
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा समिति को ऐसी किसी भी दलील पर विचार नहीं करना चाहिए, जो उसके पास शीर्ष अदालत ने नहीं भेजी है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की, जब बीसीसीआई में सुधार के बारे में सिफारिशें करने वाली लोढ़ा समिति के वकील ने स्पष्टीकरण चाहा कि क्या उसे चुनिंदा मामलों में शिकायतों पर विचार करना चाहिए?
पीठ ने कहा, 'हमारी सुविचारित राय और 2 जनवरी के आदेश के मद्देनजर न्यायमूर्ति लोढ़ा समिति को अब ऐसे किसी भी प्रतिवेदन पर विचार नहीं करना चाहिए, जो उसके पास शीर्ष अदालत ने न भेजा हो. शीर्ष अदालत ने 2 जनवरी के आदेश में कहा था कि प्रशासकों की समिति मुख्य कार्यकारी अधिकारी के माध्यम से बीसीसीआई के प्रशासन की निगरानी करेगी. न्यायालय ने यह भी कहा था कि न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा समिति की भूमिका अब नीतिगत मामलों और शीर्ष अदालत द्वारा भेजे गये मामले में निर्देश तक सीमित रहेगी.
न्यायालय ने बाद में प्रशासकों की समिति (सीओए) के सदस्यों के नामों की घोषणा की थी. इसकी अध्यक्षता पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय को सौंपी गई थी. न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल समिति की रिपोर्ट, जिसमे बीसीसीआई में सुधार की आवश्यकता बताई गई थी, के मद्देनजर लोढ़ा समिति का गठन जनवरी 2015 में किया गया था.