
सुबह आंखें खोलने से लेकर रात को सोने तक इंसान हर वक्त कुछ न कुछ करने या कुछ पाने की कोशिश में ही लगा रहता है. दिमाग में भी हर समय कुछ न कुछ चलता ही रहता है. जीवन से चैन और सुकून हर पल दूर होता जाता है, पर हाथ क्या आता है?
अपने असली स्वरूप के ज्ञान और मन में प्रभु के ध्यान के लिए चौबीस घंटों में कम से कम पांच-सात मिनट तो हर किसी को निकालना ही चाहिए. श्रीरामचरितमानस का एक अंश प्रभु के दिव्य और कल्याणकारी स्वरूप को दर्शाता है. इसका पाठ सनातन धर्म मानने वाले हर व्यक्ति को जरूर करना चाहिए.
हर दिन सुबह या शाम के वक्त नियमित रूप से 'बालकांड' के इस अंश का पाठ करने से साधकों का कल्याण होता है. लक्ष्मीपति श्रीहरि की कृपा प्राप्त होती है और चित्त स्वस्थ व प्रसन्न रहता है...
जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिधुंसुता प्रिय कंता।।
पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई।
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई।।
जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा।
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा।।
जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगतमोह मुनिबृंदा।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा।।
जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा।
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा।।
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुर जूथा।।
सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहि जाना।
जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना।।
भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा।
मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा।।
दोहा: जानि सभय सुरभूमि सुनि बचन समेत सनेह।
गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह।।