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उत्तर प्रदेश में सीतापुर जिला मुख्यालय से 40 किमी पूर्व स्थित बिसवां ब्लॉक के बन्नीराय गांव के 75 वर्षीय किसान भगवानदीन 60 वर्षों से अपने एक एकड़ खेत में गन्ने की खेती कर रहे हैं. पर अब उनकी हिम्मत जवाब दे गई है. उनका परिवार लगातार बड़ा होता जा रहा है पर खेती से आय सिकुड़ती जा रही है. कुरेदने पर भगवानदीन कांपते हाथों से एक जर्जर डायरी के पन्ने पलटने लगते हैं जिसमें गन्ने की खेती की लागत का हिसाब है. आंखों पर चढ़े मोटे चश्मे पर जोर डालकर भगवानदीन एक एकड़ खेत में पैदा हुए करीब 250 क्विंटल गन्ने की लागत गिनाना शुरू करते हैं. खेत की जुताई में कुल खर्च 2,500 रु., बीज पर 6,000 रु., सिंचाई पर 12,000 रु., डीएपी खाद पर 2,400 रु., यूरिया पर 2,000. एक-एक करके वे गुड़ाई, बंधाई, छिलाई, ढुलाई और कीटनाशक में हुआ कुल खर्च 53,500 रु. गिना देते हैं. पिछले महीने गांव में खुले बिसवां चीनी मिल के खरीद केंद्र को वे अपना पूरा गन्ना बेच आए हैं. पैसा तो अभी मिला नहीं पर राज्य सरकार की ओर से निर्धारित 280 रु. प्रति क्विंटल के राज्य परामर्शी मूल्य (एसएपी) की पहली किस्त यानी 230 रु. प्रति क्विंटल की दर से भगवानदीन को सिर्फ 57,500 रु. ही मिलेंगे. यानी साल भर खेत में पसीना बहाने के बाद फायदा महज 4,000 रु. होगा. अगर चुनावी वर्ष में भगवानदीन को अपना पूरा पैसा चीनी मिल से मिल भी जाए तो साल भर की कमाई 16,500 रु. ही बैठेगी यानी हर महीने 1,400 रु. से भी कुछ कम. बेहद मायूस भगवानदीन कहते हैं, ''1,400 रु. महीने में तो दो छोटे पोतों के लिए दो वक्त के दूध का इंतजाम भी मुश्किल है.'' गन्ने की खेती में बढ़ती लागत और खरीद मूल्य में बढ़ोतरी न होने से सिकुड़ती आय ने उनकी कमर तोड़ कर रख दी है.
बन्नीराय के ही नहीं, राज्य के 40 लाख किसानों के सामने परिवार का पेट पालने का संकट है जो इस चुनावी वर्ष में गन्ने के खरीद मूल्य बढऩे की आस लगाए हुए थे. किसी तरह चीनी मिलों से लड़-झगड़कर किसानों ने पिछले वर्ष की उपज का बकाया पैसा तो हासिल किया पर अगली लड़ाई का आगाज भी हो गया. इस वर्ष चीनी के दाम 3,000 रु. प्रति क्विंटल के ऊपर पहुंचने के बावजूद राज्य सरकार ने मिलों के खरीदे जाने वाले गन्ने के राज्य परामर्शी मूल्य (एसएपी) 280 रु. प्रति क्विंटल में पिछले तीन वर्षों की तरह इस बार भी वृद्धि नहीं की है (देखें चार्ट). गुस्साए किसानों ने 1 फरवरी को प्रदेश में एक साथ प्रदर्शन कर संकेत दे दिया कि अब वे चुप बैठने वाले नहीं हैं.
किसानों की कीमत पर चीनी मिल मालिकों को फायदा पहुंचाने का आरोप निराधार नहीं है. किसानों से खरीदे जाने वाले गन्ने के राज्य परामर्शी मूल्य न बढ़ाने के साथ सरकार ने चीनी मिलों को पहली किस्त के रूप में 230 रु. प्रति क्विंटल की दर से किसानों को भुगतान करने का आदेश भी दिया जो पिछले वर्ष से 10 रु. प्रति क्विंटल कम है. सुप्रीम कोर्ट में किसानों की पैरवी कर रहे वी.एम. सिंह कहते हैं, ''सरकार चीनी मिलों से किसानों को पिछला भुगतान ही नहीं करवा पाई है, बावजूद इसके इस वर्ष मिलों के लिए भुगतान की पहली किस्त भी कम कर दी.'' पेराई सत्र 2014-15 के लिए सरकार ने चीनी मिलों को गन्ना क्रय कर, चीनी पर प्रवेश कर, सोसाइटियों को मिलने वाले कमिशन से तो छूट दी, साथ में किसानों के खाते में मिलों के हिस्से का पहले 8.60 रु. प्रति क्विंटल और बाद में 20 रु. प्रति क्विंटल की दर से भुगतान किया. इस तरह सरकार ने कुल 2,930 करोड़ रु. की मदद किसानों को दी. बावजूद इसके मिलों ने किसानों को पिछले पेराई सत्र के 704 करोड़ रु. का भुगतान नहीं किया है. सबसे खराब स्थिति तितावी, मवाना, मलकपुर, मोदीनगर, न्योली, बघौली मिलों की है जो 60 फीसदी भुगतान कर पाई हैं. गन्ना आयुक्त अजय कुमार सिंह परामर्शी मूल्य को न बढ़ाने को जायज ठहराते हैं, ''राज्य समर्थित मूल्य बढ़ा तो दें पर वक्त पर चीनी मिलें इसका भुगतान किसानों को न करें तो फायदा दलालों को होता है. किसान तुरंत पैसे की आस में गन्ने को कम दाम पर दलालों को बेच देते हैं.''
पश्चिम में सर्वाधिक संकट
सत्र 2015-16 के लिए चीनी मिलों ने नवंबर के अंतिम हफ्ते में पेराई शुरू कर दी थी. गन्ना आयुक्त कार्यालय के एक अधिकारी बताते हंय कि भले ही तब तक खरीद मूल्य तय नहीं हुआ था पर मिल मालिकों और अधिकारियों के बीच किसानों से गन्ना खरीदने के 14 दिनों के भीतर 230 रु. प्रति क्विंटल की दर से भुगतान करने पर सहमति बन चुकी थी. इसके बाद 92 निजी समेत 116 चीनी मिलों ने पेराई शुरू की. समय पर पेराई शुरू होने पर भी किसानों के हालात नहीं बदले. चीनी मिलों ने वर्तमान पेराई सत्र में किसानों को अब तक 3,035 करोड़ रु. का भुगतान नहीं किया है. सहारनपुर और मेरठ क्षेत्र की मिलों ने कुल गन्ना खरीद के एक चौथाई के आसपास ही भुगतान किया है. निजी चीनी मिलों में 11 ऐसी भी हैं जिन्होंने अब तक किसानों को उनकी उपज के बदले एक भी पैसा नहीं दिया है (देखें ग्राफिक्स). इनमें 10 पश्चिमी यूपी की हैं.
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय सचिव धर्मेंद्र मलिक कहते हैं, ''मिलें जान-बूझकर भुगतान नहीं कर रहीं ताकि किसान आंदोलित हों और सरकार मिल मालिकों की शर्तें मानने को मजबूर हो जाए.'' वैसे गन्ना आयुक्त सफाई देते हैं कि इस वर्ष मिलों के क्रय और भुगतान में 3,000 करोड़ रु. का अंतर है क्योंकि मिलों ने इस पैसे से अपना पिछला उधार चुकाया है. उन्हें उम्मीद है कि पेराई बंद होने तक यह अंतर 1,500 करोड़ रु. आ जाएगा. पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष प्रदेश में एंट्री टैक्स माफ किए जाने संबंधी नोटिफिकेशन जारी न होने से भी मिलें आशंकित हैं. यूपी शुगर मिल एसोसिएशन के सचिव दीपक गुप्तारा कहते हैं, ''एंट्री टैक्स में छूट मिलने से मिलें तेजी से किसानों को भुगतान कर सकेंगी.''
गन्ने से छूटता मोह
मेरठ के मवाना निवासी किसान अमरेंद्र सिंह राघव 20 वर्षों से अपने 30 बीघा खेत में गन्ना पैदा करते आ रहे थे. पिछले तीन वर्षों से गन्ने के भुगतान में आ रही अड़चनों को देखते हुए अमरेंद्र ने अपनी खेती का पैटर्न ही बदल डाला है. इस वर्ष इन्होंने महज 10 बीघा खेत में गन्ना बोया है, बाकी में गेहूं और सब्जियों की खेती शुरू की है. उन्हीं की तरह कई किसान गन्ने की बजाए दूसरी फसलों को तवज्जो देने लगे हैं. गन्ना विभाग के आंकड़े इसकी तस्दीक कर रहे हैं (देखें चार्ट). वर्तमान वित्तीय वर्ष में प्रदेश में बोए गए गन्ने का क्षेत्रफल पिछले पांच वर्षों के न्यूनतम स्तर पर है. भले ही गन्ने की नई प्रजातियों के इस्तेमाल से चीनी उत्पादन में मामूली वृद्धि हुई हो पर 2012 से गन्ना उत्पादन लगातार गिर रहा है.
सरकार किसानों को एक खास ''238 प्रजात्यि का गन्ना बोने के लिए प्रेरित कर रही है जिससे एक हेक्टेयर में औसतन 800 क्विंटल गन्ना पैदा होता है. सरकारी कोशिशों के बावजूद कुल 20 लाख हेक्टेयर के गन्ना क्षेत्रफल में महज 3 लाख हेक्टेयर में नई प्रजाति का गन्ना बोया जाता है क्योंकि इस प्रजाति के इस्तेमाल में कीटनाशकों का खर्च बढ़ जाता है. वैसे, संयुक्त गन्ना आयुक्त (क्रय) वी.के. कनौजिया कहते हैं, ''सूखे के कारण गन्ने के उत्पादन में भी गिरावट आई है.'' कनौजिया को उम्मीद है कि गन्ने की पैदावार कम होने से चीनी के दाम बढ़ जाएंगे. इससे किसानों को लाभ होगा क्योंकि चीनी मिलें उन्हें अपेक्षाकृत ज्यादा तेजी से भुगतान कर सकेंगी.
सरकारी अधिकारी भले ही आशावान हों पर गन्ना किसान निराश हैं. एक फरवरी को मुजफ्फरनगर में नावाला कोठी रजवाड़े के पास नेशनल हाइवे-58 पर 'जब तक दुखी किसान रहेगा, धरती पर तूफान रहेगा' जैसे नारे लगाते हुए किसानों ने ट्रैक्टर-ट्राली आड़ी-तिरछी खड़ी कर बेमियादी धरना शुरू कर दिया. चुनावी साल में प्रवेश कर चुकी यूपी की राजनीति की गरमी को ये 'तूफान' अभी और चढ़ाने वाले हैं.