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सीरिया में किलकारियों की मौत, इंसानियत शर्मसार!

हाकिम और हुकूमतें अवाम को सुनहरे भविष्य का सपना दिखाकर जंग छेड़ती हैं. जंग थमती है तो कोई जीतने की खुशफहमी में डूबा रहता है, तो कोई हारने के ग़म में. जबकि सच्चाई ये है कि जंग में हमेशा ज़िंदगी ही हारती है. पर सीरिया में तो हाकिम भी अपना, मुल्क भी अपना और अवाम भी अपनी. फिर भी अपने ही हाकिम ने अपने ही देश की जनता पर आसमान से ऐसा जहर बरसाया कि पल भर में सौ से ज्यादा लोग मौत के मुंह में समा गए. हम बात कर रहे हैं सीरिया में हुए रासायनिक हमले की.

इस खौफनाक हमले ने सौ लोगों की जान ले ली इस खौफनाक हमले ने सौ लोगों की जान ले ली
परवेज़ सागर/शम्स ताहिर खान
  • नई दिल्ली,
  • 06 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 4:55 PM IST

हाकिम और हुकूमतें अवाम को सुनहरे भविष्य का सपना दिखाकर जंग छेड़ती हैं. जंग थमती है तो कोई जीतने की खुशफहमी में डूबा रहता है, तो कोई हारने के ग़म में. जबकि सच्चाई ये है कि जंग में हमेशा ज़िंदगी ही हारती है. पर सीरिया में तो हाकिम भी अपना, मुल्क भी अपना और अवाम भी अपनी. फिर भी अपने ही हाकिम ने अपने ही देश की जनता पर आसमान से ऐसा जहर बरसाया कि पल भर में सौ से ज्यादा लोग मौत के मुंह में समा गए. हम बात कर रहे हैं सीरिया में हुए रासायनिक हमले की.

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सीरिया में रासायनिक हमला
कहते हैं किलकारियों को मुस्कुराहट देना भी किसी इबादत से कम नहीं है. पर जब सांसे कातिल बन जाए तो किलकारियां गूंजती नहीं बल्कि घुट जाती हैं. और यही हुआ सीरिया के एक शहर के साथ. सारा शहर सो कर बस उठा ही था. एक रॉकेट धीरे से शहर के आसामन में दाखिल हुआ. रॉकेट जमीन पर गिरा. रॉकेट से गैस निकली और फिर देखते ही देखते लोगों की सांसों में ऐसी घुली कि सैकड़ों सांसें रुक गईं. ये था सीरिया में रासायनिक हथियार का हमला. जिसे रॉकेट से अंजाम दिया गया था.

आसमान से बरसी मौत की आफत
इंसानियत की तारीख ने आसमान से बरसी मौत का ऐसा खौफनाक मंज़र देखा कि बस देखने वालों की रूह कांप उठी. इंसानों के बनाए सबसे खतरनाक और जानलेवा हथियार को इंसानों पर ही आज़माया जा रहा था और आज़माइश ऐसी कि मिनटों में लाशों के ढेर लग गए. आसमान से जो आफत बरसी, वो एक झटके में सौ से ज्यादा लोगों को कब निगल गई किसी को पता ही नहीं चला. दुनिया ने रासायनिक बम का खूंखार चेहरा फिर एक बार देखा.

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बच्चों पर बरसा मौत का कहर
आसमान से बरसी इस सबसे खौफनाक मौत को बरसाने का हुक्म किसी और ने नहीं बल्कि सीरिया के राष्ट्रपति ने खुद दिया था. इंसानों की बनाई इस दुनिया में इंसानों के ही हाथों बनाए गए इस खौफनाक हथियार यानी रासाय़निक बम को अपने ही लोगों पर गिराने का हुक्म उनका अपना ही नेता दे रहा था. लेकिन इस केमिकल अटैक का सबसे आसान शिकार हुए वो छोटे-छोटे बच्चे, जिन्होंने अभी बड़ों की इस दुनिया में क़दम रखा ही था. बच्चों को सांस लेने में सबसे ज़्यादा दिक्कत होने लगी और जो जहां था वहीं बेहोश होने लगा. पहले दम घुटा और फिर खून की उल्टियां होने लगी और चंद मिनटों के अंदर ही सांसों की डोर टूटने लगी. अस्पताल लाचार और बीमार लोगों से पट गए. बच्चों को डॉक्टरी तौर-तरीक़ों से सांस देने की कोशिश शुरू की गई. लेकिन इस जानलेवा गैस के आगे किसी का ज़ोर नहीं चला.

रासायनिक हमले के लिए जिम्मेदार कौन
कुछ लोगों ने गैस की तपिश कम करने के लिए ठंडे पानी का सहारा लिया. जिससे फौरी राहत तो मिली, लेकिन ज़िंदगी कम ही को मिली. सीरिया में मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों के साथ अमेरिका की माने तो इस हमले के पीछे कोई और नहीं बल्कि खुद सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद ही हैं. हालांकि खुद सीरियाई फ़ौज के साथ-साथ उनके राष्ट्रपति बशर अल असद के हक में विद्रोहियों पर हमला करने वाले रूस ने इन इल्ज़ामों सिरे से खारिज कर दिया. बल्कि रूस ने एक बयान जारी कर ये खुलासा किया कि हमला बेशक सीरियाई फ़ौज ने ही किया, लेकिन ये रसायनिक हमला नहीं था. बल्कि फ़ौज की मिसाइल खान शिखाऊन में रसायनिक हथियारों से भरे आतंकवादियों के सबसे बड़े गोदाम में गिरी और ये हादसा हो गया. कहने का मतलब ये कि इस हमले के लिए सीरियाई फ़ौज नहीं, बल्कि विद्रोही और आतंकवादी ज़िम्मेदार हैं.

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अवाम के खिलाफ फरमान
शक है कि दुनिया में सबसे ज्यादा रासायनिक हथियार इसी सीरिया के पास हैं. और सीरिया की अवाम फिलहाल अपने ही नेता के खिलाफ ही सड़कों पर है. उसी सड़क पर अवाम की आवाज कुचलने के लिए उसी अवाम के लीडर ने आसमान से ज़हर बरसाने का काम किया है. क्या है रासायनिक हथियार. क्यों हैं ये इतना ज़हरीला. कैसे लेता है ये जान. और क्यों सीरिया के लोगों पर रासायनिक हथियार का इस्तेमाल किया गया. इसकी पूरी कहानी आपको बेचैन करके रख देगी.

सीरिया में मौत की सुबह
मध्य पूर्व के मुल्क सीरिया में इस बार जो हमला हुआ, वह हाल के तमाम हमलों से अलग था. क्योंकि इस हमले में ना तो किसी का ख़ून बहा और ना ही कोई ज़ख्मी हुआ, लेकिन फिर भी शहर भर में लाशें बिछ गईं. ये एक ऐसी मौत थी, जो हवा की शक्ल में दबे पांव सीरिया में पहुंची और सांसों में घुल कर लाशें बिछाते हुए आगे निकल गई. 4 अप्रैल 2017 की सुबह क़रीब साढ़े ग्यारह बजे गृहयुद्ध की आग में झुलस रहे इस मुल्क ने जब अपनी आंखें खोली, तो हवा में घुलती मौत उनका इंतज़ार कर रही थी. इधर, एक के बाद एक रॉकेट से शहरियों पर कई हमले हुए और उधर बस्तियां-दर-बस्तियां श्मशान में तब्दील होने लगी. बेगुनाह और बेख़बर लोग तिल-तिल कर मौत के मुंह में जाने लगे.

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1980 के बाद दूसरा खौफनाक हमला
क्या बच्चे, क्या बूढ़े और क्या जवान. इस हमले ने किसी को नहीं बख्शा. इससे पहले कि लोग समझ पाते कि ये माजरा क्या है, किसी की सांस रुक गई तो किसी की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. क्योंकि ये हमला कोई मामूली हमला नहीं, बल्कि 1980 के बाद दुनिया में हुआ अब तक का दूसरा सबसे ख़ौफ़नाक रसायनिक हमला था. वो हमला, जिसने तकरीबन सौ से ज़्यादा लोगों की जान ले ली.

यूं हुआ रसायनिक हमला
सीरिया की एक बड़ी आबादी वहां के राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ़ पिछले लंबे वक़्त से सड़कों पर है लेकिन उन्हें राष्ट्रपति के विरोध की ऐसी क़ीमत चुकानी पड़ेगी, ये किसी ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था. इल्ज़ाम है कि सरकार के इशारे पर सेना ने बीच शहर में ज़हरीली गैसों से लैस रॉकेट दागे और पलक झपकते पूरे खान शेखाऊन में कोहराम मच गया. सालों से सही-ग़लत की जंग में उलझे सीरिया के लोगों के लिए गोली-बारी और धमाके कोई नई बात नहीं हैं. लेकिन मंगलवार की सुबह जो कुछ हुआ, वैसा इससे पहले कभी नहीं हुआ था. लोगों ने अभी अपना दिन शुरू ही किया था कि तभी रॉकेट के गिरने से निकली ज़हरीली गैस ने उनका दम घोंटना शुरू कर दिया.

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...और फिर रुक गई सांसें
इस हमले का सबसे पहला असर तो यही हुआ कि लोगों को सांस लेने में दिक्कत होने लगी. तेज़ जलन के मारे आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा, पुतलियां छोटी होने लगी और ज़्यादातर लोग फ़क़त दस मिनट के अंदर मौत के मुंह में समा गए. सबसे बुरा हाल तो बच्चों का हुआ, जो कुछ समझने से पहले ही दुनिया से रुखसत हो गए. जिन लोगों की हालत थोड़ी बेहतर थी, उन्होंने बीमार लोगों को अस्पताल पहंचाना शुरू किया और देखते ही देखते शहर के तमाम छोड़े-बड़े अस्पताल रसायनिक हमले के शिकार लोगों से पट गए. डॉक्टरों के हाथ-पांव फूल गए. हालत ये हो गई कि ये समझ आना मुश्किल हो गया कि वो किसका इलाज करें और किसे छोड़ें और इसी आनन-फ़ानन में कई और ज़िंदगियां ख़ामोश हो गईं.

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