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एक बार फिर नक्सलियों सुरक्षा बलों को निशाना बनाने में कामयाब रहे हैं. क्या 25 जवानों की शहादत सिर्फ नक्सली रणनीति की कामयाबी थी? जानकारों की राय में जिस सड़क पर ये हमला हुआ, वो ऐसी जगह है जो जवानों के लिए मौत के जाल से कम नहीं है.
जवानों की जान की कीमत पर सड़क
शहीद हुए जवान दोरनापाल से जगरगुंडा के बीच 80 किलोमीटर की सड़क पर निर्माण के काम के लिए रास्ता साफ कर रहे थे. सूत्रों के मुताबिक इस सड़क पर हर महीने औसतन एक जवान नक्सलियों की गोलियों का निशाना बनता है. मौजूदा साल में इस आंकड़े में इजाफा ही हुआ है. कुछ दिन पहले ही इस घटनास्थल से 20 किलोमीटर दूर भेजी नाम की जगह में नक्सलियों ने 12 जवानों को शहीद किया था.
सलवा जुड़ूम का गढ़
हालांकि ये इलाका पशुओं की तस्करी के लिए भी बदनाम रहा है. लेकिन यहां माओवादी हिंसा का इतिहास भी पुराना है. साल 2006 के बाद यहां सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच कई बार खूनी संघर्ष हो चुका है. जगरगुंडा में सरकार ने सलवा जुडूम आंदोलन के तहत कैंप बनाया था. इन कैंपों में आदिवासियों को जंगलों से निकालकर बसाया गया था. इस वजह से कई स्थानीय समूहों में गुस्सा है.
चारों तरफ से कटा है ये इलाका
माओवादी जगरगुंडा को बाकी राज्य से जोड़ने वाली तीनों सड़कों ( वाया विजयपुर, अरनपुर वाया दोरनापाल और चिंतागुफा) को आईईडी धमाकों के जरिये ब्लॉक कर चुके हैं. इसके चलते जगरगुंडा तक रसद पहुंचाना बेहद कठिन काम है. इसके चलते जगरगुंडा पहुंचने के लिए 100 किलोमीटर लंबा इकलौता रास्ता कुआकोंडा से दोरनापाल तक सुकमा होकर जाता है. जगरगुंडा पहुंचने के लिए जवानों को दोरनापाल से पोलमपल्ली, कांकेरलंका, चिंतागुफा और चिंतलनार होकर 70 किलोमीटर का सफर तय करना होता है. इसके चलते ऐसे हमलों के मौकों पर मदद पहुंचाना टेढ़ी खीर साबित होता है.
राज नहीं रह पातीं जवानों की गतिविधियां
सीआरपीएफ सूत्रों के मुताबिक इस इलाके में जवानों की हर हरकत की खबर नक्सलियों को रहती है. सोमवार को भी कुछ ऐसा ही हुआ. एक ओर जहां सुरक्षा एजेंसियों को नक्सलियों के इरादों की भनक भी नहीं थी. दूसरी तरफ, नक्सली गांववालों के जरिये जवानों की हर हरकत पर नजर बनाए हुए थे. सीआरपीएफ के डीजी दुर्गा प्रसाद के मुताबिक 'इस सड़क के निर्माण में सीआरपीएफ को काफी जवान खोने पड़े हैं. नक्सली जानते हैं कि जवान सड़क निर्माण के लिए कॉम्बिंग जरूर करेंगे.'
नक्सलियों का गढ़ है जगरगुंडा इलाका
जगरगुंडा इलाका दक्षिणी बस्तर की ज्यादातर जगहों की तरह नक्सलियों का गढ़ माना जाता है. यहां माओवादियों के स्वयंभू डिवीजनल कमांडर रघु की तूती बोलती है. यहां नक्सली कार्रवाइयों का जिम्मा जगरगुंडा की एरिया कमेटी के हवाले है. पापा राव नाम का नक्सली इस कमेटी का सरगना है. रघु और पापा राव को छत्तीसगढ़ में सबसे मजबूत नक्सली नेताओं में गिना जाता है. इसके अलावा माओवादियों की गुरिल्ला आर्मी प्लाटून, तीन स्थानीय स्कवॉड्स और एक स्थानीय गुरिल्ला स्कवॉड भी सक्रिय है.