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ट्रिपल तलाक पर बैन से उठे सवाल, क्या अगला नंबर बहुविवाह और हलाला का?

तो अब सवाल ये है कि क्या हलाला और बहुविवाह जैसे मसलों पर भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा? अगर ऐसा होता है तो मंगलवार को ट्रिपल तलाक पर दिया गया सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला एक नजीर बन सकता है.

बहुविवाह और हलाला भी होगा खत्म ? बहुविवाह और हलाला भी होगा खत्म ?
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 22 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 2:00 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तीन तलाक को असंवैधानिक करार दे दिया. जिसके बाद अब तलाक-ए बिद्दत यानी एक बार में तीन तलाक बोलकर तलाक देना बंद हो गया है. कोर्ट का ये फैसला मुस्लिम महिलाओं को तो इस दंश से आजादी देता ही है, साथ ही मुस्लिम पर्सनल लॉ को चैलेंज भी करता है. जिसके बाद अब सवाल उठ रहा है कि क्या मोदी सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड की तरफ बढ़ रही है.

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ट्रिपल तलाक पर फैसले का स्वागत करते हुए बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने इस पर खुलकर बोल भी दिया है. उन्होंने कहा है कि अब हमारी सरकार का अगला कदम यूनिफॉर्म सिविल कोड होगा. वहीं मुस्लिम धर्मगुरू फहीम बेग ने भी आजतक पर ये सवाल उठा दिया है. उन्होंने कहा है कि 'ट्रिपल तलाक तो सिर्फ बहाना है, यूनिफॉर्म सिविल लोड लागू करना मोदी सरकार का निशाना है. सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या ट्रिपल तलाक के बाद अब हलाला और बहुविवाह के मामले भी सुप्रीम कोर्ट में जाते दिखेंगे.

हलाला

अगर इस दिशा में सरकार बढ़ती है तो मुमकिन है, अगला निशाना बहुविवाह और हलाला रहे. हलाला वो तरीका है, जिसमें तलाक के बाद महिला को किसी दूसरे मर्द के साथ निकाह करना होता है और फिर उससे तलाक लेकर वापस अपने शौहर से निकाह करना पड़ता है. इस तरीके की भी हर तरफ आलोचना की जा रही है.

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बहुविवाह

ट्रिपल तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली सायरा बानो ने अपनी याचिका में ये भी मांग की थी कि बहुविवाह की प्रथा भी खत्म की जानी चाहिए. इस्लामिक शरीयत के मुताबिक कोई भी मुस्लिम शख्स चार शादियां कर सकता है. इस प्रैक्टिस का भी विरोध किया जाता रहा है.

तो अब सवाल ये है कि क्या हलाला और बहुविवाह जैसे मसलों पर भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा? अगर ऐसा होता है तो मंगलवार को ट्रिपल तलाक पर दिया गया सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला एक नजीर बन सकता है. क्योंकि इस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि कोर्ट उनके निजी अधिकारों में दखल न दे. अपने हलफनामे में बोर्ड ने इस मसले को अपने स्तर पर सुलझाने का वादा किया था. मगर, संवैधानिक पीठ ने इसे दरकिनार कर दिया.

 

 

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