पूरा हो जाएगा. ऐसे में जून 2017 के बाद गंगा साफ दिखने भी लगेगी. 2018 से दूसरे चरण का काम शुरू होना है, यह काम 2020 तक पूरा होगा.
 
नमामि गंगे प्रोजेक्ट की शुरुआत से ही इसके बजट और खर्च की राशि में काफी अंतर रहा है. 2014-15 में 2137 करोड़ रुपये का बजट मंजूर किया गया और राशि आवंटित की गई 2053 करोड़ रुपये लेकिन खर्च सिर्फ 326 करोड़ रुपये ही हुए.  2015-16 में 1650 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की गई और खर्च होने से 18 करोड़ रुपये बच गए. इस साल 2500 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं. लेकिन खर्च का हिसाब अब तक नहीं मिल पाया है.
 
'तकनीकी कारणों से खर्च नहीं हो सका बजट'
 
जल संसाधन मंत्रालय के सूत्र के मुताबिक उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल ने अपने लिए मंजूर धनराशि का पूरा इस्तेमाल नहीं किया है. इस बारे में केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने  राज्य और क्रेंद सरकार के बीच तालमील की कमी से इनकार करते हुए कहा कि गंगा पर तो पूरी दुनिया एकजुट है. ये तो अपने ही देश के राज्य हैं, गंगा पर सबकी सहमति है. लेकिन जैसे ही नये सिरे से बन रही योजनाओं पर काम की रफ्तार बढ़ेगी नतीजे आने शुरू हो जाएंगे.
 
विशेषज्ञों की राय अलग
 
हालांकि इस मामले में विशेषज्ञों की राय अलग है. पर्यावरणविद हरीश बहुगुणा का कहना है कि जब तक गंगा या किसी भी नदी की गाद निकालने का काम सही तरीके से और पूरी ईमानदारी से नहीं होता तब तक सतही सफाई का कोई मतलब नहीं है. बहुगुणा के मुताबिक असली सफाई तो गंगाजल की गुणवत्ता सुधारना है, उसमें गिरने वाले सीवेज के नालों को रोकना है.
 
सरकार कहती रही है कि सीवेज के जल का ट्रीटमेंट करने के बाद उसे गंगा में नहीं डाला जाएगा. ऐसे में सवाल उठता है कि गंगा से हम बड़ी मात्रा में पानी तो निकालेंगे लेकिन ट्रीटेड पानी वापस नहीं करेंगे तो नदी का प्रवाह कैसे बनेगा और कैसे आगे बढ़ेगा. बहरहाल ये सभी सवाल भी गंगा की मंथर धारा में ही बहते जा रहे हैं.
 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement