
विपक्षी दल लगातार सड़क से संसद तक दलित उत्पीड़न के मामले उठाकर सरकार को घेर रहा है. इसी बीच एनडीए ने चकाचौंध से दूर रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर अपना दलित कार्ड खेल दिया. दबाव में आकर विपक्ष ने मीरा कुमार को यूपीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बना दिया, तो देश की सियासत में दलित मुद्दा एक बार फिर गर्म हो गया. सत्ता पक्ष और विपक्ष में खुद को दलित हितैषी बताने की होड़ लगी ही थी कि, खुद को सबसे बड़ा दलित नेता बताने की होड़ में मायावती ने राज्यसभा में दलित मुद्दे पर नहीं बोलने देने का मामला उठाकर सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. ऐसे में कांग्रेस भी अपने सबसे बड़े दलित चेहरे को बड़े पद पर बैठाने की तैयारी में है.
इस दौरान अमर सिंह सरीखे नेताओं ने कांग्रेस को घेरते हुए कहा कि, जब आंकड़े साथ नहीं होते तभी सोनिया दलित को उम्मीदवार बनाकर बलि का बकरा बनाती हैं. जैसे इस बार मीरा कुमार को बनाया और पहले भैरों सिंह शेखावत के सामने सुशील कुमार शिंदे को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था. तब भी शिंदे की हार तय थी. साथ ही कांग्रेस को इस बात की भी फिक्र हो रही थी कि, एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार कोविंद की जाति हिमाचल में राजपूतों के बाद दूसरे नंबर पर है, हिमाचल में इस साल चुनावों में बीजेपी इसका फायदा उठा सकती है.
कांग्रेस के भीतर तमाम चर्चा के बाद अपने सबसे बड़े दलित चेहरे शिंदे को पार्टी महासचिव और हिमाचल प्रदेश का प्रभारी बनाकर सियासी फायदा उठाने की कोशिश में है. दरअसल, हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बड़े क़द के सामने प्रभारी महासचिव भी बड़े क़द का चाहिए, जिससे वीरभद्र और प्रभारी में तालमेल बेहतर रहे. इसीलिए राहुल गांधी ने शिंदे का नाम आगे बढ़ा दिया है, बस सोनिया की कलम से दस्तखत होने बाकी हैं. ऐसे में सब कुछ इसी दिशा में चला तो तो जल्द ही पार्टी की ओर से शिंदे के नाम का आधिकारिक ऐलान कर दिया जाएगा. राहुल गांधी की कोशिश है कि शिंदे के ज़रिए एक तीर से कई निशाने साधे जाएं.