पश्चिम बंगाल के कपड़ा मंत्री श्यामापद मुखर्जी को पिछले महीने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों ने शारदा चिट फंड घोटाले में कथित तौर पर शामिल होने के मामले में पूछताछ के लिए बुलाया तो कहते हैं, उन्होंने जांचकर्ताओं से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का जिक्र करते हुए गुजारिश की, ‘‘देखो, दीदी मुझे पार्टी से निकाल बाहर करेंगी.’’
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सुप्रीमो ममता बनर्जी शायद यही चाह रही होंगी कि महज अपने एक सिपहसालार की विदाई से समस्याएं दूर हो जातीं तो कितना अच्छा होता.
अप्रैल, 2013 में 2,500 करोड़ रु. के शारदा चिट फंड घोटाले के उजागर होने के करीब सालभर बाद उसके दाग टीएमसी पर खुलकर दिखने लगे हैं. शारदा समूह की पोंजी स्कीम के मामले में दर्जनभर से ज्यादा टीएमसी सांसदों से पूछताछ हो चुकी है. और जैसे इतना ही काफी नहीं था. अब कोढ़ में खाज की तरह मामला बढ़ता नजर आ रहा है. जांचकर्ताओं की टेढ़ी नजर खुद ममता बनर्जी की ओर भी उठने लगी है, जिससे बेहद सादगी और शुचिता पसंद नेता की बड़े करीने से बनाई गई छवि पर भी खतरे के बादल मंडराने लगे हैं.
सीबीआइ और ईडी के अधिकारियों को संदेह है कि पोंजी स्कीम के पैसे से टीएमसी नेताओं की सरपरस्ती हासिल करके रुतबा दिखाने या आलोचकों का मुंह बंद करने की कोशिश की गई.
उनका आरोप है कि टीएमसी सांसद सृंजय बोस को शारदा के चेयरमैन सुदीप्त सेन ने करीब सालभर तक हर महीने 60 लाख रु. का भुगतान किया. वजहः बांग्ला अखबार संबाद प्रतिदिन के सीईओ बोस ने कथित तौर पर शारदा के खिलाफ लिखा और उनका मुंह बंद करने के लिए सेन को ब्लैकमेल किया. सृंजय बोस से सीबीआइ पूछताछ कर चुकी है और वे इन आरोपों का खंडन कर चुके हैं.
दूसरी ओर, कपड़ा मंत्री मुखर्जी ने बांकुड़ा में अपनी बड़ी सीमेंट फैक्टरी को 46 लाख रु. में सेन को बेच दिया. सीबीआइ और ईडी के जांचकर्ताओं ने फैक्टरी का मुआयना किया तो पाया कि वह 15 एकड़ में फैली हुई है जबकि सेल एग्रीमेंट में महज 8 एकड़ का जिक्र है. जांचकर्ताओं को संदेह है कि मुखर्जी को हवाला के जरिए करोड़ों रु. का भुगतान किया गया है. एक अन्य टीएमसी सांसद अहमद हसन से भी पूछताछ हुई है.
हसन ने अपना अखबार कलम दैनिक सेन को अघोषित रकम में बेच दिया है. ईडी को संदेह है कि सेन ने इस तरह हसन का रुतबा खरीदने की कोशिश की है. जांचकर्ताओं के मुताबिक, सेन ने दावा किया है कि उसने निलंबित टीएमसी सांसद कुणाल घोष की ओर से यह निवेश किया है, जो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के करीबी माने जाते रहे हैं.
कथित तौर पर सेन ने तो यह भी दावा किया है कि 2010 में शारदा समूह ने बीमार कंपनियों और उन इकाइयों में निवेश करना शुरू किया, जो बंद होने के कगार पर थीं. उसने करीब 20 ऐसी इकाइयों को खरीदा और करीब 1,000 करोड़ रु. मीडिया घरानों को दिए.
शारदा घोटाले के सिलसिले में कई और तृणमूल नेताओं के नाम उजागर हुए हैं लेकिन जांचकर्ताओं को कोई गड़बड़ी होने के सुराग अभी नहीं मिल पाए हैं. मसलन, अभिनेता और टीएमसी के राज्यसभा सदस्य मिठुन चक्रवर्ती को मोटी रकम देकर कंपनी का ब्रांड एंबेसेडर बनाया गया था. बेलुरघाट से टीएमसी सांसद अर्पिता घोष शारदा समूह की मीडिया शाखा से जुड़ी रही हैं और ईडी उनसे दोबारा पूछताछ कर चुकी है.
अगर सीबीआइ अपनी योजना के मुताबिक शारदा टूर ऐंड ट्रैवल्स और भारतीय रेलवे कैटरिंग और पर्यटन निगम (आइआरसीटीसी) के बीच दिसंबर, 2010 में हुए करार के सिलसिले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से पूछताछ करती है तो उस समय पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी को शायद सबसे तगड़ा झटका लग सकता है.
उस समय ममता बनर्जी रेल मंत्री हुआ करती थीं. सीबीआइ को संदेह है कि शारदा समूह की योजना देशभर में अपनी वित्तीय योजनाओं के प्रदर्शन और निवेशकों को आकर्षित करने के लिए एक विशेष पर्यटक ट्रेन चलाने की थी.
टीएमसी प्रवक्ता सांसद डेरेक ओ्यब्रायन ने इस मामले में इंडिया टुडे के बार-बार किए गए फोन काल्स का कोई जवाब नहीं दिया. ममता बनर्जी ने इन मामले में आरोपों का जोरदार खंडन किया है और मामले के राजनैतिक रंग लेने पर टीएमसी ने सीबीआइ के खिलाफ प्रदर्शन भी किया है.
ममता ने एक बयान में कहा, ‘‘तृणमूल ने एक पाई भी शारदा समूह से नहीं ली है. आखिर, किसने शारदा समूह के मीडिया चौनलों को मंजूरी दी? केंद्र सरकार ने दी. अगर एकाध पूजा कमेटियों ने शारदा समूह की स्पॉन्सरशिप ली है तो यह हमारी जिम्मेदारी नहीं बनती है. कांग्रेस और बीजेपी केंद्र में सत्ता में रही हैं. उन्होंने क्यों नहीं कोई कार्रवाई की?’’
ममता का यह भी दावा है कि शारदा घोटाले में 12 लाख लोगों को ही ठगा गया है, न कि 17 लाख लोगों को, जैसा कि जांच एजेंसियां दावा कर रही हैं. वे कहती हैं, ‘‘सत्ता में आने के बाद हमने चिट फंड विरोधी कानून पास किया. केंद्र उस पर कुंडली मारकर बैठा है. कुछ बदलाव सुझाए गए. हमने संशोधन कर दिया तो फिर उसे आज तक मंजूरी क्यों नहीं मिली? विपक्ष चुनावों को नजदीक देखकर चिट फंड का मुद्दा उठा रहा था लेकिन वह रणनीति कारगर नहीं होगी.’’
सुदीप्त सेन के वकील नरेश बालोदिया ने इंडिया टुडे को बताया कि उनकी जानकारी में सेन कभी ममता बनर्जी से नहीं मिले. बालोदिया ने कहा, ‘‘वे इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में निवेश करना चाहते थे इसलिए बोस और हसन से करार किया.’’ मुखर्जी की सीमेंट फैक्टरी की खरीद में बरती गई अनियमितताओं के संदेह पर वकील का कहना है, ‘‘वह एक सामान्य खरीद-बिक्री करार ही है.’’ हालांकि वे टीएमसी के दूसरे सांसदों और पार्टी पदाधिकारियों से सेन के संदिग्ध संबंधों के बारे में कुछ कहने से इनकार कर देते हैं, जिनकी जांच चल रही है.
हालांकि सीबीआइ अफसरों के मुताबिक, उन्हें राज्य के नेताओं के घोटाले में शामिल होने के कई सबूत मिले हैं. उनका यह दावा है कि शारदा समूह के 400 बैंक खाते ऐसे मिले हैं जिनसे रकम संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की संदिग्ध कंपनियों में हस्तांतरित की जाती रही है. अब जांच इस पर केंद्रित है कि इस रकम को पाने वाले असली लोग कौन हैं. सीबीआइ और ईडी इनका पता लगाने के लिए यूएई को अनुरोध पत्र भेजने की तैयारी कर रही हैं. उन्हें संदेह है कि टीएमसी के कई और प्रमुख नामों का खुलासा हो सकता है.
जाहिर है, तृणमूल कांग्रेस की छवि बचाने के लिए ममता और उनके सहयोगियों को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ सकता है.