Advertisement

अरुणाचल प्रदेश मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मानी अपनी 'गलती', नोटिस वापस

मामले की सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल ने कहा कि या तो राजेश ताचो और नबाम रेबिया सहित नेताओं को अपनी याचिकाओं से राज्यपाल का नाम हटाना चाहिए और नहीं तो वह इस संबंध में कानूनी स्थिति और फैसले का हवाला देंगे.

सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट
ब्रजेश मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 01 फरवरी 2016,
  • अपडेटेड 11:04 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक संकट से जूझ रहे अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू करने से उठे मुद्दों पर सोमवार को बड़ा कदम उठाया. कोर्ट ने अपनी ‘गलती’ स्वीकार करते हुए प्रदेश के राज्यपाल जेपी राजखोवा को जारी अपना नोटिस वापस ले लिया.

जस्टिस जेएस खेहड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने न्यायिक कार्यवाही में राज्यपाल को ‘पूरी तरह से छूट’ प्राप्त होने संबंधी न्यायालय के पहले के फैसले और कानूनी स्थिति पर विचार के बाद कहा, ‘यह (नोटिस जारी करना) हमारी गलती है.’ इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कानूनी स्थिति का जिक्र करते हुए शीर्ष अदालत के 2006 के फैसले का हवाला दिया जिसमें व्यवस्था दी गई थी कि राज्यपालों को कानूनी कार्यवाही में शामिल होने के लिए नहीं कहा जा सकता है.

Advertisement

जस्टिस बोले- नोटिस वापस लेना उचित
संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपालों को पूरी तरह छूट प्राप्त होने की रोहतगी की दलील का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा, ‘हम प्रतिवादी संख्या दो (राज्यपाल) को जारी नोटिस वापस लेने को उचित मानते हैं.’ संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस मदन बी लोकूर, जस्टिस पी सी घोष और जस्टिस एन वी रमण शामिल हैं.

पीठ ने इसके साथ ही स्पष्ट किया कि नोटिस वापस लेने का उसका आदेश अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल को उसके समक्ष अपना पक्ष रखने और दायर करने से ‘मना नहीं’ करेगा. पीठ ने यह भी कहा कि राज्यपाल की ओर से पहले पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सतपाल जैन ने कोर्ट के निर्देश के आधार पर राष्ट्रपति शासन लागू करने से संबंधित सामग्री दाखिल करने का आश्वासन दिया था.

Advertisement

कोर्ट से केंद्र सरकार को नोटिस जारी
मामले की सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल ने कहा कि या तो राजेश ताचो और नबाम रेबिया सहित नेताओं को अपनी याचिकाओं से राज्यपाल का नाम हटाना चाहिए और नहीं तो वह इस संबंध में कानूनी स्थिति और फैसले का हवाला देंगे. इस बीच, कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन के खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री नबाम तुकी और कांग्रेस के नेता बामंग फेलिक्स की नई याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया.

सिब्बल ने दिया ये तर्क
तुकी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ कुछ आरोप लगाए गए हैं, इसलिए नयी याचिका दायर की गई है. इससे पहले, केंद्र ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने को सही ठहराते हुए कहा कि वहां शासन की व्यवस्था और कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी जिसमें राज्यपाल और उनके परिवार की ‘जान को गंभीर खतरा’ हो गया था.

गृह मंत्रालय ने लगाया आरोप
गृह मंत्रालय ने अपने हलफनामे में आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री और अध्यक्ष नबाम रेबिया राज्यपाल के खिलाफ ‘सांप्रदायिक राजनीति’ कर रहे थे. राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट में राज्य में कांग्रेस सरकार के अल्पमत में आने संबंधी समूचे घटनाक्रम का विवरण देते हुए राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश की थी.

Advertisement

बता दें कि मामले की पहली सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके दो दिन में जवाब तलब किया था और साथ ही राज्यपाल से 15 मिनट के अंदर जवाब देने को कहा था.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement