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सुशांत केस की जांच CBI को लेकिन सुसाइड के मामलों में अंजाम तक नहीं पहुंच पाई है एजेंसी

ऑफिशियल डाला के मुताबिक, खुदकुशी के लिए उकसाने से जुड़े केसों में सीबीआई का जीरो कन्विक्शन रेट है. ऐसे तमाम केसों में सीबीआई अंतिम फैसले पर नहीं पहुंच सकी. हालांकि सीबीआई का ओवरऑल कन्विक्शन रेट 65-70% है.

सुशांत सिंह राजपूत-जिया खान सुशांत सिंह राजपूत-जिया खान
मुनीष पांडे
  • नई दिल्ली,
  • 20 अगस्त 2020,
  • अपडेटेड 4:23 PM IST

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सीबीआई सुशांत सिंह राजपूत केस की जांच में जुट गई है. रिया चक्रवर्ती इस केस में मुख्स आरोपी मानी जा रही हैं. ऐसे में सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि सीबीआई अपनी जांच पड़ताल खत्म करने के बाद किस नतीजे पर पहुंचती है. एजेंसी ने अब तक इस तरह के कई मामलों की जांच की है. लेकिन उनमें से किसी में भी, सीबीआई यह साबित नहीं कर सकी कि संदिग्ध ने ही मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाया.

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आज तक नहीं सुलझी जिया खान मर्डर मिस्ट्री

ऑफिशियल डाला के मुताबिक, खुदकुशी के लिए उकसाने से जुड़े केसों में सीबीआई का जीरो कन्विक्शन रेट है. ऐसे तमाम केसों में सीबीआई अंतिम फैसले पर नहीं पहुंच सकी. हालांकि सीबीआई का ओवरऑल कन्विक्शन रेट 65-70% है. बात करें जिया खान केस की तो ये मर्डर मिस्ट्री आज तक सुलझ नहीं सकी है. सीबीआई जिया खान की मौत केस की भी जांच कर रही है. जिसमें सूरज पंचोली पर एक्ट्रेस को सुसाइड के लिए उकसाने का आरोप है. सीबीआई ने केस में चार्जशीट फाइट की लेकिन अभी तक कुछ हाथ नहीं लगा. साल 2017 से इस केस का ट्रायल चल रहा है. जिया खान की मां का कहना है कि उनकी बेटी का मर्डर हुआ.

राबिया खान का आरोप है कि पुलिस शुरुआती जांच में बॉलीवुड हस्तियों के दबाव का सामना कर रही थी. राबिया खान ने इंडिया टुडे को दिए हालिया इंटरव्यू कहा कि सुशांत की मौत को मर्डर बताने वालों में मैं सबसे पहली शख्स थी. सुशांत और जिया केस की समानताओं ने मुझे चुभी. दोनों के पार्टनर ने उन्हें अपने जाल में फंसाया, शादी का वादा किया, उनसे पैसे एंठे, करीबियों से अलग किया. वहीं राबिया केस में सूरज पंचोली का कहना है कि उन्हें फंसाया जा रहा है. वे निर्दोष हैं.

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सीबीआई का रिकॉर्ड क्यों निराशाजनक है?

इंडिया टुडे ने ऐसे ही सुसाइड केस की जांच करने वाले ऑफिसर से बात की. जिसके अनुसार, आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत किसी भी केस में मृतक ने क्या महसूस किया इसकी तुलना में अभियुक्त का इरादा ज्यादा मायने रखता है. ऐसी स्थिति में अभियुक्त का इरादा साबित करना बेहद मुश्किल होता है. वो भी तब जब दूसरा व्यक्ति इस बात की पुष्टि करने के लिए जीवित नहीं है कि अभियुक्त क्या कह रहा है. ऐसे मामलों में कन्विक्शन तभी हासिल होते हैं जब ये साबित किए जा सके कि मृतक द्वारा की गई आत्महत्या अभियुक्त के सीधे तौर पर किए उकसावे के कारण हुई थी और मरने वाले शख्स के पास इसके अलावा कोई और ऑप्शन नहीं था.

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, मृत व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य भी जांच में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यदि आत्महत्या करने के समय मृतक का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं था, तो यह अभियुक्त के पक्ष में जाता है. रुचिका गिरहोत्रा आत्महत्या केस एकमात्र ऐसा था जिसमें सीबीआई कन्विक्शन के करीब पहुंच गई थी.

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कौन थी रुचिका गिरहोत्रा ?

12 अगस्त 1990 को 14 साल की टेनिस खिलाड़ी रुचिका गिरहोत्रा के साथ हरियाणा पुलिस के तत्कालीन इंस्पेक्टर जनरल, एसपीएस राठौर ने अपने ऑफिस से छेड़छाड़ की थी. रुचिका ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और बाद में राज्य की पुलिस ने उनके पूरे परिवार को परेशान किया. 28 दिसंबर, 1993 को, रुचिका ने पर आत्महत्या कर ली और 1998 में अदालत ने सीबीआई जांच का आदेश दिया. सीबीआई ने मामले में आरोप पत्र दायर किया और 2010 में राठौर के खिलाफ मृतक को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के लिए एक नई FIR भी दर्ज की. हालांकि, अदालत ने 2016 में राठौड़ को पीड़ित के साथ छेड़छाड़ करने का दोषी ठहराया. लेकिन उसे आत्महत्या के लिए मजबूर करने का आरोपी नहीं बताया.

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