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समलैंगिकता भारत में अपराध, सुप्रीम कोर्ट ने पलटा दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट एडल्ट्स के बीच सहमति से समलैंगिक यौन संबंध स्थापित करने को अपराध के दायरे से बाहर करने के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपराध की श्रेणी में रखा है.

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 11 दिसंबर 2013,
  • अपडेटेड 6:07 PM IST

सुप्रीम कोर्ट एडल्ट्स के बीच सहमति से समलैंगिक यौन संबंध स्थापित करने को अपराध के दायरे से बाहर करने के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपराध की श्रेणी में रखा है.

जस्टिस जी एस सिंघवी और जस्टिस एस जे मुखोपाध्याय की खंडपीठ हाईकोर्ट के 2009 के फैसले के खिलाफ समलैंगिक अधिकार विरोधी कार्यकर्ताओं, सामाजिक और धार्मिक संगठनों की याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया. हाई कोर्ट ने इस तरह की गतिविधियों को अपराध के दायरे से बाहर रखने की व्यवस्था दी थी.

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कोर्ट ने इस मामले में 15 फरवरी, 2012 से नियमित सुनवाई के बाद पिछले साल मार्च में कहा था कि फैसला बाद में सुनाया जाएगा. इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से मुक्त करने के मसले पर ‘ढुलमुल’ रवैया अपनाने के लिए केंद्र सरकार को आड़े हाथ लिया था. कोर्ट ने इस मसले पर संसद में भी चर्चा नहीं होने पर चिंता व्यक्त की थी.

समलैंगिकता को अपराध के दायरे से मुक्त करने के लिए दलील देने वाली केंद्र सरकार ने बाद में कहा था कि देश में समलैंगिकता विरोधी कानून ब्रिटिश उपनिवेशवाद का परिणाम है और समलैंगिकता के प्रति भारतीय समाज कहीं अधिक सहिष्णु है.

दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 जुलाई, 2009 को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में प्रदत्त समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से मुक्त करते हुए व्यवस्था दी थी कि एकांत में दो व्यस्कों के बीच सहमति से स्थापित यौन संबंध अपराध नहीं होगा.

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धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) के तहत समलैंगिक यौन संबंध दंडनीय अपराध है जिसके लिए उम्र कैद तक की सजा हो सकती है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता बीपी सिंघल ने इस व्यवस्था को शीर्ष कोर्ट में चुनौती देते हुये कहा था कि इस तरह का कृत्य गैरकानूनी, अनैतिक और भारतीय संस्कृति के लोकाचार के खिलाफ है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, उत्कल क्रिश्चियन काउंसिल और एपोस्टोलिक चर्चेज अलायन्स ने भी इस फैसले को चुनौती दी थी. दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग, तमिलनाडु मुस्लिम मुन्नन कषगम, ज्योतिषी सुरेश कौशल और योग गुरु रामदेव के अनुयायी ने भी इस फैसले का विरोध किया था. केंद्र सरकार ने शुरू में शीर्ष कोर्ट को सूचित किया था कि समलैंगिकों की आबादी 25 लाख होने का अनुमान है और इनमें से करीब सात प्रतिशत (पौने दो लाख) एचआईवी संक्रमित हैं.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा था कि वह अधिक जोखिम वाले चार लाख लोगों को, एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के दायरे में लाने की योजना बना रही है और उसने इनमें से करीब दो लाख को पहले ही इसके दायरे में शामिल कर लिया है.

क्या है धारा 377?
ब्रिटिश राज में बनाया हुआ यह कानून अप्राकृतिक यौन संबंध को गैर कानूनी ठहराता है. इस धारा के तहत किसी भी व्यक्ति (स्त्री या पुरुष) के साथ अप्राकृतिक यौन संबध बनाने पर या किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर उम्र कैद या 10 साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान है.

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