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'सिंबल ऑफ लव' ताजमहल की सफेदी अब किताबों और कहानियों की बात होती जा रही है. अपनी सफेद चमक के लिए दुनिया में पहचान रखने वाले ताज में अब वो बात नहीं रही. इसका रंग धीरे-धीरे पीला पड़ रहा है. प्रदूषण ने इसका हाल बेहाल कर दिया है. वातावरण में मिले धूल के कण निर्धारित मानक से तीन गुना हैं और कार्बन के कणों का भी यही हाल है.
ताजमहल के बदलते रंह को लेकर पुरातत्व वैज्ञानिक भी लगातार चिंता जता रहे हैं. एएसआई आगरा के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ भुवन विक्रम ने कहा, 'ताजमहल पीला पड़ रहा है. बायो मॉस की जो बर्निंग है वह बहुत बड़ी मात्रा मे श्मसान घाट में होती है और इतना करीब है ताजमहल के करीब है. निश्चित रूप से कुछ न कुछ इसका प्रभाव ताज के ऊपर पड़ता है .'
यहां रोज जलती हैं 400 चिताएं
ताजमहल के पास श्मसान घाट सालों से बना हुआ है और यहां रोजाना 400 सौ से अधिक चिताओं में आग लगाई जाती है. एक चिता जलाने में चार कुंटल लकड़ी जलती है. इससे निकले कार्बन के कण उड़ते है और ताजमहल से चिपक जाते हैं.
सुप्रीम कोर्ट मॉनिटरिंग कमेटी के सदस्य डीके जोशी मे कहा, 'बीते कई वर्षों से ताज पीला होता जा रहा है. इसको मुल्तानी मिट्टी से साफ करने की बात चली थी लेकिन कुछ खास और ठोस उपाय नहीं है ये.
सच्चाई कुछ भी हो पर ताजमहल पीला पड़ रहा है. ऐसे में न तो एएसआई की श्मसान घाट से उड़ने वाले प्रदूषण की दलील को दरकिनार किया जा सकता है और न ही ताजमहल के पास बहने वाले गंदे नालों से उठने वाली जहरीली गैसों को. बस चिंता है तो ताज की उस खूबसूरती की जो दिनों दिन पीलेपन से ढकती जा रही है.