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स्वामी सानंद जी का पार्थिव शरीर आखिर क्यों नहीं सौंपना चाहती सरकार!

संतों का गुस्सा पहुंचा चरम पर. वे पूछ रहे हैं कि अगर नैनीताल हाइ कोर्ट ने पार्थिव शरीर को 72 घंटे के लिए उनके अनुयायियों के पक्ष में फैसला सुना दिया था तो तीन घंटे के भीतर सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले पर स्टे क्यों लिया गया. सरकार इतनी सक्रियता काश गंगा की सफाई के लिए दिखाती तो आज संतों को अपने प्राण न देने पड़ते. लेकिन अब सरकार के खिलाफ हरिद्वार से लेकर बनारस तक संत खोलेंगे मोर्चा!

प्रो.जी.डी. अग्रवाल प्रो.जी.डी. अग्रवाल
संध्या द्विवेदी/मंजीत ठाकुर
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  • 26 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 7:49 PM IST

प्रो. जी डी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी का पार्थिव शरीर उनके अनुयायियों को सौंपने का आदेश नैनीताल हाइकोर्ट ने दिया लेकिन तीन घंटे के भीतर सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर स्टे ले लिया गया. सानंद जी के पार्थिव शरीर की मांग को लेकर याचिका मातृसदन आश्रम के उनके एक अनुयायी ने याचिका लगाई थी. 25 अक्तूबर को करीब डेढ़ बजे नैनीताल हाइकोर्ट ने याची के पक्ष में फैसला सुनाया. लेकिन करीब छह बजे सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्टे ले लिया. स्वामी सानंद के अनुयायी भोपाल चौधरी का कहना है कि आखिर सरकार हमें उनका शव क्यों नहीं देना चाहती.

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हम तो अंतिम दर्शन के लिए उनका शरीर चाहते हैं. पहले तो हमें शक था लेकिन अब यकीन हो गया है कि स्वामी जी की हत्या करवाई गई है. दरअसल स्वामी सानंद (अग्रवाल) से पहले स्वामी निगमानंद और गोकुलानंद गंगा के लिए अनशन करते हुए अपनी जान गवां चुके हैं. स्वामी गोपालदास जी को अनशन करते हुए 127 दिन हो गए हैं.

उन्हें चंडीगढ़ के अस्पताल में प्रशासन ने जबरन भर्ती करा दिया है. उन्हें नाक के जरिए लिक्विड दिया जा रहा है. उनके बाद 24 अक्तूबर से स्वामी आत्मबोधानंद और पुण्यानंद ने अनशन शुरू कर दिया है. दरअसल रणनीति के अनुसार आश्रम के सारे लोग अनशन के लिए तैयार हैं. आश्रम में रहने वाले एक भक्त ने बताया कि हमने ठान लिया है कि एक-एककर सब लोग मां गंगा के लिए अपना बलिदान देंगे. अब जब तक स्वामी सानंद की मांगे पूरी नहीं होतीं तब तक ये अनशन चलता रहेगा. 26 अक्तूबर को स्वामी सानंद के अनुयायी और बनारस के कुछ संत हरिद्वार में इकट्ठा होंगे.

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अविरल गंगा की मांग को लेकर अनशन में बैठे प्रो. जी डी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी का निधन 11 अक्तूबर को हो गया. लेकिन उनका पार्थिव शरीर उनके अनुयायियों को नहीं दिया गया. दरअसल स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने अपना अंग दान के तहत अपना शरीर दान कर दिया था. लेकिन उनके अनुयायियों की मांग है कि अंतिम दर्शन के लिए उनका शरीर उन्हें सौंपा जाए ताकि वे अपने गुरु का दर्शन कर सकें साथ ही अंतिम बार स्वामी सानंद को गंगा स्नान भी करवाया जा सके. भोपाल चौधरी का कहना है कि संत समुदाय का गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा है. सरकार संतों के सब्र की परीक्षा ले रही है.

स्वामी सानंद की मौत पर सियासत

11 अक्टूबर को ही स्वामी सानंद की मौत के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने गंगा सफाई अभियान को लेकर तीन ट्वीट किए. लेकिन स्वामी सानंद की मौत पर कुछ नहीं कहा.

राहुल गांधी भी ट्विटर पर जीडी अग्रवाल की लड़ाई को आगे ले जाने की घोषणा कर चुके हैं. 12 अक्टूबर को उन्होंने ट्वीट किया, 'मां गंगा के सच्चे बेटे प्रो. जीडी अग्रवाल नहीं रहे. गंगा को बचाने के लिए उन्होंने स्वयं को मिटा दिया. हिंदुस्तान को गंगा जैसी नदियों ने बनाया है. गंगा को बचाना वास्तव में देश को बचाना है. हम उनको कभी नहीं भूलेंगे. हम उनकी लड़ाई को आगे ले जाएंगे.'

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स्वामी सानंद से पहले भी दो संतों को मौत हो चुकी है. पिछले दस साल तक केंद्र में सत्ता में रही कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार ने वही रवैया अपनाया था जो अभी एनडीए सरकार ने अपनाया. लेकिन आज जब कांग्रेस सत्ता में नहीं है तो राहुल गांधी उनकी लड़ाई को आगे ले जाने की बात कह रहे हैं.

ये हैं मांगे

स्वामी सानंद की थीं चार मांगे, अब अनुयायी इन मांगों को लेकर अड़े

1. गंगा के लिए गंगा-महासभा द्वारा प्रस्तावित अधिनियम ड्राफ्ट 2012 पर संसद में चर्चा कराकर पास कराया जाए. ऐसा न हो सकने पर उस ड्राफ्ट के अध्याय एक (धारा 1 से धारा 9) को राष्ट्रपति अध्यादेश द्वारा तुरंत लागू किया जाए. इसमें गंगा के 50 प्रतिशत प्रवाह को सुनिश्चित करने की बात कही गई थी.

2. उक्त प्रस्ताव के अन्तर्गत अलकनंदा, धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंडर तथा मंदाकिनी नदियों पर सभी निर्माणाधीन और प्रस्तावित परियोजनाएं तुरंत निरस्त की जाएं. गंगाजी और उसकी सहायक नदियों पर सभी प्रस्तावित जलविद्युत परियोजनाओं को भी निरस्त किया जाए.

3. उपरोक्त ड्राफ्ट अधिनियम की धारा 4 (डी) वन कटान तथा 4(एफ) खनन, 4 (जी) किसी भी प्रकार की खुदाई पर पूरी तरह से फौरन रोक लगे.

4. एक गंगा-भक्त परिषद का प्रोविजिनल गठन हो, इसमें नामांकित 20 सदस्य हों, जो गंगा और केवल गंगा के हित में काम करने की शपथ लें.

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