
तमिलनाडु में पेन्नग्राम नाम का एक छोटा सा गांव है, जहां हर गांव की तरह कई किसान रहते हैं, लेकिन यहां एक किसान काफी अलग है. पहली नजर में आपको करीब 45 साल के इस किसान में ऐसी कोई खासियत नजर नहीं आएगी, लेकिन इसके बारे में आप जानकर हैरान रह जाएंगे. खेत की मिट्टी से सना गमछा और सफेद बनियान पहने इस शख्स का नाम है डॉ. हरिनाथ कासीगनेसन. खास बात ये है कि हरिनाथ अमेरिका में अपनी अच्छी खासी नौकरी और एक प्रतिष्ठित औषधि शोध वैज्ञानिक का दर्जा छोड़कर अपने गांव में ऑर्गेनिक खेती और परंपरागत औषधीय पौधे उगाने का काम कर रहे हैं.
वे चाहते हैं कि उनके अनुभव का फायदा बड़े सरमाएदारों की बजाय आम लोगों को मिल सके. चेन्नई से स्नातकोतर की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ. हरिनाथ ने भारत में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में काम किया. इस दौरान पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम के सरल एवं सहज व्यक्तित्व ने उन पर गहरा प्रभाव डाला और एक बहुत अच्छे इंसान के संपर्क में आकर वह खुद भी एक अच्छा इनसान बनने के रास्ते पर चल पड़े.
अमेरिका में थे वैज्ञानिक
डॉ. हरिनाथ का मानना है कि कलाम के व्यक्तित्व में पारस जैसा करिश्मा था, जो उनके नजदीक आने वाले हर व्यक्ति को सोना बना देने की ताकत रखता था. डॉ. हरिनाथ ने भाषा को बताया कि एक दशक से अधिक समय तक डीआडीओ में काम करने के बाद वे साल 2005 में अमेरिका चले गए और वहां दिल से जुड़ी बीमारियों की बहुत सी दवाएं तैयार करने में अंतरराष्ट्रीय दवा कंपनियों के साथ काम किया. वहां तकरीबन एक दशक तक उन्होंने चार्ल्सटन की साउथ केरोलिना मेडिकल यूनिवर्सिटी में औषधि वैज्ञानिक के तौर पर काम किया, लेकिन एक ऐसा वक्त आया कि उन्हें अपना काम निरर्थक लगने लगा.
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ऐसे बने किसान
डॉ. हरिनाथ बताते हैं कि भरपूर दौलत और शोहरत हासिल करने के बावजूद एक मौके पर उन्हें महसूस हुआ कि उनका शोध उन लोगों के किसी काम नहीं आ रहा, जिन्हें इसकी वास्तव में जरूरत है, बल्कि वह दवा कंपनियों के लिए मुनाफा कमाने का साधन बन गए हैं. इस बात ने उन्हें अपराध बोध से भर दिया और उन्होंने आम लोगों के रोगों को दूर करने के लिए कुछ करने की ठान ली.
इस दौरान उनकी मां को बढ़ती उम्र में गठिया और स्पोंडेलाइटिस की बीमारी ने जकड़ लिया और उनके डॉक्टर ने उन्हें दर्दनिवारक दवा खाने की सलाह दी, जिससे फायदा होने की बजाय उन्हें अल्सर हो गया. डॉ. हरिनाथ के अनुसार, उन्हें अपना सारा शोध बेकार लगने लगा क्योंकि वह अपनी बीमार मां की मदद नहीं कर पा रहे थे. उन्हें इस बात से बहुत पीड़ा हुई कि दवाओं से जुड़े होने के बावजूद वह अपनी बीमार मां को ठीक नहीं कर पा रहे हैं. मां के इलाज के लिए वह कुछ समय के लिए अपने गांव लौट आए.
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उन्होंने मां की बीमारी की परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों का अध्ययन करना शुरू किया तो पता चला कि गांवों में बहुतायत में मिलने वाले पेड़ मोरिंगा ओलिफेरा 'ड्रमस्टिक' की पत्तियों में इस बीमारी से लड़ने की तासीर है. बेटे के कहने पर उनकी मां ने हर सुबह इस पेड़ की पत्तियां उबालकर पीना शुरू किया और देखते देखते उनकी बीमारी दूर हो गई. इसके साथ ही उन्होंने फसलों पर कीटनाशक के भारी इस्तेमाल को रोकने के लिए भी कुछ करने की ठान ली.
उसके बाद डॉ. हरिनाथ को प्रभावित किया और वे करीब दो साल तक लंदन में आर्गेनिक खेती पर गहन अध्ययन करने के बाद हमेशा के लिए गांव वापस चले आए और परंपरागत औषधीय पौधे उगाने के साथ आर्गेनिक खेती शुरू की. मां के प्रोत्साहन से डॉ. हरिनाथ ने जमीन का एक टुकड़ा खरीदा और उसपर किसी रासायनिक पदार्थ का इस्तेमाल किए बिना दालें, जडी़ बूटियां, सब्जियां और फल उगाने लगे. उन्होंने चिकित्सकीय गुणों वाली चावल की बहुत सी किस्मों का पता लगाया और उनकी खेती की.
बनाते हैं दवाइयां
इसके अलावा उनके खेत में चिकित्सकीय गुणों वाले ढेरों पेड़ हैं. उन्होंने इन औषधीय पौधों से बहुत सी दवाएं बनाई हैं, जो स्थानीय लोगों की गठिया, मधुमेह, रक्तचाप और रक्ताल्पता जैसी पुरानी बीमारियों को ठीक करने में इस्तेमाल हो रही हैं. वह बताते हैं कि उन्होंने अपनी कुछ प्राकृतिक दवाओं को आगे के शोध के लिए डीआरडीओ को भी भेजा है. दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो अपनी दौलत, शोहरत और रूतबे को छोड़कर आम लोगों की मदद का रास्ता चुनते हैं.