
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व न्यायधीश और प्रेस काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू की अर्जी पर गुरुवार को फैसला सुरक्षित रख लिया है. जस्टिस काटजू के खिलाफ संसद के दोनों सदनों ने निंदा प्रस्ताव पारित किया था, जिसे निरस्त करवाने के लिए काटजू ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
अदालत में अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुनवाई के दौरान कहा कि जस्टिस काटजू की यह याचिका खारिज की जानी चाहिए, क्योंकि उनके विचारों पर संसद के दोनों सदनों ने सिर्फ अपने विचार व्यक्त किए हैं, कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की. अटॉर्नी जनरल ने यह भी कहा की अदालत अगर ऐसे मामले की सुनवाई करेगी तो यह गलत प्रथा होगी, क्योंकि संसद के अंदर हुई कार्यवाही पर अदालत में न्यायिक समीक्षा नहीं होनी चाहिए.
गांधी को बताया था ब्रिटिश एजेंट, बोस को जापानी
इससे पहले बुधवार को जस्टिस मार्कंडेय काटजू की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अटॉर्नी जनरल से कहा था कि वह गुरुवार को मामले में अपनी राय दें. पूर्व जज ने अपने फेसबुक पोस्ट में आरोप लगाया था कि संसद के दोनों सदनों ने उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर दिए बगैर ही 'गांधी को ब्रिटिश एजेंट और सुभाष चंद्र बोस को जापानी एजेंट' कहने संबंधी उनके बयान के लिए उनकी निंदा कर दी.
'क्या नागरिकों की असहमति पर भी करेंगे कार्रवाई?'
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'जब संसद में कोई प्रस्ताव पास होता है तो वो संसद सदस्यों की सामूहिक आवाज होती है. तो क्या कोर्ट इस सामूहिक आवाज पर कोई फैसला सुना सकता है. क्या निंदा प्रस्ताव पास होने से ही किसी मूल अधिकार का हनन हुआ है.' कोर्ट ने रिटायर्ड जस्टिस काटजू से पूछा कि संसद सदस्यों की तो छोड़िए, अगर कोई नागरिक जिसे कोई संरक्षण नहीं है वो आपके किसी बयान से असहमति जताता है, तो क्या इसके बदले आप उस नागरिक पर कारवाई कर सकते हैं?
जस्टिस काटजू ने अपनी याचिका के साथ फेसबुक पोस्ट भी लगाया है. काटजू ने याचिका में लोकसभा और राज्यसभा में 11 और 12 मार्च को उनके खिलाफ पारित प्रस्ताव रद्द करने का अनुरोध किया है.
स्वपनल सोनल / अहमद अजीम