
इसी साल 16 अक्तूबर को अमल में लाई गई भावांतर भुगतान योजना (बीबीवाइ) यानी कृषि उत्पादों की मूल्य घाटा वित्तपोषण योजना किसानों के लिए रामबाण साबित नहीं हुई, जैसा कि उम्मीद की गई थी. जून में पश्चिमी मध्य प्रदेश के किसानों पर पुलिस की गोलीबारी के बाद घोषित इस योजना के तहत (भ्रष्टाचार के आरोपों और खरीदे गए प्याज के स्टॉक के भारी नुक्सान के आरोपों के बीच) राज्य स्वयं भंडारण के लिए खरीदारी नहीं करेगा. इसकी बजाए किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और योजना के अंतर्गत आने वाली आठ फसलों के मॉडल (आदर्श) मूल्य के बीच के अंतर का भुगतान किया जाएगा. अगर बिक्री मूल्य आदर्श कीमत से ज्यादा हुआ, तो किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य और विक्रय मूल्य के अंतर का भुगतान किया जाएगा. हालांकि इस योजना के लागू होने के एक पखवाड़े बाद ही यह एक और परेशानी का कारण बन गई है.
पंजीकरण और अवरोधों के चलते यह खरीद प्रक्रिया किसानों के लिए बेहद चुनौती बनकर सामने आई है. फिर व्यवसायियों ने भुगतान का ऑनलाइन हस्तांतरण करने से इनकार कर दिया और वे सरकार के आदेश का हवाला देकर नकद भुगतान से मना करते हुए किसानों को बाद की तिथि के चेक का प्रस्ताव दे रहे हैं. पहले से ही राज्य भर में कई मंडियों में आंदोलन हो रहे हैं.
पहली नजर में, ऐसा लगता है कि व्यवसायियों ने कीमतों को दबाने के लिए गुटबंदी भी की थी, खासकर उड़द के मामले में. उड़द के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,400 रु. प्रति क्विंटल है, जबकि इसे 2,000-2,200 रु. प्रति क्विंटल की दर से खरीदा जा रहा है. सरकार ने शुरू में साहस दिखाया था. प्रमुख सचिव (कृषि ) राजेश राजौरा कहते हैं कि उड़द को छोड़कर भावांतर योजना के लागू होने से पहले कीमतें वही थीं, जो इस योजना के लागू होने के बाद हैं. हम गुटबंदी को रोकने के लिए खरीद की बारीकी से जांच करेंगे.
किसानों की उत्तेजना और गुस्से को भांपते हुए, खासकर खरीफ की तैयारी और रबी की बुआई के अतिव्यस्त महीनों में सरकार ने किसानों के गुस्से को शांत करने के लिए अपना तरीका अपनाया है. अमेरिका की यात्रा से लौटने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तुरंत चीजों को सुचारु बनाने के लिए कई उपायों की घोषणा की. उन्होंने घोषणा की कि व्यवसायी किसानों को नकद 50,000 रु. देने में सक्षम हैं और बाकी रकम वे आरटीजीएस के माध्यम से भुगतान कर पाएंगे. व्यापारियों ने शुरू में बुरी तरह रोना रोया (देरी से भुगतान हमेशा लाभदायक होता था), फिर तुरंत ही रास्ते पर आ गए. राज्य सरकार भी अब उत्पादों के खेत से बाजार तक की परिवहन लागत का भुगतान कर रही है. मुख्यमंत्री चौहान ने यह भी कहा कि सभी फसलों के लिए आदर्श कीमत की घोषणा हर महीने की जाएगी. राज्य सरकार को उम्मीद है कि भावांतर योजना के माध्यम से 56 लाख टन कृषि उत्पादों की खरीद की जाएगी, जिसकी लागत करीब 3,600 करोड़ रु. होगी, जिसमें केंद्र और राज्य बराबर योगदान देंगे.
इससे कितनी मदद मिलेगी, यह देखा जाना है. लेकिन कांग्रेस स्थिति से नाखुश नहीं है. विपक्षी नेता अजय सिंह कहते हैं, ''किसान इस योजना को लेकर उत्साहित नहीं हैं, जैसा कि पंजीकरण संख्या से स्पष्ट है." मध्य प्रदेश में करीब 85 लाख किसान हैं, लेकिन अब तक मात्र 19 लाख किसानों ने इस योजना के लिए पंजीकरण कराया है और एक राजनीतिक समूह के रूप में उनका महत्व किसी के लिए खत्म नहीं हो सकता. विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ते चौहान को आखिर में एक और किसान आंदोलन की जरूरत है.