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...जब सुप्रीम कोर्ट के परिसर में आमने-सामने आई न्यायपालिका और कार्यपालिका

सर्वोच्च अदालत के परिसर में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर फिर एक बार यही नज़ारा दिखा. एक बार फिर अदालत के परिसर में न्यायपालिका और कार्यपालिका आमने-सामने आई. यहां चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद दोनों ही मौजूद थे.

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई (फोटो- ANI) चीफ जस्टिस रंजन गोगोई (फोटो- ANI)
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 16 अगस्त 2019,
  • अपडेटेड 3:21 PM IST

सुप्रीम कोर्ट और सरकार अक्सर कई मुद्दों को लेकर आमने-सामने आते रहते हैं. सर्वोच्च अदालत के परिसर में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर फिर एक बार यही नज़ारा दिखा. एक बार फिर अदालत के परिसर में न्यायपालिका और कार्यपालिका आमने-सामने आई. यहां चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद दोनों ही मौजूद थे. कई कानूनी मतभेदों के बावजूद चीफ जस्टिस ने कानून मंत्री के पैने तीरों को भी ये कहकर मोड़ दिया कि आजादी की सालगिरह के दिन ऐसी बातें उचित नहीं हैं.

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दरअसल, देश की आज़ादी की 73वीं सालगिरह के जश्न के मौके पर सुप्रीम कोर्ट के परिसर में गुरुवार को CJI ने तिरंगा फहराया. इसके बाद यहां बारी-बारी से सभी का संबोधन हुआ.

यहां शुरुआत में अटॉर्नी जनरल केके. वेणुगोपाल ने कहा कि जल्द न्याय मिलना लोगों का मौलिक अधिकार है लेकिन सरकार और न्यायपालिका लोगों को जल्द न्याय दिलाने में असफल रही हैं. उन्होंने कहा कि अपीलीय मुकदमों का बोझ कम करने के लिए अतिरिक्त और सक्षम व्यवस्था होनी  ज़रूरी है.

इसके लिए हाईकोर्ट के फैसलों के खिलाफ अपील सुनने के लिए देश के चारों भागों में चार कोर्ट होने चाहिए, इनमें 15 जज भी होने चाहिए. हर मामला सुप्रीम कोर्ट सुने इससे बेहतर यही होगा.

कानून मंत्री क्या बोले?

इसके बाद जब कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के बोलने की बारी आई तो उन्होंने कहा कि जिस तरह से कुछ हाईकोर्ट PIL को हैंडल कर रहे हैं वो आश्चर्य जगाता है. ऐसा लगता है कि वो राज्य में एक समानांतर सरकार चला रहे हैं.

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मंत्री ने कहा कि कुछ जज रिटायरमेंट से ऐन पहले संवैधानिक पहलुओं से जुड़े महत्वपूर्ण मुकदमों के फैसले सुनाते हैं और फिर टीवी न्यूज़ चैनलों पर कई दिनों तक ज्ञान देते हैं, ये उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अब जजों की संख्या 31 से 34 भी कर दी है. ये मैं मानता हूं कि सुप्रीम कोर्ट में काम का बोझ है, लेकिन जब हाईकोर्ट इस तरह के फैसले पारित करेगा तो हम क्या करेंगे.

इसके बाद जब चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के बोलने की बारी आई तो उन्होंने कई मुद्दों को सामने रखा. CJI ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या बढ़ने से लंबित मामलों के निपटारे में तेजी आएगी. उन्होने कहा कि आज स्वतंत्रता दिवस है लिहाज़ा वो आज इन सब बिंदुओं पर बात नहीं करेंगे, आज तो सबको बधाई.

पुराना है इतिहास!

दरअसल, न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच मतभेद उभरने का ये कोई पहला अवसर नहीं है. इसका एक अपना इतिहास रहा है. इंदिरा गांधी की सरकार में जब सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ जजों को दरकिनार कर जस्टिस एएन रे को चीफ जस्टिस बनाया था तब भी विवाद उभरा था और दो वरिष्ठतम जजों ने सरकारी कदम के विरोध में इस्तीफा दे दिया था.

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इसके बाद राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) पर भी सरकार और न्यायपालिका जब आमने-सामने हुए तो उसका असर तो अब तक दिख रहा है. सरकार और अदालत की ओर से कोर्ट के भीतर या फिर सार्वजनिक समारोहों के दौरान अक्सर होने वाली टिप्पणियों में ये असर दिखता भी है.

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